इस ब्लॉग पे प्रस्तुत सारी रचनाओं (लेख/हास्य व्ययंग/ कहानी/कविता) का लेखक मैं हूँ तथा ये मेरे द्वारा लिखी गयी है। मेरी ये रचना मूल है । मेरे बिना लिखित स्वीकीर्ति के कोई भी इस रचना का, या इसके किसी भी हिस्से का इस्तेमाल किसी भी तरीके से नही कर सकता। यदि कोई इस तरह का काम मेरे बिना लिखित स्वीकीर्ति के करता है तो ये मेरे अधिकारों का उल्लंघन माना जायेगा जो की मुझे कानूनन प्राप्त है। (अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षित :Ajay Amitabh Suman:All Rights Reserved)
Wednesday, June 18, 2025
एक वकील
Monday, June 16, 2025
गाँधी का बाजार, किताबें और रद्दी अखबार
रिक्शा वाला
Thursday, June 12, 2025
ईमानदारी
एक गर्म दोपहर, ज़िला अदालत की बार रूम में, जहाँ पंखे चल तो रहे थे लेकिन हवा देने से इनकार कर चुके थे, और चाय में शक्कर ऐसे मिलती थी जैसे कोई मिठाई हो, एक वरिष्ठ वकील पूरे जोश में बोले।
उन्होंने रिटायर्ड जज रामकांत वर्मा की ओर देखकर कहा, “सर, आपका करियर तो कमाल का रहा! एक भी भ्रष्टाचार का आरोप नहीं! बिल्कुल साफ-सुथरे और ईमानदार!”
जज वर्मा मुस्कराए, चाय को धीरे-धीरे चलाया और बोले, “इसका पूरा श्रेय भ्रष्ट लोगों को जाता है।”
वरिष्ठ वकील चौंक गए। “वो कैसे सर?”
जज साहब ने शांत स्वर में जवाब दिया, “उनकी नज़र में मैं रिश्वत के लायक ही नहीं था।”
पूरी बार रूम में सन्नाटा छा गया। कोने में पानी डाल रहा प्यून भी रुक गया।
“मतलब,” वरिष्ठ वकील बोले, “किसी ने आपको रिश्वत देने की कोशिश भी नहीं की?”
“बिल्कुल,” जज साहब बोले। “मैं तीस साल तक कुर्सी पर बैठा रहा। हजारों केस सुने। सैकड़ों फैसले दिए। लेकिन एक बार भी किसी ने लिफाफा थमाने की कोशिश नहीं की। न फल की टोकरी, न दिवाली के गिफ्ट, कुछ भी नहीं। मैं इतना साफ था कि सिस्टम में मेरी कोई जगह ही नहीं थी।”
एक नवयुवक वकील, जो अभी-अभी वकालत में आया था और जिसका हौसला अब तक जिंदा था, बोला, “सर, आपको अपनी ईमानदारी पर गर्व तो हुआ होगा?”
“ज़रूर हुआ,” जज वर्मा बोले, “लेकिन बताओ, उस चीज़ पर गर्व कैसे करूँ जो कभी परीक्षा में ही नहीं आई? ये ऐसा है जैसे कोई क्रिकेटर बोले कि वो आउट नहीं हुआ, लेकिन उसे बैटिंग करने का मौका ही नहीं मिला!”
चंदा का धंधा
एक गांव में भोलू राम नाम का एक चतुर-चालाक शख्स रहता था, जिसकी वेश्यावृत्ति की लत ने उसकी बीवी चमेली को इस कदर तंग कर दिया कि उसका गुस्सा सूरज-चांद को भी मात दे दे। एक दिन चमेली ने रसोई से अपनी चमकती कैंची उठाई, जो वो सब्जी काटने के लिए रखती थी, और चटाक-चटाक! भोलू के दोनों कान काट डाले। भोलू दर्द से उछलकर चिल्लाया, “हाय रे चमेली, ये क्या अनर्थ कर डाला? मेरे कान! अब मैं गांव में कैसे मुंह दिखाऊं? लोग तो कहेंगे, ‘देखो भोलू कन-कटा!’” चमेली ने आंखें तरेरकर कहा, “जा, जहां मुंह दिखाना है दिखा! मेरे घर में अब तेरे कान नहीं, सिर्फ तेरा बेकार सिर बचेगा, वो भी तब तक जब तक मेरी कैंची फिर न चले!” भोलू, जो डरपोक था मगर दिमाग का धनी, रात के अंधेरे में गांव से भाग खड़ा हुआ। एक पुरानी पगड़ी, दो सूखी रोटियां, और एक फटी चप्पल बैग में डालकर वो पहुंच गया एक ऐसे अनजान गांव में, जहां उसका नाम तक कोई नहीं जानता था।
वहां एक विशाल बरगद के पेड़ तले भोलू ने डेरा जमाया। सिर पर चमेली की फटी साड़ी से बनाई रंग-बिरंगी पगड़ी लपेटी, कानों की जगह गमछा बांधा, और चेहरा ऐसा बनाया जैसे वो साक्षात भगवान का वी.आई.पी. एजेंट हो। गांव वाले, जो हर अजनबी को साधु समझने की बीमारी से पीड़ित थे, तुरंत जमा हो गए। “बाबाजी, ये क्या तपस्या? गमछा कानों पर क्यों? आप तो कोई सिद्ध पुरुष लगते हो!” भोलू ने मौका देखा, गला खंखारा, और ऐसी ड्रामाई आवाज निकाली जैसे बॉलीवुड में हीरो की एंट्री हो। बोला, “मैं हूं कन-कटवा बाबा! ये कान, हां, ये कान ही माया का सुपर-एक्सप्रेस हाईवे हैं! इनके जरिए माया सीधे दिमाग में डाउनलोड होती है—पड़ोसन की चुगली, भोजपुरी गाने, सास-बहू की सीरियल, लॉटरी का नंबर, सट्टे की टिप्स, और ससुराल वालों की गॉसिप! मैंने तो अपने कान कटवा दिए, और बस, प्रभु मेरे सामने डिस्को डांस करते हुए प्रकट हुए! बोले, ‘भोलू, तू अब माया-मुक्त है, चल मेरे साथ स्वर्ग में डीजे पार्टी करें, मैंने लेजर लाइट्स फिट करवाई हैं!’”
