Sunday, January 15, 2023

फिर से सतयुग भू पर लाओ


विधी न्याय संकल्प प्रलापित,
किंतु कैसा कल्प प्रकाशित?
दुर्योधन का राज चला है,
शकुनि पाशे को मचला है।

एकलव्य फिर हुआ उपेक्षित,
अंधे का साम्राज्य फला है।
जब पांचाली वस्त्र हरण हो,
अभिमन्यु के जैसा रण हो।

चक्रव्यूह कुचक्र रचा कर,
एक रथी का पुनः मरण हो।
धर्मराज पाशे के प्यासे,
लिप्त भोग के संचय में।

न्याय नीति का हुआ विस्मरण,
पड़े विदुर अति विस्मय में।
अधर्म हीं आज  रीत है,
न्याय तराजू मुद्रा क्रीत है।

भीष्म सत्य का छद्म प्रवंचन,
द्रोण माणिक पर करे हैं नर्तन।
धृष्ट्र राष्ट्र तो है हीं अंधे,
कुटिलों के हीं चलते धंधे।

फिर भी अबतक आस वही है ,
हाँ तुझपर विश्वास वही है।
हम  तेरे हीं  दर पर  जाते,
पर दुविधा में हम पड़ जाते।

क्योंकि पाप अनल्प बचा है,
ना कोई विकल्प बचा है।
नीति युक्त ना क्रियाकल्प है,
तिमिर घनेरा आपत्कल्प है।

दिग दिगंत पर अबला नारी,
नर पिशाच के हाथों हारी।
हास लिप्त हैं अत्याचारी,
दुःसंकल्प युक्त व्यभिचारी।

संशय तब संभावी होता,
निःसंदेह प्रभावी होता।
धर्मग्रंथ के अंकित वचनों,
का परिहास स्वभावी होता।

आखिर क्यों वचनों को मानें,
बात लिखी उसको सच जाने।
आस कहां  हम करें प्रतिष्ठित,
निज चित्त में ये प्रश्न अधिष्ठित।

जिस न्याय की बात बता कर,
सत्य हेतु विध्वंस रचा कर।
किए कल्प का जो अभियंत्रण , 
वही कल्प दे रहा निमंत्रण।

हे कृष्ण हे पार्थ सारथी,
सकल विश्व के परमारथी।
आर्त हृदय से धरा पुकारे,
धरा व्याप्त है आज स्वारथी।

नीति पुण्य का जब क्षय होगा,
और अधर्म का जब जय होगा।
तुम कहते थे तुम आओगे ,
कदाचार क्षय कर जाओगे।

कुत्सित आज आचार बड़ा है,
दु:शासन से आर्त धरा है।
कहाँ न्याय है कहाँ धर्म है?
दुराचार पथभ्रष्ट कर्म है।

क्या इतना नाकाफी तुझको,
दिखती  नाइंसाफी तुझको?
दुष्कर्मी व्यापार फला जब,
किसका इंतज़ार भला अब?

तेरे कहे धर्म क्षय कब होता,
पापाचार का कब जय होता?
और कितने दुष्कर्म फलेंगे,
तब जाके तेरे पांव  पड़ेंगे?

कान्हा आखिर कब आओगे?
बात कही जो कर पाओगे।
अति त्रस्त हम हमें बचाओ ,
धर्म पताका फिर फहराओ।

नीति न्याय का जो आलापन,
था उसका कुछ लो  संज्ञापन।
वचनों में संकल्प दिखाओ,
फिर से सतयुग भूपर लाओ।

अजय अमिताभ सुमन

Sunday, January 8, 2023

चीन और महाभारत


यदि कोई आपसे कहे कि महाभारत काल में चीन भी भारत का अंग था , तो क्या आप इस बात पर भरोसा कर सकेंगे? लेकिंन महाभारत में इस बात का जिक्र आता है कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण इस बात की पुष्टि करते हैं कि चीन का सम्राट युद्धिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में उनकी अधीनता स्वीकार करते हुए आया था। यहाँ तक कि राजा मान्धाता भी इस बात की पुष्टि करते हैं चीन भारत का अंग था। महाभारत के आदि पर्व , सभा पर्व , वन पर्व , उद्योग पर्व , भीष्म पर्व और शांति पर्व में चीन का जिक्र आता है। आइये एक एक कर  सारे घटनाक्रमों को देखते हैं । 


चीन का सर्वप्रथम जिक्र महाभारत के आदि पर्व में आता है । आदि पर्व के चैत्र रथ पर्व में इस बात का जिक्र आता है कि अर्जुन से चैत्र रथ नामक गन्धर्व का युद्ध होता है। जब गन्धर्व ही अर्जुन से हार हो जाती है तब वो अर्जुन से मित्रता करके अनेक कहानियां बताता है । इसी घटना क्रम में अर्जुन को ताप्ती नंदन कहकर संबोधित करता है , तो इसी दौरान विश्वामित्र और वशिष्ठ के बीच लड़ाई का भी जिक्र करता है । जब गन्धर्व विश्वामित्र और वशिष्ठ के बीच की लड़ाई का वर्णन करता है तब बताता है कि कैसे नंदिनी गाय ने क्रुद्ध होकर अनेक देशों को जन्म दिया और उनमें से एक चीन भी था । इस घटनाक्रम को विस्तारपूर्वक देखते हैं।


