Thursday, June 30, 2022

जब महारथी कर्ण भीम से डर गए


इस बात में कोई संशय नहीं कि महारथी कर्ण एक महान योद्धा थे और एक बार उन्होंने महाभारत युद्ध के दौरान भीमसेन को एक बार हराया भी था. परन्तु महाभारत युद्ध के दौरान एक ऐसा भी पल आया था , जब महारथी कर्ण में मन में भीमसेन का पराक्रम देख कर भय समा गया था . महाभारत महाग्रंथ के कर्ण पर्व के चतुरशीतितमोध्याय अर्थात अध्याय संख्या 84  के श्लोक संख्या 1 से श्लोक संख्या 14 में इस घटना का विस्तार से वर्णन आता है .

ये अध्याय भीमसेन द्वारा दु:शासन के वध के बाद घटी घटनाओं का वर्णन करता . भीम सेन ने दु:शासन के वध के दौरान बहुत हीं रौद्र रूप धारण कर लिया था . भीम सेन ने दु:शासन का सीना फाड़कर उसका लहू भी पी लिया था.

इस अध्याय में भीमसेन द्वारा दुर्योधन के अन्य 10 भाइयों का वध और तदुरोपरांत भीमसेन का ये रौद्र रूप देखकर कर्ण के मन में भय के समा जाने का जिक्र आता है . खासकर कर्ण की इस भयातुर दशा का स्पष्ट रूप से वर्णन श्लोक संख्या 7 और 8 आता है . इसके बाद के श्लोकों में शल्य द्वारा कर्ण को समझाने की बात का वर्णन किया गया है .

“स॒ बार्यमाणो विशिखेः समन्तात्‌ तैमेहारथें: ॥  भीमः क्रोघाप्मिरक्ताक्षः कुछः काल इवावभौ ।4॥“
उन महारथियों के चलाये हुए बा्णो द्यारा चारों ओर से रोके जाने पर भीमसेनकी आँखें क्रोध से लाल  हो गयीं और वे कुपित हुए. कालके समान प्रतीत होने लगे.

तांस्तु भल्लैमंदावेगैदशभिदंश भारतान्‌॥  डुक्‍्माडदान्‌ रुक्‍्मपुझैः पाथों निस्ये यमक्षयम्‌।5॥

कुन्तीकुमार भीमने सोनेके पंखबाले महान्‌ वेगशाली दस भल्लों द्वारा खुवर्णमय आन्ग्दों से विभूषित उन दर्सों मरत-बंशी राजकुमारों को यमछोक पहुँचा दिया.

इतेषु तेषु बीरेषु प्रदुद्राव बल तव॥  पश्यतः खूतपुश्रस्य पाण्डवस्य भयार्दितम्‌।6 ॥

उन वीरोंके मारे जानेपर पाण्डु पुत्र भीम सेनके भय से पीड़ित हो आपकी सारी सेना सूत पुत्रके देखते-देखते माग चली.

संजय उस पुरे युद्ध का वृतांत धृतराष्ट्र को सुना रहे थे . श्लोक 4 से श्लोक 6 तक भीम सेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुर्तों का वध का वर्णन है . इसके बाद कैसे कर्ण के मन में भय समा जाता है , इसका वृतांत आता है .

ततः कर्णों मद्दाराज प्रविवेश महव्‌ भयम्‌ ॥ इष्ठा भीमस्य विक्रान्तमन्तकस्य प्रजाखिव ।7 ॥
महाराज ! जैसे प्रजा बर्ग पर यमराज का बल काम करता है, उसी प्रकार मीमसेन का वह पराक्रम देखकर कर्ण के मन में महान्‌ भय समा गया.

तस्य त्वाकारभावज्ञ: शल्य समिति शोभनः ॥  उवाच वचन कर्ण प्राप्तकालम रिदमम ।8 ॥
युद्धमें शोमा पानेवाले शल्य कर्ण की आकृति देखकर ही उसके मनका भाव समझ गये; अतः शत्रु दमन कर्ण से  यह समयोचित बचन बोले.

