Saturday, January 27, 2024

जबतक श्रम का सम्मान नहीं

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जबतक श्रम का सम्मान नहीं


तबतक पथ पर विश्राम नहीं जबतक श्रम का सम्मान नहीं।

धूल शूल सब कंकड़ पत्थर सुख दुख अनुभव सभी आवश्यक।

फूल की खुशबू प्यारी तन को शूल चुभन मन अति आवश्यक।

फले नहीं हों स्वअनुभव जो जीवन पथ पर धूप छांव के।

क्या  राही बन सकता कोई घिसे नहीं पद छाप पांव के?

बिना क्षुधा के फल क्या बंधु, बिना बीज के हल क्या सिंधु?

बिना पसीना फल के मिल जाने में है गुणगान नहीं।

कि हाथों में सोना होता पर इसकी पहचान नहीं।


अजय अमिताभ सुमन

Saturday, January 20, 2024

ओ परबत के मूल निवासी

ओ परबत  के मूल निवासी, 

भोले भाले शिव कैलाशी।


जब जब होता व्याकुल जग से, 

तब तुझको देखे अविनाशी। 


भव तम को मन मुड़ जाता हैं ,

घन जग बंधन जुड़ जाता हैं।


अंधकार तब होता डग में , 

काँटे बिछ जाते हैं पग में।


विचलित मन अब तुझे पुकारे, 

तमस हरो हे अपरिभाषी।


ओ परबत  के मूल निवासी,

भोले भाले शिव कैलाशी।


शिव शक्ति हीं राह हमारी, 

शिव की भक्ति चाह हमारी।


एक लक्ष्य हीं मेरा तय हो ,

शिव कदमों में निजमन लय हो।


यही चाह ले इत उत घुमुं , 

अमरनाथ बदरीनाथ काशी।


ओ परबत  के मूल निवासी,

भोले भाले शिव कैलाशी।


अजय अमिताभ सुमन 

Sunday, January 14, 2024

कंटक पथ


कंटक जीवन पथ के राही,
लड़ कर पथ पर बढ़ना होगा।

कठिनाई पर पलने वाले,
राही निज को गढ़ना होगा।

द्रोण नहीं सबको मिलते हैं,
भीष्म नहीं सबको गढ़ते हैं।

परशुराम से क्या हो याचन,
श्राप दया में हीं मिलते हैं।

तू खुद से हीं ध्यान लगाकर,
निज हीं निज संधान चढ़ाकर।

जीवन पथ पर चलने वाले,
जीवन पथ रण लड़ना होगा।

ऐसे तुझको चढ़ना होगा,
ऐसे खुद को गढ़ना होगा।

अजय अमिताभ सुमन

Saturday, January 6, 2024

चिंगारी बन लड़ा नहीं जो

चिंगारी बन लड़ा नहीं जो, 
उसने कब इतिहास लिखा है?
अंधेरों में जला नहीं जो, 
उससे कब  प्रकाश खिला है?
किसी फूल के रसिया को, 
शुलों से नफरत नहीं चलेगा,
धूप छाँव पानी से बचकर, 
ना अड़हुल पर कुसुम खिलेगा।
ग्रीष्म मेघ वृष्टि बरखा से,
जो भिड़ते गाथा रचते,
शीत ताप से जो बच रहते ,
उनको कब मधुमास दिखा है?
चिंगारी बन लड़ा नहीं जो, 
उसने कब इतिहास लिखा है?

@अजय अमिताभ सुमन

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