Saturday, December 30, 2023

मुद्रा नियमित शिक्षण

येन केन धन अर्जन हीं हो ,
जब शिक्षा का लक्ष्य प्रधान,

मुद्रा नियमित शिक्षण और,
द्रव्यार्जन को मिलता सम्मान।

ज्ञान की वृद्धि बोध की शुद्धि ,
का शिक्षक को ध्यान नहीं,

प्रज्ञा दोष के निस्तारण का ,
शिक्षक को अभिज्ञान नहीं।

तब उस विद्यालय में कोई ,
बोध का दर्पण क्या होगा?

विद्यार्थी व्यवसाय  पिपासु ,
ज्ञान विवर्धन  क्या होगा?

 याद रहे गर देश में  शिक्षण,
 बना हुआ मजदूरी हो ,

 शक्ति संचय अति आवश्यक,
 शिक्षण गैर जरुरी हो।

तब राष्ट्र में बेहतर शिक्षक ,
अक्सर हीं हो जाते मौन ।

और राष्ट्र पर आती आपद ,
अभिवृद्धि हो जाती गौण।

 अजय अमिताभ सुमन

Sunday, December 17, 2023

सृष्टि की अभिदृष्टि कैसी?

मैं तो भव में पड़ा हुआ ,
भव सागर वन में जलता हूँ,
ये बिना आमंत्रण स्वर कैसा ,
अंतर में सुनता रहता हूँ?
जग हीं शेष है बचा हुआ.
चित्त के अंदर बाहर भी,
ना कोई है सत्य प्रकाशन ,
कोई तथ्य उजागर भी।
मेरे जीवन में जो कुछ भी,
अबतक देखा करता था,
अनुभव वो हीं चले निरंतर,
जो सीखा जग कहता था।
बात हुई कुछ नई नई पर ,
ये क्या किसने है बोला ?
अदृष्टित दृष्टि में कोई ,
प्रश्न वोही किसने खोला?
मेरे हीं मन की है सारी,
बाते कैसे जान रहा?
ढूंढ ढूंढ के प्रश्न निरंतर,
लाता जो अनजान रहा?
सृष्टि की अभिदृष्टि कैसी,
सृष्टि का अवसारण कैसा?
ये प्रश्न रहा क्यों है ऐसा,
अदृष्टित का सांसरण कैसा?

अजय अमिताभ सुमन

Sunday, December 10, 2023

जब भी अपनी दांत दिखाते

जाने किसकी बात मान के,
बुद्धि किसकी सही जान के?
क्या घुटी चख आए टीचर,
चश्मा आंख लगाए टीचर।
जब मास्टर जी कक्षा आए,
चश्मा नाकों आँख चढ़ाए।
तब टिंकू ने कान खुजाया,
टीचर जी को नाक दिखाया।
पूछा सर जी क्या करते हैं?
कमरे में चश्मा धरते हैं?
कक्षा में है घोर अंधेरा,
कड़ी धूप ना कोई सबेरा।
फिर कैसी ये आफत आई,
काला चश्मा आंख चढ़ाई?
ज्यों टिंकू ने प्रश्न उठाया,
मास्टर जी ने राज बताया।
बोले बच्चे तुम सब तेज,
आंखों से चमकाते मेज।
जब भी अपनी दांत दिखाते,
सूरज को औकात दिखाते।
तुमसे लाइट इतनी आती,
आंखों को है बहुत सताती।
तिसपे क्या है तेज दिमाग,
जलता जैसे कोई चिराग।
इसी आग से बचना पड़ता,
काला चश्मा रखना पड़ता।

अजय अमिताभ सुमन 

Sunday, December 3, 2023

कुछ तो लॉयर हैं चंडुल

केस थे मेरे  सब निपटा के, 
कोर्ट का गाउन बैंड हटा के,
टी कैंटीन में मांगा चाय, 
लॉयर मित्र ने पूछा हाय।
पूछा ग्यारह अभी बजा है,
कोट बैंड सब किधर चला है?
चाय चर्चा पर मेरी बात,
दबे हुए निकले जज्बात।
अंग्रेजों का है ये चोला,
अच्छा हीं जो मैने खोला।
ठंड बहुत पड़ती हैं यू.के. 
बात यही कहता है जी.के.।
भारत का मौसम ना ठंडा, 
फिर गाउन का कैसा फंडा?
ये तो अच्छी बात हुई है, 
सर पे विग ना चढ़ी हुई है।
जात फिरंगी की क्यों माने?
निज पहचान से रहें बेगाने?
मेरे मित्र ने चिढ़ के बोला, 
सबको एक तराजू तोला?
बैरिस्टर विग साथ नहीं है,
कुछ के माथे नाथ नहीं है।
बैरिस्टर विग की कुछ गाथा,
दूर करे सच में कुछ  व्यथा ।
जिनके सर चंदा उग आते,
बैरिस्टर विग राज छुपाते।
फिर विग को क्यों कहें फिजूल?
कुछ तो लॉयर हैं चंडुल।

अजय अमिताभ सुमन

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