मा व्यथां कुरु राधेय नेथं त्वय्युपपद्यते ॥  एते द्ववन्ति राजानो भीमसेनभयार्दिताः ।9॥
दुर्योधनश्च सम्मूढो भ्रातृव्यलनकरशितः ॥ 10 ॥

“राधानन्दन | तुम खेद न करो) तुम्हें यह शोमा नहीं देता है । ये राजा लोग भीमसेन के भय से पीड़ित हो भागे जा रहे हैं। अपने भाइयों की मृत्युसे दुःखित हो राजा दुर्योधन भी किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया है ॥ 9-10 ॥ 

इस प्रकार भीम का पराक्रम देखकर कर्ण के मन में महान  भय समा जाने पर शल्य उसे नाना प्रकार से प्रोत्साहित करने लगते हैं . शब्द महान भय का इस्तेमाल किया गया है इस श्लोक में . इस श्लोक का इस्तेमाल ये स्पष्ट रूप से जाहिर करता है कि कर्ण निश्चित रूप से भीम का पराक्रम देखकर भयातुर हो गए होंगे .

हालाँकि शल्य के समझाने और प्रोत्साहित करने के बाद उनके मन से भय का भाव मिट गया और वो फिर से युद्ध के मैदान में डट गए थे . परन्तु आश्चर्य की बात तो ये है कि कर्ण जैसा महारथी भी भीम के पराक्रम से भयग्रस्त हो गए थे . 

तो ये थी वो घटना  , जहाँ पे इस बात का जिक्र आता है कि कैसे महाभारत युद्ध के दौरान महारथी कर्ण भीम का पराक्रम देखकर डर गए थे . एक जिक करने वाली बात ये है कि महाभारत युद्ध के दौरान कर्ण का पराक्रम देखकर युद्धिष्ठिर भी भयाग्रस्त हो गए थे और एक बार अर्जुन भी विचलित हो गए थे . परन्तु अर्जुन का कर्ण से डरने या भीम सेन का कर्ण से डरने का जिक्र नहीं आता है .

अजय अमिताभ सुमन : सर्वाधिकार सुरक्षित


Tuesday, June 28, 2022

पहली मुलाकात:कर्ण की दुर्योधन से

महाभारत पर आधारित टेलीविजन सीरियलों और अनगिनत मूवी में ऐसा दिखाया जाता रहा है कि दुर्योधन की मुलाकात कर्ण से सर्वप्रथम युद्ध क्रीड़ा के मैदान में हुई थी। गुरु द्रोणाचार्य पर भी ये आरोप लगाया जाता रहा है कि उन्होंने कर्ण को धनुर्विद्या सिखाने से मना कर दिया था, क्योंकि कर्ण सूतपुत्र थे। जबकि वास्तविकता तो कुछ और हीं है।

ना तो कर्ण की मुलाकात दुर्योधन से सर्वप्रथम युद्ध क्रीड़ा के मैदान में हुई थी और ना हीं गुरु द्रोणाचार्य ने कर्ण को कभी धनुर्विद्या सिखाने से मना किया था। महाभारत के आदिपर्व में जिक्र आता है कि कर्ण और दुर्योधन एक दूसरे को बचपन से हीं जानते थे।


बचपन में जब भीम दुर्योधन के भाइयों को तंग करते थे तो दुर्योधन ने चिढ़कर भीम को विष पिला दिया । इसका परिणाम ये हुआ कि भीम मृत्यु के करीब पहुंच गए। ये और बात है कि भीम के शरीर में वृक नामक अग्नि थी जिस कारण वह जीवित बच गए।

"यद्यपि वह विष बड़ा तेज था तो भी उनके लिये कोई बिगाड़ न कर सका | भयंकर शरीरवाले भीमसेनके उदरमें वृक नामकी अग्नि थी; अतः वहाँ जाकर वह विष पच गया || 39 ॥"

