Sunday, March 10, 2024

आजमाइस

मैदान में शिकस्त की,

फिर से गुंजाइश हो,

उस शख्स के हौसले की,

फिर क्या आजमाइश हो?

कोई जीत भी जाए,

पर वो हारेगा क्या?

कि लड़खड़ाकर जिसको,

संभलने की ख्वाहिश हो। 


अजय अमिताभ सुमन

Saturday, March 2, 2024

जात आदमी के

आसां नहीं समझना हर बात आदमी के,

कि हंसने पर हो जाते वारदात आदमी के।

बुझते नहीं कफन से,अरमां दफ़न दफ़न से,

जलते हैं तन बदन से, आलात आदमी के।

कि दिन में है बेचैनी और रातों को उलझन,

संभले नहीं संभलते  हालात आदमी के।

खुदा भी इससे हारा, इसे चाहिए जग सारा,

जग बदले पर बदले ना , जात आदमी के।


अजय अमिताभ सुमन

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