Saturday, April 27, 2024

जंजीर

जंजीर


जहाँ आदम की जात और बाते हों पीर की। 

प्यादे की चाल और  बातें वजीर की। 

खेत हो किसानों के गेहूं अमीर की। 

अमन के नाम पर बातें हो तीर की। 

देख कहीं तो क्या हिंद आ गये है हम? 

कि चीखती पुकार पर बाते जंजीर की। 


अजय अमिताभ सुमन

Sunday, April 21, 2024

खंजर

पुराना सा कोई मंजर, सीने में खल गया,

ये उठा दर्द और जी मचल गया। 

बेफिक्री के आलम में यादों का खंजर,

चला तो क्या बुरा था, कि तू संभल गया,


अजय अमिताभ सुमन

Sunday, March 10, 2024

आजमाइस

मैदान में शिकस्त की,

फिर से गुंजाइश हो,

उस शख्स के हौसले की,

फिर क्या आजमाइश हो?

कोई जीत भी जाए,

पर वो हारेगा क्या?

कि लड़खड़ाकर जिसको,

संभलने की ख्वाहिश हो। 


अजय अमिताभ सुमन

Saturday, March 2, 2024

जात आदमी के

आसां नहीं समझना हर बात आदमी के,

कि हंसने पर हो जाते वारदात आदमी के।

बुझते नहीं कफन से,अरमां दफ़न दफ़न से,

जलते हैं तन बदन से, आलात आदमी के।

कि दिन में है बेचैनी और रातों को उलझन,

संभले नहीं संभलते  हालात आदमी के।

खुदा भी इससे हारा, इसे चाहिए जग सारा,

जग बदले पर बदले ना , जात आदमी के।


अजय अमिताभ सुमन

Sunday, February 25, 2024

बाजार में हिला नहीं

बाजार में हिला नहीं

तू भी क्या चीज है,कि नाम का गिला नहीं ,
शोहरत की दौड़ में थे सब, तू हिला नहीं।
लोग रोजी रोटी और , शरारत के पीछे,
तू खुद की ईमां और शराफत के पीछे।
दौलत की फ़िक्र में थे, सब तू मिला नहीं,
माजरा ये क्या है , बाजार में हिला नहीं।

अजय अमिताभ सुमन

Saturday, February 17, 2024

रंजिशें

राह में तो फूल थे,
कई खिले हुए,
वो थे रंजिशों के मारे,
जहर चुने हुए।
खामोशियों के दौर ने ,
हुनर क्या दे दिया,
कहा भी ना था मैंने ,
थे वो सुने हुए।

अजय अमिताभ सुमन

Saturday, February 10, 2024

मृत होकर मृतशेष रहे

या मर जाये या मारे चित्त,
में कर के ये दृढ निश्चय,

शत्रु शिविर को जो चलता हो ,
हार फले कि या हो जय।

समरअग्नि अति चंड प्रलय हो,
सर्वनाश हीं रण में तय हो,

तरुण बुढ़ापा ,युवा हीं वय हो ,
फिर भी मन से रहे अभय जो।

ऐसे युद्धक अरिसिंधु में , 
मिटकर भी सविशेष रहे।

जग में उनके अवशेष रहे ,
शूर मृत होकर मृतशेष रहे।

अजय अमिताभ सुमन 

Friday, February 2, 2024

बिन बोले सुन पाता कौन?

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बिन बोले सुन पाता कौन?

जो प्यासा पानी को कहता ,
अक्सर उसकी प्यास मिटी है,
जो निज हालत रोता रहता, 
कबतक उसकी सांस टिकी है?
बिना जुबां कटते जीव जंतु, 
छंट जाते सब पादप तंतु।
कहने वाले की सब सुनते, 
गूंगे तो चुप रह जाते मौन ।
न्याय मिले क्या हक़ ना मांगो,
बिन बोले सुन पाता कौन?