महाभारत महाग्रंथ के आदि पर्व महाभाग के संभव पर्व उपभाग के अष्टाविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः अर्थात अध्याय संख्या 128 के 39 वें श्लोक में इस बात का वर्णन है कि कैसे भीम मरने से बच गए।


"एवं दुर्योधनः कर्णः शकुनिश्चापि सौबलः ।
अनेकैरभ्युपायै स्ताञ्जिघांसन्ति स्म पाण्डवान् ॥ 40 ॥

इस प्रकार दुर्योधन, कर्ण तथा सुबलपुत्र शकुनि अनेक 
उपायो द्वारा पाण्डवों को मार डालना चाहते थे ॥ 40 ॥"

महाभारत महाग्रंथ के आदि पर्व महाभाग के संभव पर्व उपभाग के अष्टाविंशत्यधिकशततमोऽध्यायः अर्थात अध्याय संख्या 128 के 40 वें श्लोक में इस दुर्योधन और कर्ण के बचपन से हीं चिर परिचित सम्बन्ध का वर्णन है।

यहीं पर आदिपर्व के संभवपर्व के 40 वें श्लोक में वर्णन है कि दुर्योधन, कर्ण था सबलुपुत्र शकुनि आदि अनेक उपायों से पांडवों को मार डालना चाहते थे। इस श्लोक के दुर्योधन के साथ कर्ण का जिक्र शकुनि से पहले आता है । ये साबित करता है कि कर्ण के दुर्योधन के साथ घनिष्ठ संबंध बचपन से हीं थे।

गुरु द्रोणाचार्य पर ये भी आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने उन्होंने कर्ण को धनुर्विद्या सिखाने से मना कर दिया था, क्योंकि कर्ण सूतपुत्र थे। उनपे ये भी आरोप लगाया जाता रहा है कि वो केवल राजपुत्रों को हीं शिक्षा प्रदान कर रहे थे। ये दोनों बातें हीं मिथ्या है।

महाभारत महाग्रंथ के आदि पर्व महाभाग के संभव पर्व उपभाग के एकत्रिंशदधिकशततमोऽध्याय अर्थात अध्याय संख्या 131 के श्लोक संख्या में इस बात का वर्णन है कि कर्ण भी बाकि अन्य क्षत्रिय राज कुमारों के साथ गुरु द्रोणाचार्य से शिक्षा ग्रहण कर रहा था ।

"वृष्णयश्चान्धकाश्चैव नानादेश्याश्च पार्थिवाः |
सूतपुत्रश्च राधेयो गुरुं द्रोणमियात् तदा ॥ 11 ॥

वृष्णिवंशी तथा अन्धकवंशी क्षत्रिय, नाना देशों के
राजकुमार तथा राधानन्दन सूतपुत्र कर्ण – ये सभी 
आचार्य द्रोणके पास (अस्त्र - शिक्षा लेने के लिये )आये ॥ 11 ॥"

गुरु द्रोणाचार्य कर्ण को कौरवों और पांडवों के साथ साथ हीं शिक्षा प्रदान कर रहे थे। उनके पास न केवल कौरव और पांडव , राधा पुत्र कर्ण अपितु वृष्णिवंशी तथा अन्धकवंशी क्षत्रिय आदि राजकुमार भी शिक्षा के लिए गुरु द्रोणाचार्य के पास आए थे।

"स्पर्धमानस्तु पार्थेन सूतपुत्रोऽत्यमर्पणः |
दुर्योधनं समाश्रित्य सोऽवमन्यत पाण्डवान् ॥ 12 ॥

सूतपुत्र कर्ण सदा अर्जुनसे लाग-डाँट रखता और 
अत्यन्त अमर्ष में भरकर दुर्योधनका सहारा ले
 पाण्डव का अपमान किया करता था ॥12 ॥"
 
