Sunday, February 25, 2024

बाजार में हिला नहीं

बाजार में हिला नहीं

तू भी क्या चीज है,कि नाम का गिला नहीं ,
शोहरत की दौड़ में थे सब, तू हिला नहीं।
लोग रोजी रोटी और , शरारत के पीछे,
तू खुद की ईमां और शराफत के पीछे।
दौलत की फ़िक्र में थे, सब तू मिला नहीं,
माजरा ये क्या है , बाजार में हिला नहीं।

अजय अमिताभ सुमन

Saturday, February 17, 2024

रंजिशें

राह में तो फूल थे,
कई खिले हुए,
वो थे रंजिशों के मारे,
जहर चुने हुए।
खामोशियों के दौर ने ,
हुनर क्या दे दिया,
कहा भी ना था मैंने ,
थे वो सुने हुए।

अजय अमिताभ सुमन

Saturday, February 10, 2024

मृत होकर मृतशेष रहे

या मर जाये या मारे चित्त,
में कर के ये दृढ निश्चय,

शत्रु शिविर को जो चलता हो ,
हार फले कि या हो जय।

समरअग्नि अति चंड प्रलय हो,
सर्वनाश हीं रण में तय हो,

तरुण बुढ़ापा ,युवा हीं वय हो ,
फिर भी मन से रहे अभय जो।

ऐसे युद्धक अरिसिंधु में , 
मिटकर भी सविशेष रहे।

जग में उनके अवशेष रहे ,
शूर मृत होकर मृतशेष रहे।

अजय अमिताभ सुमन 

Friday, February 2, 2024

बिन बोले सुन पाता कौन?

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बिन बोले सुन पाता कौन?

जो प्यासा पानी को कहता ,
अक्सर उसकी प्यास मिटी है,
जो निज हालत रोता रहता, 
कबतक उसकी सांस टिकी है?
बिना जुबां कटते जीव जंतु, 
छंट जाते सब पादप तंतु।
कहने वाले की सब सुनते, 
गूंगे तो चुप रह जाते मौन ।
न्याय मिले क्या हक़ ना मांगो,
बिन बोले सुन पाता कौन?

अजय अमिताभ सुमन 
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Thursday, February 1, 2024

ओ परबत के मूल निवासी

ओ परबत के मूल निवासी, भोले भाले शिव कैलाशी।
जब जब होता व्याकुल जग से, तब तुझको देखे अविनाशी।
भव तम को मन मुड़ जाता हैं ,घन जग बंधन जुड़ जाता हैं।
अंधकार तब होता डग में , काँटे बिछ जाते हैं पग में।
विचलित मन अब तुझे पुकारे, तमस हरो हे अपरिभाषी।
ओ परबत के मूल निवासी,भोले भाले शिव कैलाशी।
शिव शक्ति हीं राह हमारी, शिव की भक्ति चाह हमारी।
एक लक्ष्य हीं मेरा तय हो ,शिव कदमों में निजमन लय हो।
यही चाह ले इत उत घुमुं , अमरनाथ बदरीनाथ काशी।
ओ परबत के मूल निवासी,भोले भाले शिव कैलाशी।

अजय अमिताभ सुमन

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