अजय अमिताभ सुमन 
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Thursday, February 1, 2024

ओ परबत के मूल निवासी

ओ परबत के मूल निवासी, भोले भाले शिव कैलाशी।
जब जब होता व्याकुल जग से, तब तुझको देखे अविनाशी।
भव तम को मन मुड़ जाता हैं ,घन जग बंधन जुड़ जाता हैं।
अंधकार तब होता डग में , काँटे बिछ जाते हैं पग में।
विचलित मन अब तुझे पुकारे, तमस हरो हे अपरिभाषी।
ओ परबत के मूल निवासी,भोले भाले शिव कैलाशी।
शिव शक्ति हीं राह हमारी, शिव की भक्ति चाह हमारी।
एक लक्ष्य हीं मेरा तय हो ,शिव कदमों में निजमन लय हो।
यही चाह ले इत उत घुमुं , अमरनाथ बदरीनाथ काशी।
ओ परबत के मूल निवासी,भोले भाले शिव कैलाशी।

अजय अमिताभ सुमन

Saturday, January 27, 2024

जबतक श्रम का सम्मान नहीं

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जबतक श्रम का सम्मान नहीं


तबतक पथ पर विश्राम नहीं जबतक श्रम का सम्मान नहीं।

धूल शूल सब कंकड़ पत्थर सुख दुख अनुभव सभी आवश्यक।

फूल की खुशबू प्यारी तन को शूल चुभन मन अति आवश्यक।

फले नहीं हों स्वअनुभव जो जीवन पथ पर धूप छांव के।

क्या  राही बन सकता कोई घिसे नहीं पद छाप पांव के?

बिना क्षुधा के फल क्या बंधु, बिना बीज के हल क्या सिंधु?

बिना पसीना फल के मिल जाने में है गुणगान नहीं।

कि हाथों में सोना होता पर इसकी पहचान नहीं।


अजय अमिताभ सुमन

Saturday, January 20, 2024

ओ परबत के मूल निवासी

ओ परबत  के मूल निवासी, 

भोले भाले शिव कैलाशी।


जब जब होता व्याकुल जग से, 

तब तुझको देखे अविनाशी। 


भव तम को मन मुड़ जाता हैं ,

घन जग बंधन जुड़ जाता हैं।


अंधकार तब होता डग में , 

काँटे बिछ जाते हैं पग में।


विचलित मन अब तुझे पुकारे, 

तमस हरो हे अपरिभाषी।


ओ परबत  के मूल निवासी,

भोले भाले शिव कैलाशी।


शिव शक्ति हीं राह हमारी, 

शिव की भक्ति चाह हमारी।


एक लक्ष्य हीं मेरा तय हो ,

शिव कदमों में निजमन लय हो।


यही चाह ले इत उत घुमुं , 

अमरनाथ बदरीनाथ काशी।


ओ परबत  के मूल निवासी,

भोले भाले शिव कैलाशी।


अजय अमिताभ सुमन 

Sunday, January 14, 2024

कंटक पथ


कंटक जीवन पथ के राही,
लड़ कर पथ पर बढ़ना होगा।

कठिनाई पर पलने वाले,
राही निज को गढ़ना होगा।

द्रोण नहीं सबको मिलते हैं,
भीष्म नहीं सबको गढ़ते हैं।

परशुराम से क्या हो याचन,
श्राप दया में हीं मिलते हैं।

तू खुद से हीं ध्यान लगाकर,
निज हीं निज संधान चढ़ाकर।

जीवन पथ पर चलने वाले,
जीवन पथ रण लड़ना होगा।

ऐसे तुझको चढ़ना होगा,
ऐसे खुद को गढ़ना होगा।

अजय अमिताभ सुमन

Saturday, January 6, 2024

चिंगारी बन लड़ा नहीं जो

चिंगारी बन लड़ा नहीं जो, 
उसने कब इतिहास लिखा है?
अंधेरों में जला नहीं जो, 
उससे कब  प्रकाश खिला है?
किसी फूल के रसिया को, 
शुलों से नफरत नहीं चलेगा,
धूप छाँव पानी से बचकर, 
ना अड़हुल पर कुसुम खिलेगा।
ग्रीष्म मेघ वृष्टि बरखा से,
जो भिड़ते गाथा रचते,
शीत ताप से जो बच रहते ,
उनको कब मधुमास दिखा है?
चिंगारी बन लड़ा नहीं जो, 
उसने कब इतिहास लिखा है?