ये बात और है कि कर्ण बचपन के समय से हीं अर्जुन से ईर्ष्या रखता था और दुर्योधन के साथ मिलकर पांडवों का अपमान किया करता था। इसका कारण गुरु द्रोणाचार्य का पांडवों, विशेषकर अर्जुन के प्रति स्नेह था।

बड़े आश्चर्य की बात ये है कि महाभारत के आदि पर्व में , जहाँ पे कर्ण और दुर्योधन का जिक्र सर्वप्रथम आता है , उसका आधार हीं पांडवों के प्रति ईर्ष्या का भाव है । उन दोनों की मित्रता का आधार हीं पांडवों के प्रति बैर था । हालाँकि दोनों के अपने अपने कारण थे इस इर्ष्या के।

कर्ण का जिक्र भी महाभारत के आदिपर्व के संभव उप पर्व में पांडवों के साथ वैमनस्य के साथ हीं आता है। जाहिर सी बात थी , कर्ण के प्रतिभा तो थी परन्तु उसे बराबर का सम्मान और मौका नहीं मिल रहा था। बार बार अपमान की भावना से ग्रस्त हुए व्यक्ति के ह्रदय में आग नहीं तो और क्या हो सकती है ?

ये बात तो तय है कि दुर्योधन की पहली मुलाकात कर्ण से उस युद्ध कीड़ा के मैंदान में नहीं बल्कि काफी पहले हीं हो गई थी। बचपन से दोनों एक दुसरे के परिचित थे और साथ साथ हीं द्रोणाचार्य से शिक्षा भी ग्रहण कर रहे थे ।

हालाँकि आदि पर्व में इस बात का जिक्र नहीं आता कि कर्ण गुरु द्रोणाचार्य को छोड़कर गुरु परशुराम के पास कब पहुँच गया ? कारण जो भी रहा हो , ये बात तो निश्चित हीं जान पड़ती है कि कर्ण और दुर्योधन बचपन से हीं चिर परिचित थे।

अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षित

Saturday, June 25, 2022

वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में[द्वितीय भाग]

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धर्म ग्रंथों के प्रति श्रद्धा का भाव रखना सराहनीय  हैं। लेकिन इन धार्मिक ग्रंथों के प्रति वैसी श्रद्धा का क्या महत्व जब आपके व्यवहार इनके द्वारा सुझाए गए रास्तों के अनुरूप नहीं हो? आपके धार्मिक ग्रंथ मात्र पूजन करने के निमित्त नहीं हैं? क्या हीं अच्छा हो कि इन ग्रंथों द्वारा सुझाए गए मार्ग का अनुपालन कर आप स्वयं हीं श्रद्धा के पात्र बन जाएं। प्रस्तुत है मेरी कविता "वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में" का द्वितीय भाग। 
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क्या रखा है वक्त गँवाने 
औरों के आख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में।
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धर्मग्रंथ के अंकित अक्षर 
परम सत्य है परम तथ्य है,
पर क्या तुम वैसा कर लेते 
निर्देशित जो धरम कथ्य है?
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अक्षर के वाचन में क्या है 
तोते जैसे गान में?
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में।
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दिनकर का पूजन करने से 
तेज नहीं संचित होता ,
धर्म ग्रन्थ अर्चन करने से 
अक्ल नहीं अर्जित होता।
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मात्र बुद्धि की बात नहीं 
विवर्द्धन कर निज ज्ञान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में।
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जिस ईश्वर की करते बातें 
देखो सृष्टि रचने में,
पुरुषार्थ कितना लगता है 
इस जीवन को गढ़ने में।
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कुछ तो गरिमा लाओ निज में 
क्या बाहर गुणगान में?
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में। 
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क्या रखा है वक्त गँवाने 
औरों के आख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में।
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अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित 

Saturday, June 18, 2022

वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में[प्रथम भाग]


