Monday, January 15, 2018

ईश्वर वट



एक पत्ती 
एक डाल पे,
अन्य पत्तों से अनजान, 
अन्य डालों से अनजान,
अनजान पत्तों से, 
डालों से,
भूत के,
भविष्य के,
और फिर गिरती जमीन पे ,
डरती हुई, 
मिल जाती,
मिट जाती, 
मिट्टी बन जाती,
और जड़ों से,
तनों से,
गुजरती  हुई, 
पहुँच जाती है,
वो पत्ती, 
फिर से एक डाल पे,
अन्य पत्तों से अनजान,
अन्य डालों से अनजान,
अनजान पत्तों से, डालों से,
भूत के, भविष्य के।

अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित

धन की सोच




Sunday, January 14, 2018

न्यायाधीश जब न्याय मांगने निकले जोड़े हाथ


स्वतंत्रता के बाद का इतिहास गवाह है, भारतीय न्याय पालिका ने भारतीय जनतंत्र को मजबूत करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। जब जब ऐसा लगा की भारतीय जनतंत्र खतरे में है, तब तब भारतीय न्याय पालिका ने ऐसे ऐसे जजमेंट पास किये जिससे भारतीय जन तंत्र की शाख बची रही। अभी हाल फिलहाल में माननीय सुप्रीम कॉर्ट के माननीय न्याय धीशों ने जिस तरह से प्रेस कॉन्फ्रेंस किया , उससे आम  आदमी की आस्था भारतीय न्याय पालिका में डगमगाई है।आजकल की ये घटनाएँ ये साबित करती है कि माननीय सुप्रीम में सबकुछ ठीक नही चल रहा है । आम आदमी इन घटनाओं से क्षुब्ध है। मैंने राह चलते अनेक लोगो की बात चीत में हताशा महसूस की है। लाचारी महसूस की है। इस कविता के माध्यम से मैने  इसी हताशा को परिलक्षित करने की कोशिश की है ।


उजाले की चाह मेंं आखिर ,खोजे दिन अब रात,
मुश्किल में हालात देेेश की, बड़ी अजब है बात।

इस युद्ध मे जो भी जीते, जो भी हो तकरार,
टूट गयी उम्मीद देश की, जन तंत्र की हार।

न्यायधीश जब न्याय मांगने, निकले जोड़े हाथ,
तुम बोलो हे जन तंत्र अब , किसका दोगे साथ?

शिक्षक लेने लगे छात्र से, जब ज्ञान की सीख,
न्यायधीश जनता से मांगे , जब न्याय की भीख।

तब जनता ये न्याय मांगने, पहुंचे किसके पास?
हे राष्ट्र हो तुझपे कैसे, जनता का  विश्वास?


अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित

My Blog List

Followers

Total Pageviews