@अजय अमिताभ सुमन

Saturday, December 30, 2023

मुद्रा नियमित शिक्षण

येन केन धन अर्जन हीं हो ,
जब शिक्षा का लक्ष्य प्रधान,

मुद्रा नियमित शिक्षण और,
द्रव्यार्जन को मिलता सम्मान।

ज्ञान की वृद्धि बोध की शुद्धि ,
का शिक्षक को ध्यान नहीं,

प्रज्ञा दोष के निस्तारण का ,
शिक्षक को अभिज्ञान नहीं।

तब उस विद्यालय में कोई ,
बोध का दर्पण क्या होगा?

विद्यार्थी व्यवसाय  पिपासु ,
ज्ञान विवर्धन  क्या होगा?

 याद रहे गर देश में  शिक्षण,
 बना हुआ मजदूरी हो ,

 शक्ति संचय अति आवश्यक,
 शिक्षण गैर जरुरी हो।

तब राष्ट्र में बेहतर शिक्षक ,
अक्सर हीं हो जाते मौन ।

और राष्ट्र पर आती आपद ,
अभिवृद्धि हो जाती गौण।

 अजय अमिताभ सुमन

Sunday, December 17, 2023

सृष्टि की अभिदृष्टि कैसी?

मैं तो भव में पड़ा हुआ ,
भव सागर वन में जलता हूँ,
ये बिना आमंत्रण स्वर कैसा ,
अंतर में सुनता रहता हूँ?
जग हीं शेष है बचा हुआ.
चित्त के अंदर बाहर भी,
ना कोई है सत्य प्रकाशन ,
कोई तथ्य उजागर भी।
मेरे जीवन में जो कुछ भी,
अबतक देखा करता था,
अनुभव वो हीं चले निरंतर,
जो सीखा जग कहता था।
बात हुई कुछ नई नई पर ,
ये क्या किसने है बोला ?
अदृष्टित दृष्टि में कोई ,
प्रश्न वोही किसने खोला?
मेरे हीं मन की है सारी,
बाते कैसे जान रहा?
ढूंढ ढूंढ के प्रश्न निरंतर,
लाता जो अनजान रहा?
सृष्टि की अभिदृष्टि कैसी,
सृष्टि का अवसारण कैसा?
ये प्रश्न रहा क्यों है ऐसा,
अदृष्टित का सांसरण कैसा?

अजय अमिताभ सुमन

Sunday, December 10, 2023

जब भी अपनी दांत दिखाते

जाने किसकी बात मान के,
बुद्धि किसकी सही जान के?
क्या घुटी चख आए टीचर,
चश्मा आंख लगाए टीचर।
जब मास्टर जी कक्षा आए,
चश्मा नाकों आँख चढ़ाए।
तब टिंकू ने कान खुजाया,
टीचर जी को नाक दिखाया।
पूछा सर जी क्या करते हैं?
कमरे में चश्मा धरते हैं?
कक्षा में है घोर अंधेरा,
कड़ी धूप ना कोई सबेरा।
फिर कैसी ये आफत आई,
काला चश्मा आंख चढ़ाई?
ज्यों टिंकू ने प्रश्न उठाया,
मास्टर जी ने राज बताया।
बोले बच्चे तुम सब तेज,
आंखों से चमकाते मेज।
जब भी अपनी दांत दिखाते,
सूरज को औकात दिखाते।
तुमसे लाइट इतनी आती,
आंखों को है बहुत सताती।
तिसपे क्या है तेज दिमाग,
जलता जैसे कोई चिराग।
इसी आग से बचना पड़ता,
काला चश्मा रखना पड़ता।

अजय अमिताभ सुमन 

Sunday, December 3, 2023

कुछ तो लॉयर हैं चंडुल

केस थे मेरे  सब निपटा के, 
कोर्ट का गाउन बैंड हटा के,
टी कैंटीन में मांगा चाय, 
लॉयर मित्र ने पूछा हाय।
पूछा ग्यारह अभी बजा है,
कोट बैंड सब किधर चला है?
चाय चर्चा पर मेरी बात,
दबे हुए निकले जज्बात।
अंग्रेजों का है ये चोला,
अच्छा हीं जो मैने खोला।
ठंड बहुत पड़ती हैं यू.के. 
बात यही कहता है जी.के.।
भारत का मौसम ना ठंडा, 
फिर गाउन का कैसा फंडा?
ये तो अच्छी बात हुई है, 
सर पे विग ना चढ़ी हुई है।
जात फिरंगी की क्यों माने?
निज पहचान से रहें बेगाने?
मेरे मित्र ने चिढ़ के बोला, 
सबको एक तराजू तोला?
बैरिस्टर विग साथ नहीं है,
कुछ के माथे नाथ नहीं है।
बैरिस्टर विग की कुछ गाथा,
दूर करे सच में कुछ  व्यथा ।
जिनके सर चंदा उग आते,
बैरिस्टर विग राज छुपाते।
फिर विग को क्यों कहें फिजूल?
कुछ तो लॉयर हैं चंडुल।