अपनी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत पर नाज करना किसको अच्छा नहीं लगता? परंतु इसका क्या औचित्य जब आपका व्यक्तित्व आपके पुरखों के विरासत से मेल नहीं खाता हो। आपके सांस्कृतिक विरासत आपकी कमियों को छुपाने के लिए तो नहीं बने हैं। अपनी सांस्कृतिक विरासत का महिमा मंडन करने से तो बेहतर ये हैं कि आप स्वयं पर थोड़ा श्रम कर उन चारित्रिक ऊंचाइयों को छू लेने का प्रयास करें जो कभी आपके पुरखों ने अपने पुरुषार्थ से छुआ था। प्रस्तुत है मेरी कविता "वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में" का प्रथम भाग। 

वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में
[प्रथम भाग]
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क्या रखा है वक्त गँवाने 
औरों के आख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में।
==========
पूर्व अतीत की चर्चा कर 
क्या रखा गर्वित होने में?
पुरखों के खड्गाघात जता 
क्या रखा हर्षित होने में?
भुजा क्षीण तो फिर क्या रखा 
पुरावृत्त अभिमान में?
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में।
==========
कुछ परिजन के सुरमा होने 
से कुछ पल हीं बल मिलता,
निज हाथों से उद्यम रचने 
पर अभिलाषित फल मिलता।
करो कर्म या कल्प गवां 
उन परिजन के व्याख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में।
==========
दूजों से निज ध्यान हटा 
निज पे थोड़ा श्रम कर लेते,
दूजे कर पाये जो कुछ भी 
क्या तुम वो ना वर लेते ?
शक्ति, बुद्धि, मेधा, ऊर्जा 
ना कुछ कम परिमाण में।
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में।
==========
क्या रखा है वक्त गँवाने 
औरों के आख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में।
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अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित 

Saturday, June 11, 2022

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-38

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कौरव सेना को एक विशाल बरगद सदृश्य रक्षण प्रदान करने वाले गुरु द्रोणाचार्य का जब छल से वध कर दिया गया तब कौरवों की सेना में निराशा का भाव छा गया। कौरव पक्ष के महारथियों के पाँव रण क्षेत्र से उखड़ चले। उस क्षण किसी भी महारथी में युद्ध के मैदान में टिके रहने की क्षमता नहीं रह गई थी । शल्य, कृतवर्मा, कृपाचार्य, शकुनि और स्वयं दुर्योधन आदि भी भयग्रस्त हो युद्ध भूमि छोड़कर भाग खड़े हुए। सबसे आश्चर्य की बात तो ये थी कि महारथी कर्ण भी युद्ध का मैदान छोड़ कर भाग खड़ा हुआ।
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धरा   पे   होकर   धारा शायी 
गिर पड़ता जब  पीपल  गाँव,
जीव  जंतु  हो  जाते ओझल 
तज  के इसके  शीतल छाँव।
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जिस तारिणी के बल पे केवट
जलधि   से   भी   लड़ता   है,
अगर  अधर में छिद  पड़े  हों 
कब  नौ चालक   अड़ता  है?
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जिस योद्धक के शौर्य  सहारे
कौरव   दल  बल   पाता  था,
साहस का वो स्रोत तिरोहित
जिससे   सम्बल  आता  था।
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कौरव  सारे  हुए थे  विस्मित 
ना  कुछ क्षण को सोच सके,
कर्म  असंभव  फलित  हुआ 
मन कंपन  निःसंकोच  फले। 
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रथियों के सं  युद्ध त्याग  कर 
भाग    चला    गंधार     पति,
शकुनि का तन कंपित भय से 
आतुर   होता    चला   अति। 
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वीर  शल्य  के  उर  में   छाई 
सघन भय और गहन निराशा,
सूर्य पुत्र  भी  भाग  चला  था 
त्याग पराक्रम धीरज  आशा।
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द्रोण के सहचर  कृपाचार्य के 
समर  क्षेत्र  ना   टिकते  पाँव,
हो  रहा   पलायन   सेना  का 
ना दिख पाता था  कोई ठाँव।
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अश्व   समर    संतप्त    हुए  
अभितप्त हो चले रण  हाथी,
कौरव के प्रतिकूल बह चली 
रण  डाकिनी ह्रदय  प्रमाथी।
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अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित 