गांव वालों की तो जैसे जैकपॉट लग गई। एक चिल्लाया, “सच में, बाबाजी? कान कटवाने से प्रभु डांस करेंगे?” भोलू ने जोश में लपेटा, “हां, भक्तो! ये कान माया का 5G राउटर हैं, 24/7 कनेक्टेड! सिग्नल काटो, माया ऑफ, प्रभु ऑन! और हां, प्रभु ने मुझे बताया कि कान कटवाने से चेहरा चमकता है, बिना फेयरनेस क्रीम के, बाल झड़ना बंद हो जाते हैं, और पेट की गैस भी कम हो जाती है!” बस, गांव में हंगामा मच गया। लोग कैंची, उस्तरा, और जो मिला वो लेकर दौड़े। नाई ने चिल्लाकर कहा, “आज फ्री में कान काटूंगा, बस बाबाजी का आशीर्वाद चाहिए!” हलवाई ने अपनी मिठाई काटने वाली कैंची उठाई, दूधवाले ने दूध छानने वाला चाकू, और सरपंच ने तो अपनी पुश्तैनी तलवार निकाल ली, बोला, “बाबाजी, मेरे कान पहले कटेंगे, मैं सरपंच हूं, वी.आई.पी हूं!” कट-कट-कट! गांव में कान कटाई का ऐसा मेला लगा कि लगता था कोई नया नेशनल फेस्टिवल शुरू हो गया। लोग गाते, “कान कटाओ, माया भगाओ, प्रभु को नचाओ!” बच्चे-बूढ़े, जवान-जवानी, सब कन-कटवा पंथी बन गए। बाजार में कैंची की दुकानें लुट गईं, और नाई की दुकान पर तो ऑनलाइन बुकिंग शुरू हो गई। भोलू सोच रहा था, “अरे, मैंने तो चमेली की कैंची से बचने को ये नौटंकी शुरू की, और ये बेवकूफ सचमुच कान काट रहे हैं! ये तो मेरे लिए हॉलीवुड ब्लॉकबस्टर हो गया!”
कुछ दिन बाद गांव वाले, कान पर रंग-बिरंगे गमछे बांधे, मायूस होकर आए। “बाबाजी, कान कटवाए, खून बहाया, दर्द सहा, इंफेक्शन झेला, पड़ोसी हंस रहे हैं, बच्चे चिढ़ा रहे हैं, ‘कन-कटा गैंग!’ अब तो कुत्ते भी भौंकते हैं! पर प्रभु तो डांस करने नहीं आए, उल्टा गांव में मजाक बन गया!” भोलू ने तुरंत दिमाग की बत्ती जलाई और गंभीर मुद्रा में बोला, “अरे मूर्ख भक्तो! तुमने सोचा कान कटवाने से प्रभु डिस्को करेंगे? अरे, भाई, पहले प्रभु की परीक्षा में पास तो हो जाओ! मेरे सिर्फ कान कटने से प्रभु नहीं मिले। मैंने तो अपने चित्त को संभाला, प्रभु की भक्ति में लीन हुआ, 10 साल तक मन को वश में किया, और लाखों लोगों को प्रभु भक्ति की राह पर लगाया। तब जाकर प्रभु की कृपा हुई है! तुम लोग भी जाओ, कान तो कटवा लिए, अब मन को वश में करो, ईश्वर पर अटूट आस्था रखो, और ज्यादा से ज्यादा लोगों को सत्संग में जोड़ो। उचित समय पर प्रभु अवश्य मिलेंगे!”
