लो
फिर
से
चांडाल
आ
गया
ये
एक
नकारात्मक
व्यक्ति
के
बारे
में
एक
नकारात्मक
कविता
है।
चाहे
ऑफिस
हो
या
घर
,
हर
जगह
नकारात्मक
प्रवृति
के
लोग
मिल
जाते
है
जो
अपनी
मौजूदगी
मात्र
से
लोगो
में
नकारात्मक
भावना
को
पनपाने
में
सक्षम
होते
हैं।
इस
कविता
में
ये
दर्शाया
गया
है
कि
कैसे
इस
तरह
के
व्यक्ति
अपनी
नकारात्मक
प्रवृत्ति
के
कारण
अपने
आस
पास
एक
नकारात्मकता
का
माहौल
पैदा
कर
देते
हैं।
इस
कविता
को
लिखने
का
ध्येय
यह
है
कि
इस
तरह
के
व्यक्ति
विशेष
ये
महसूस
करें
कि
उनकी
इस
तरह
की
प्रवृतियाँ
किसी
का
भी
भला
नहीं
कर
सकती
हैं
।
इस
कविता
को
पढ़
कर
यदि
एक
व्यक्ति
भी
अपनी
नकारात्मकता
से
बाहर
निकलने
की
कोशिश
भी
करता
है
तो
कवि
अपने
प्रयास
को
सफल
मानेगा।
आफिस में भुचाल आ गया ,
लो फिर से चांडाल आ गया।
आते हीं आलाप करेगा,
अनर्गल प्रलाप करेगा,
हृदय रुग्ण विलाप करेगा,
शांति पड़ी है भ्रांति सन्मुख,
जी का एक जंजाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया ।
अब कोई संवाद न होगा,
होगा जो बकवाद हीं होगा,
अकारण विवाद भी होगा,
हरे शांति और हरता है सुख,
सच में हीं बवाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया।
जो भी है, निष्फलित हुआ है,
साधन भी अब चकित हुआ है,
साध्य हो रहा, हार को उन्मुख,
सुकर्मों का महाकाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया।
धन धान्य करे संचय ऐसे,
मीन प्रेम बगुले के जैसे,
तुम्हीं बताओ कह दूं कैसे,
कर्म बुरा है मुख भी दुर्मुख,
ऑफिस में फिलहाल आ गया,
हाँ फिर से चांडाल आ गया।
कष्ट क्लेश होता है अक्षय,
हरे प्रेम बढ़े घृणा अतिशय,
शैतानों की करता है जय,
प्रेम ह्रदय से रहता विमुख,
कुर्म वाणी अकाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया।
कोई विधायक कार्य न आये,
मुख से विष के वाण चलाये,
ऐसे नित दिन करे उपाय,
बढ़े वैमनस्य, पीड़ा और दुख,
ख़ुशियों का कंगाल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया।
दिखलाये अपने को ज्ञानी,
पर महाचंड वो है अज्ञानी,
मूर्खों में नहीं कोई सानी,
सरल कार्य में धरता है चुक,
बुद्धि का हड़ताल आ गया,
लो फिर से चांडाल आ गया,
आफिस में भुचाल आ गया ,
देखो फिर चांडाल आ गया।
अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित
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