Saturday, June 4, 2022

मेरे गाँव में होने लगा है शामिल थोड़ा शहर[द्वितीय भाग]


हाल फिलहाल में मेरे द्वारा  की गई मेरे गाँव की यात्रा के दौरान मेने जो  बदलाहट अपने गाँव की फिजा में देखी , उसका काव्यात्मक वर्णन मेने अपनी कविता "मेरे गाँव में होने लगा है शामिल थोड़ा शहर" के प्रथम भाग में की थी। ग्रामीण इलाकों के शहरीकरण के अपने फायदे हैं तो कुछ नुकसान भी। जहाँ गाँवों में इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर हो रहा है, छोटी छोटी  औद्योगिक इकाइयाँ बढ़ रही हैं, यातायात के बेहतर संसाधन उपलब्ध हो रहे हैं तो दूसरी ओर शहरीकरण के कारण ग्रामीण इलाको में जल की कमी, वायु प्रदुषण, ध्वनि प्रदूषण आदि सारे दोष जो कि शहरों में पाया जाता है , ग्रामीण इलाकों में भी पाया जाने लगा है , और मेरा गाँव भी इसका अपवाद नहीं रहा। शहरीकरण के परिणामों  को रेखांकित करती हुई प्रस्तुत है मेरी इस कविता "मेरे गाँव में होने लगा है शामिल थोड़ा शहर" का द्वितीय भाग।
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मेरे गाँव में होने लगा है 
शामिल थोड़ा शहर
[द्वितीय  भाग]
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मेरे गाँव में होने लगा है  
शामिल थोड़ा शहर,
फ़िज़ा में बढ़ता धुँआ है 
और थोड़ा सा जहर।
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हर गली हर नुक्कड़ पे 
खड़खड़ आवाज  है,
कभी शांति जो छाती थी 
आज बनी ख्वाब है।
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जल शहरों की आफत  
देहात का भी कहर,
मेरे गाँव में होने लगा है  
शामिल थोड़ा शहर।
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जो कुंओं से कूपों  से  
मटकी भर लाते थे,
जो खेतों में रोपनी  के  
वक्त गुनगुनाते थे।
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वो ही  तोड़ रहे पत्थर  
दिन रात सारे  दोपहर, 
मेरे गाँव में होने लगा है  
शामिल  थोड़ा शहर।
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भूँजा सत्तू ना लिट्टी ना 
चोखे की दुकान है,
पेप्सी कोला हीं मिलते 
जब आते मेहमान हैं।
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मजदूर हो किसान हो 
या कि हो खेतिहर ,
मेरे गाँव में होने लगा है  
शामिल थोड़ा शहर।
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आँगन की तुलसी अब  
सुखी है काली है,
है उड़हुल में जाले ना  
गमलों में लाली है।
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केला भी झुलसा सा  
ईमली भी कटहर ,
मेरे गाँव में होने लगा है  
शामिल  थोड़ा शहर।
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बच्चे सब छप छप कर  
पोखर में गाँव,
खेतिहर के खेतों में      
नचते थे पाँव।
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अब नदिया भी सुनी सी  
पोखर भी नहर,
मेरे गाँव में होने लगा है  
शामिल  थोड़ा शहर।
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विकास का असर क्या है   
ये भी है जाना, 
बिक गई मिट्टी बन    
ईट ये पहचाना,
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पक्की हुई मड़ई   
गायब हुए हैं खरहर ,
मेरे गाँव में होने लगा है  
शामिल थोड़ा शहर।
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फ़िज़ा में बढ़ता धुँआ है 
और थोड़ा सा जहर,
मेरे गाँव में होने लगा है  
शामिल थोड़ा शहर।
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अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित 
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