Saturday, December 24, 2022

किवाड़ खा गई


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सबूत भी गवाह भी
किवाड़ खा गई,
जालिम ये दीमक सारी,  
मक्कार खा गई।
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हराम की थी  रातें, 
छिपी सी मुलाकातें ,
किसने खिलाये क्या गुल,
गुमनाम सारी बातें।
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आस्तीन में छुपे हुए, 
गद्दार खा गई ,
जालिम ये दीमक सारी, 
मक्कार खा गई।
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जिस रोड के थे चर्चे , 
जिस पर हुए थे खर्चे ,
लायें कहाँ से उसको , 
लिख लिख भरे थे पर्चे।
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कि झूठ पर फले सब , 
रोजगार खा गई,
जालिम ये दीमक सारी,  
मक्कार खा गई।
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फाइल में बन पड़ी थी , 
चौपाल की जो बातें,
ना ब्रिज वो दिखती है , 
बस नाम की हीं बातें।
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दफ्तर के  काले चिट्ठे ,
कारोबार खा गई,
जालिम ये दीमक सारी,  
मक्कार खा गई।
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अजय अमिताभ सुमन
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Sunday, December 18, 2022

खबर हादसे की


खबर का मुख्य उद्देश्य समाज में विश्वास , आस्था और भाईचारे की नींव को मजबूत करना होता है ना रोष , नफरत और दहशत की अग्नि को फैलाना । परंतु क्या वर्तमान समय में पत्रकारिता के संदर्भ यही बात कही जा सकती है ? यदि कोई हादसा , घटना या दुर्घटना समाज के बड़े तबके में सनसनी पैदा करने में सक्षम नहीं है तब भी क्या वो आजकल अखबार में छप जाने के काबिल हो सकती है? पत्रकारिता का ध्येय येन केन प्रकारेण स्वयं के उत्थान के लिए चटपटी खबरें बनाना और फैलाना नहीं अपितु  राष्ट्र के हित में कटु सत्य को सामने लाना है होता है जो कि वर्तमान समय में लगभग लुप्तप्राय हीं है। नकारात्मक पत्रकारिता पर व्ययंगात्मक रूप से चोट पहुंचाती हुई प्रस्तुत है मेरी कविता "खबर हादसे की"।

ना माथे पर शिकन कोई,
ना रूह में कोई भय है,
ना दहशत हीं फैली ,
ना हिंसा परलय है
हादसा हुआ तो है,
लहू भी बहा मगर,
खबर भी बन जाए,
अभी ना तय है,
माहौल भी नरम है,
अफवाह ना गरम है,
आवाम में अमन है, 
कोई रोष ना भरम है,
बिखरा नहीं चमन है , 
अभी आंख तो नरम है
थोड़ी बात तो बढ़ जाए,
थोड़ी आग तो लग जाए,
रहने दो खबर बाकी,
रहने दो असर बाकी, 
लोहा जो कुछ गरम हो,
असर तभी चरम हो,
ठहरो कि कुछ पतन हो ,
कुछ राख में वतन हो, 
अभी खाक क्या मिलेगा,
खबर में कुछ भी दम हो,
अखबार में आ जाए,
अभी ना समय है,
सही ना समय है,
सही ना समय है।

अजय अमिताभ सुमन

Sunday, December 4, 2022

गदा हनुमान जी की



हनुमान जी का चरित्र आम जन मानस में एक प्रभु श्री राम भक्त, ज्ञानी और अति शक्तिशाली योद्धा के रूप में व्याप्त है। उन्हें पूज्यनीय ऐसे हीं नहीं माना जाता है।

एक शक्तिशाली योद्धा के रूप में उनके पास हथियार की परिकल्पना करना कोई अतिशयोक्ति नहीं हैं।जाहिर सी बात है जब बात उनके पराक्रम को करनी हो तो उनके महान शक्तिशाली गदा को कोई कैसे भूल सकता है। 

लगभग हरेक कथाओं में हनुमान जी को गदा के साथ हीं दिखाया जाता है। अगर उनके पास गदा था तो उन्होंने युद्ध के समय गदा का प्रयोग किया हीं होगा। 

अगर उनके पास गदा होगी तो रावण के साथ भीषण युद्ध में उसका इस्तेमाल जरुर किया होगा । देखने वाली बात ये है कि वाल्मिकी रचित रामायण में महावीर जी द्वारा गदा के प्रयोग करने का जिक्र आता है कि नहीं?

जब हनुमान जी के साथ अकम्पन का युद्ध होता है, तब वो वृक्ष का उपयोग करते है। एक वृक्ष को हथियार के रूप में चलाकर अकमपन का वध करते हैं।

रावण और हनुमान जी के साथ जब युद्ध होता है तब रावण के द्वारा चलाए गए हथियार के प्रतिउत्तर में वो उसे जोर से थप्पड़ मारते हैं।

एक समय रावण द्वारा लक्ष्मण घायल कर दिए जाते हैं। फिर रावण जब लक्ष्मण जी को उठाने की कोशिश करता है तब हनुमान जी उसे जोर से घुसा मारकर हटा देते हैं।

इसी प्रकार निकुंभ नामक राक्षस का वध उसके सर को अपने हाथों द्वारा मरोड़कर कर देते है। तो दूसरी ओर मेघनाद के साथ युद्ध में हनुमान जी एक शिलाखंड का प्रयोग करते हैं।

 वाल्मिकी रामायण में हनुमान जी द्वारा राम रावण युद्ध में भाग लेने की इन घटनाओं का निरीक्षण करते हैं तो हम पाते हैं कि कहीं भी हनुमान जी गदा के प्रयोग करने की बात सामने नहीं आती है। 
 
लगभग हर जगह वो अपने हाथों ,मुक्कों, पेड़ , शिला , पहाड़  और अपनी शारीरिक शक्ति का ही प्रयोग करते दिखते हैं। 

उनके द्वारा कहीं भी गदा के इस्तेमाल करने का वर्णन नहीं है।इन सब बातों से ये प्रतीति होती हैं कि हनुमान जी के पास कोई गदा थी हीं नहीं। 

जाहिर सी बात है , जो योद्धा अपनी शिशु अवस्था में हीं सूर्य को फल समझ कर आकाश में 400 योजन की छलांग लगा सकता था , उसे भला किसी गदा की जरूरत हो भी कैसे सकती थी ?

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित 

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