चीन का वर्णन महाभारत में दूसरी बार सभा पर्व के दिग्विजय पर्व में आता जब अर्जुन भारतवर्ष के उत्तर भाग स्थित प्रदेशों का दौरा करते हैं और इन प्रदेशों को जीतते चले जाते हैं। इसी क्रम में अर्जुन का प्रागज्योतिनरेश राजा भागदत्त के साथ युद्ध का वर्णन है। जब राजा भागदत के प्रदेश का वर्णन किया किया है वहीं पर इसके सीमावर्ती प्रदेशों में एक चीन का भी वर्णन किया गया है।


चीन का तीसरी बार जिक्र स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के मुख से किया है जो कि वन पर्व के इंद्र लोक गमन पर्व में उद्धृत है। कौरवों द्वारा जुए में हार जाने के बाद जब पांडव वन में जाने को बाध्य हो जाते हैं तब भगवान श्रीकृष्ण उनसे मिलने आते हैं। यहां पर श्रीकृष्ण बताते है कि कैसे राजसूय यज्ञ में चीन का राजा भी  युद्धिष्ठिर के रसोइ में आया था। छल द्वारा धर्मराज का राज्य छीन लिया गया था इसी कारण श्रीकृष्ण आगे प्रतिज्ञा भी करते हैं कि वो पांडवों को उनका छीना हुआ राज्य वापस दिला देंगे।


चीन का चौथी बार जिक्र उद्योग पर्व के भगवदयान पर्व  में आता है। जब श्रीकृष्ण संधि का प्रस्ताव लेकर जाने वाले होते हैं तब भीम उन्हें आगाह करते हैं। दुर्योधन की क्रोधपूर्ण वृत्ति से आगाह करते हुए श्रीकृष्ण से कटु बातें नहीं करने की सलाह भी देते हैं। अपनी बात को देखने के लिए भीम श्रीकृष्ण को 16 राजवंशों का नाम भी बताते हैं और ये भी चेताते  हैं कि कैसे उन वंशों के राजाओं द्वारा पूरे वंश का सर्वनाश किया गया। इसी प्रक्रम में भीम द्वारा चीन के एक राजवंश का वर्णन किया गया है। 


चीन का पांचवी बार जिक्र भीष्म पर्व के भूमि पर्व में आता है जब धृतराष्ट्र के पूछने पर संजय  दुर्योधन द्वारा अधीन पूरे भारतवर्ष का वर्णन करते है। यहीं पर  पर संजय पुरे भारत वर्ष का वर्णन करते हैं और चीन को दुर्योधन द्वारा शासित प्रदेशों में से एक प्रदेश बताते हैं।


चीन का छठी बार जिक्र महाभारत के शांति पर्व के राजधार्मनुशासन पर्व  में आता है। युद्ध खत्म होने के बाद जब भीष्म पितामह अपने शरीर का त्याग नहीं करते हैं और सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार करते हैं तब युद्धिष्ठिर उनसे जाकर जीवन की शिक्षा लेते हैं । इसी प्रक्रम में जब युद्धिष्ठिर भीष्म पितामह  से राजधर्म के बारे में पूछते हैं , तब भीष्म उन्हें राजा मान्धाता और इंद्र के बीच हुए संवाद का वर्णन करते हैं। इसी संवाद में राजा मांधाता द्वारा चीन को अपने द्वारा शासित प्रदेशों में से एक बताया गया है।


यद्यपि महाभारत के वनपर्व के अजगर पर्व की एक और घटना है जहां पर राजा सुबाहु के हिम प्रदेश का वर्णन आता है, फिर भी चीन शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है। पांडवों के गंद मादन , बदरिकाश्रम , सुबहुनगर में प्रवेश का वर्णन किया है । बाद  की घटनाओं में भीम के पूर्वज राजा नाहुष द्वारा, जो कि एक अजगर बन गए थे, भीम को जकड़ने तथा युधिष्ठिर द्वारा उस अजगर बने नाहुष के प्रश्नों का उत्तर देने के बाद भीम के बंधन मुक्त होने का वर्णन किया गया है। इसी क्रम में  सुबाहु के हिम प्रदेश का वर्णन है जिसे कुछ अन्य किताबों में चीन के नाम से संबोधित किया गया है।


इस प्रकार हम देखते हैं कि चीन का वर्णन महाभारत में लगभग 7 स्थानों पर वर्णन आता है। इन उल्लेखों से एक बात तो साफ जाहिर हो जाता है कि न केवल भगवान श्रीकृष्ण, भीम , अर्जुन, चित्र रथ नामक गंधर्व, संजय, भीष्म पितामह, युधिष्ठिर बल्कि राजा मांधाता और इंद्र इन सबको चीन के बारे में जानकारी थी। इन उल्लेखों से ये भी साबित होता है कि चीन कभी ना कभी वृहद भारत का हिस्सा रहा था और इसकी सीमा केवल चीन ही नहीं, अपितु आज के पाकिस्तान, अफगानिस्तान, यवन ,ईरान , उज़्बेकिस्तान आदि स्थानों तक फैला हुआ था।


अजय अमिताभ सुमन 

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