मौन का संवाद
ये काविता गौतम बुद्ध और
उनके शिष्य महाकाश्यप के बीच मौन संवाद की घटना पर आधारित है।
गौतम बुद्ध ने इस घटना के माध्यम से ये बताने की कोशिश की है कि गहन ज्ञान का
अनुभव केवल मौन ध्यान में हीं संभव होता है। ये एक आदमी का मन हीं है जो इस मौन
संवाद में बाधा बनता है। यदि मानव अपने मन को शांत कर ले तो घटना घट जाती है जिसे
निर्वाण कहते हैं। शायद यही कारण था , कि
मेहर बाबा समाधि फलित हो जाने के मृत्यु पर्यन्त मौन हीं रहे। प्रस्तुत है मौन के
संवाद को प्ररिलक्षित करती हुई कविता"मौन का संवाद"।
मौन का संवाद है क्या,
व्यर्थ ये विवाद है क्या।
बौद्ध भिक्षुक अड़ पड़े थे,
ज्ञान का अवसाद है क्या?
जानकर विवाद सारा,
व्यर्थ का संवाद सारा।
भिक्षुकों के प्रश्न गुनकर,
बुद्ध ने कुछ यूं विचारा।
यूँ विचारा कि किसी दिन,
किसी मनोहर भिक्षुक गाँव।
लिए हाथ में पुष्प मनोहर ,
बुद्ध आ बैठे पीपल छाँव।
सभा शांत थी , बाग़ शांत था ,
चिड़ियाँ गीत सुनाती थीं ।
भौरें रुन झुन नृत्य
दिखाते ,
और कलियाँ मुस्काती थी ।
बुद्ध की वाणी को सुनने को
,
सारे तत्पर भिक्षुक थे ।
हवा शांत थी ,वृक्ष शांत सब,
इस अवसर को उत्सुक थे ।
उत्सुक थे सारे वचनों को ,
जब बुद्ध मुख से बोलेंगे ।
बंद पड़े जो मानस पट है ,
बुद्ध निज वचनों से
खोलेंगे।
समय धार बहती जाती थी ,
बुद्ध मुख से कुछ न कहते
थे ।
मन में क्षोभ विकट था सबको
,
पर भिक्षुक जन सहते थे ।
इधर दिवस बिता जाता था ,
बुद्ध बैठे थे ठाने मौन ।
ये कैसी लीला स्वामी की ,
बुद्ध से आखिर पूछे कौन ?
काया सबकी भाग में स्थित ,
पर मन दौड़ लगाता था ।
भय ,चिंता के श्यामल बादल ,
खींच खींच के लाता था।
तभी अचानक जोर से सबने ,
हँसने की आवाज सुनी ।
अरे अकारण हँसता है क्यूँ ,
ओ महाकश्यप, ओ गुणी ।
गौतम ने हँसते नयनों से ,
महाकश्यप को दान किया ।
निज वन में जाने से पहले ,
वो ही पुष्प प्रदान किया ।
पर उसको न चिंता थी न,
हँसने को अवकाश दिया ।
विस्मित थे सारे भिक्षुक
क्या,
गौतम ने प्रकाश दिया ।
तुम्हीं बताओ महागुणी ये ,
कैसा गूढ़ विज्ञान है ?
क्या तुम भी उपलब्ध ज्ञान
को ,
हो गए हो ये प्रमाण है?
कहा ठहाके मार मार के ,
महाकश्यप गुणी सागर ने ।
परम तत्व को कहके गौतम ,
डाले कैसे मन गागर में ।
मौन का संवाद सुन सको ,
तब तुम भी सब डोलोगे ।
बुद्ध तुममें भी बहना चाहे
,
तुम मन पट कब खोलोगे?
अजय अमिताभ सुमन।
No comments:
Post a Comment