अजय अमिताभ सुमन

Wednesday, November 29, 2023

बह रही है ज्ञान गंगा

बह रही है ज्ञान गंगा, तू भी इसमें हाथ धो लेहै

 तेरी खिदमत में कितने, डिग्री की दुकान खोले

भेद नहीं करती ये गंगा, कला व विज्ञानं में
कोई मेहनत की जरुरत, है नहीं स्नान में
ले ले प्रतिष्ठा डूब दे दे गंग के प्रधान बोले
है तेरी खिदमत में कितने, डिग्री की दुकान खोले
गंग तट पर भीर बहुत है पर न तू घबराना
खोल पाप की गठरी वही पञ्च डूब दे आना
जा के विमला गंग तरन की थोरी सि सामान लेले
है तेरी खिदमत में कितने, डिग्री की दुकान खोले
जब प्रतिष्ठा की डिग्रीया तेरे हाथ आएगी
माँ शारदे तेरी प्रगति देख कर जल जाएगी
बहुत कर चुकी फेल वो सबको अब तो थोरा वो भी रोले
है तेरी खिदमत में कितने, डिग्री की दुकान खोले;

पंकज बनगमिया

Sunday, November 26, 2023

क्यों पढ़ा नहीं भूगोल?


पापा पूछे रिंकू बेटा, 

मचा हुआ क्या खेल?


गणित परीक्षा में कर आया, 

तू क्यों अव्वल फेल?


रिंकू बोला अजब कहानी, 

पर पापा मुझको बतलानी,


टीचर से रिश्ता मेरा ,

ऐसा वैसा कैसा समझानी।


प्रश्न पत्र में टीचर ने थे, 

ऐसे प्रश्न बिठाए,


काम ना आती अपनी बुद्धि , 

कैसे जुगत भिड़ाए।


गुस्से में हमने भी आकर , 

क्या क्या था लिख डाला,


एक प्रश्न के चार थे उत्तर , 

सबका सब टिक डाला।


गणित पत्र में वही प्रश्न थे , 

उनको जो भाता था,


उत्तर में लिख डाले मैंने , 

जो मुझको आता था।


मैथ के पेपर में धरती का , 

नक्शा डाला गोल,


टीचर की हीं गलती थी क्यों, 

पढ़ा नहीं भूगोल?


अजय अमिताभ सुमन 

Sunday, November 19, 2023

परम तत्व का हूँ अनुरागी

ना पद मद मुद्रा परित्यागी,
परम तत्व का पर अनुरागी।

इस जग का इतिहास रहा है,
चित्त चाहत का ग्रास रहा है।

अभिलाषा अकराल गहन है,
मन है चंचल दास रहा है।

सरल नहीं भव सागर गाथा, 
मूलतत्व की जटिल है काथा।

परम ब्रह्म चिन्हित ना आशा, 
किंतु मैं तो रहा हीं प्यासा।  

मृगतृष्णा सा मंजर जग का,
अहंकार खंजर सम रग का।

अक्ष समक्ष है कंटक मग का, 
किन्तु मैं कंट भंजक पग का।

पोथी ज्ञान मन मंडित करता,
अभिमान चित्त रंजित करता।

जगत ज्ञान मन व्यंजित करता, 
आत्मज्ञान भ्रम खंडित करता।

हर क्षण हूँ मैं धन का लोभी,
चित्त का वसन है तन का भोगी।

ये भी सच अभिलाषी पद का ,
जानूं मद क्षण भंगुर जग का।

पद मद हेतु श्रम करता हूँ,
सर्व निरर्थक भ्रम करता हूँ।

जग में हूँ ना जग वैरागी ,
पर जग भ्रम खंडन का रागी।

देहाशक्त मैं ना हूँ त्यागी,
परम तत्व का पर अनुरागी।

अजय अमिताभ सुमन 

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