Sunday, October 29, 2023

गर भिन्नता स्वीकार ना हो


क्या भला हो देश का गर भिन्नता स्वीकार ना हो।

देश के उत्थान में व्यवधान है बाधा गरीबी।

धर्म जाति भिन्नता ना , विघ्न है ब्याधा गरीबी।

किन्तु इसका ज्ञान हो हाँ ,मेधा का अपमान हो ना।

धर्म जाति  प्रान्त आदि , एकता प्रतिमान हों हाँ।

ज्ञान, बुद्धि, प्रज्ञा शुद्धि, आ सभी में हम जगाएँ।

सूत्र हो अभिन्नता का ,साथ डग मिलकर बढ़ाएँ।   

इस वतन के देशवासी, प्रांत भिन्न वेश भाषा भाषी,

रूप जाति रंग भिन्न अब आ कहें पर एक हैं सब?

धर्म जाति तोड़ने का अब यहाँ हथियार ना हो।

क्या भला हो देश का गर भिन्नता स्वीकार ना हो।


अजय अमिताभ सुमन

Saturday, October 21, 2023

स्वीकारोक्ति :एक राजपूत की:

निज जाति गुणगान ये सारा ,
क्यूं कर मैंने ना स्वीकारा।
राजपूत हूं बात सही है, 
पर मुझमें वो बात नही है।

क्या वीर थे वो सेनानी, 
क्षत्रियों की अमिट कहानी।
महाराणाप्रताप कुंवरसिंह 
क्या थे योद्धा स्वअभिमानी।

प्रभु राम जीवन अध्याय , 
प्राण जाय पर वचन न जाय।
आज समय की मांग नहीं है 
सत्यनिष्ठ कोई बन पाय।

शोणित में अंगार नहीं है 
सीने में हुंकार नहीं है।
राजपूत के वचनों में जो 
होता था वो धार नहीं है।

नियति का जो कालचक्र है 
सर्वप्रथम अब हुआ अर्थ है।
वर्तमान की चाह अलग कि 
शौर्य पराक्रम वृथा व्यर्थ है।

निज वाणी पर टिक रह जाना 
आज समय की मांग नहीं है।
वादे पर हीं मर मिट जाना, 
आज समय की मांग नहीं है।

आज वक्त कहता ये मुझसे , 
शत्रु मित्र की बात नहीं है।
एक आचरण श्रेयकर अब तो,
अर्थ संचयन बात सही है।

अर्थ संचयन करता रहता , 
निज वादे पे टिके न रहता।
राजपूत जो धारण करते 
ओज तेज ना रहा हमारा।
निज जाति सम्मान था प्यारा, 
पर इसकारण ना स्वीकारा।

अजय अमिताभ सुमन

Saturday, October 14, 2023

काम,क्रोध,भोग आदि मोक्ष भी परमार्थ है

काम,क्रोध,भोग आदि मोक्ष भी परमार्थ है


कृष्ण में अभिव्यक्ति है शक्ति की भक्ति की,

कर्म से आसक्ति तो फल से भी विरक्ति की।

राधा के कान्हा तो शकुनि के छलिया हैं,

काल दुर्योधन के  मुरली के रसिया हैं। 

कल्मष विकर्म आदि पातक प्रतिकूल वो,

धर्म कर्म मर्म  आदि जिनके अनुकूल हो।

सृष्टि की क्रिया प्रतिक्रिया के चक्र हैं,

सृष्टि के कर्ता भी कारक पर अक्र हैं।

साम,दाम,दंड, भेद ,विषदंत आवेग आदि,

लोभ का संवेग ना हीं मोह संवेग व्याधि।

युद्ध हो समक्ष गर जो शस्त्रों में दक्ष हैं,

पक्ष ना विपक्ष में ना कोई समकक्ष है।

आगत जो काल भी है , काल जो व्यतीत भी,

चल रहा जो आज भी है , गुजरा अतीत भी।

मन की चंचलता में, चित्त के अवधारण में,

सृष्टि की सृजना  संरक्षण  संहारण में।

रूप रंग देह धारी दृश्य दृष्टित भिन्न वो,

सृष्टि की भिन्नता से भिन्न अवच्छिन्न वो।

कृष्ण सर्व सत्व आदि  तत्व अनेकार्थ हैं,

काम,क्रोध,भोग आदि मोक्ष भी परमार्थ है।      


अजय अमिताभ सुमन 

Saturday, October 7, 2023

तेरा यूं मुकर जाना

 होगा क्या मुकरोगे,तुम जो किसी बात पे?

बिगड़ेगा तेरा क्या इतनी सी बात पे?

कहते तो ठीक हो पर याद जभी आओगे,

जेहन में बरबस बरबाद याद आओगे।

याद रह जायेगा ,तेरा यूँ बदलना,

कि करके वो वादा, वादे पे मुकरना।

किया किसपे भरोसा ये शिकवा रहेगा,

इस खोटे से रिश्ते झूठे से जज्बात पे।

गर ना सुधर जाते हो इतनी सी बाते पे,

गर तुम मुकर जाते हो इतनी सी बाते पे। 


अजय अमिताभ सुमन 

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