Wednesday, April 25, 2018

उम्मीद भी देता नहीं


व्यापर


सागर के दर्शन जैसा


नाम कर जायेगा


ओ मेरी कविते


मुर्गा बोला सीना तान


हिंदुस्तान दिखता है


जहाँ जहाँ शिशुपाल छिपे है


तेरा ईश्वर



अचरज


कविता मैं गढ़ता हूँ


मेरी चाल


स्वर्णिम यादें


जीवन उर्जा तो एक हीं है


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