Saturday, July 1, 2023

शौक-ए-आदम

 दुनिया ये तेरी मेरी ,फरक फकत के यूं है,

ना आरजू हुनुज है , ना कोई जुस्तजू हैI


दियार-ए-खंजर माफिक, है मंजर कायनात के,

ताऊन से भी उसरत, तबियत हालात केI


धुएं का असर है कि , लहर इक सड़ा हुआ,

जहर में बसर है ये , खाक में पड़ा हुआ।


बह रही ना हर सहर ,मसर्रत बहार की, 

शामें है शाम-ए-हिज्र ,रातें शब-ए-फ़िराक़ कीI


सजदे तो मैं भी रखता ,रहगुजर में माबूद,

फकत तल्खी-ए-जिस्त से ,रूह तन्हा रंज-ए-वजूद।


चलो चलें पूरा करने ,अपने आपने शौक,

तू पैदा कर नस्ल-ए-आदम, मैं मुकर्रर अपनी मौतI


अजय अमिताभ सुमन

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