गांव वालों में जैसे बिजली दौड़ गई। “वाह, बाबाजी! ये तो सच्ची बात है!” भक्तों में उत्साह फैल गया। कुछ भक्तों को मन की शांति मिलने लगी, कुछ ने सोचा, “हां, शायद हमारा मन अभी शुद्ध नहीं हुआ!” और वो निकल पड़े पड़ोस के गांवों में कन-कटवा पंथ का ढोल पीटने। लोग कान कटवाकर पंथ से जुड़ने लगे। धीरे-धीरे चंदा इकट्ठा होने लगा। कोई 100 रुपये देता, कोई 500, और सरपंच ने तो अपनी तलवार बेचकर 10,000 का चंदा दे डाला! भोलू के लिए तो जैसे स्वर्ग जमीन पर उतर आया। चंदे का धंधा ऐसा चला कि भोलू ने सोचा, “कन-कटवा पंथ तो सेट है, अब चंदा-कटवा पंथ भी शुरू कर दूं!”
देखते-देखते कन-कटवा पंथ सुपर-डुपर वायरल हो गया। हर गांव में लोग कान काट-काटकर गर्व से चिल्लाते, “हम हैं कन-कटवा पंथी, माया-मुक्त, प्रभु-भक्त!” बाजार में कैंची की बिक्री हजार गुना बढ़ गई। नाई की दुकान पर तो VIP पास सिस्टम शुरू हो गया। लोग कान कटवाकर सेल्फी खींचते और सोशल मीडिया पर डालते, हैशटैग #कन_कटवा_पंथ ट्रेंड करने लगा। चंदे की पेटियां हर गांव में रख दी गईं, जिन पर लिखा था, “प्रभु दर्शन के लिए चंदा दो, माया भगाओ!” पर प्रभु? वो तो किसी को दिखे ही नहीं। मिली तो बस कान कटवाने की जलन, इंफेक्शन, और पड़ोसियों का ठहाका। लोग गमछा बांधे घूमते, पर शर्मिंदगी से मुंह छिपाते। फिर भी पंथ बढ़ता गया, क्योंकि भोलू ने चालाकी से कह रखा था, “जितने ज्यादा भक्त, जितना ज्यादा चंदा, उतनी जल्दी प्रभु दर्शन!” कोई भोलू का राज नहीं पकड़ सका। वो हर गांव में नई पगड़ी, नया गमछा, और नया ड्रामा लेकर कन-कटवा बाबा बनता रहा।
एक दिन गांव में एक चतुर बूढ़ा बोला, “कहीं ये वो भोलू राम तो नहीं, जिसके कान उसकी बीवी चमेली ने काटे थे?” पर भोलू की चालाकी ऐसी थी कि उसने पहले ही अफवाह फैला दी थी, “मेरे जैसे कई नकली बाबा घूम रहे हैं, असली कन-कटवा बाबा मैं हूं, मेरे गमछे पर ‘मेड इन स्वर्ग’ का लेबल देखो!” गांव वाले कनफ्यूज हो गए और भोलू का राज, राज ही रहा। वो तो कब का अगले जिले में “नाक-कटवा पंथ” की स्क्रिप्ट लिखने निकल चुका था, सोचते हुए, “अगली बार नाक कटवाऊंगा, फिर मुंह, फिर पूरा सिर! चंदा तो बरसता रहेगा!” और प्रभु? वो तो ऊपर बैठकर पॉपकॉर्न खाते हुए तमाशा देख रहे थे, बोले, “भोलू, तू तो मेरे भी बाप निकला! अगली बार स्वर्ग में तुझे चंदा कलेक्शन का ठेका दूंगा!”
अजय अमिताभ सुमन
Tuesday, June 10, 2025
सासू मां को पाठ पढ़ाया
कन-कटवा पुराण
वेश्यावृति व्यसन से अकुलित पीड़ित और परेशान,
व्यथित स्त्री ने आखिर में काटे निज पति के कान।
पति ग्रसित संताप से अतिशय,पकड़ाने जाने के भय से,
रात भाग के पहुंचा गाँव, जहाँ नही कोई था परिचय।
बैठा फिर वृक्ष के नीचे,अविचल,अचल,दृढ कर निश्चय,
विस्मय फैला गाँव में ऐसे,आया कोई शक्तिपुंज अक्षय।
हे ज्ञानी हे पुरुष महान,अब तो तोड़ो अपने ध्यान,
यदि आपने पाया ईश्वर,हमें भी दे दें वो वरदान।
पूछा भक्तों ने प्रभु आप सब कहें ज्ञान की बात,
क्या ईश्वर ने कान के बदले दी कोई सौगात?
कहा व्यक्ति ने विषय गुप्त है,पर योगी ये अति तुष्ट है,
यही कान है आधा बाधा , तेरे कान से ईश्वर रुष्ट है।
सब व्यसनों का यही है मूल, प्रभु राह का काँटा शूल,
अभी कली हो,अविकसित हो,बन सकते हो तुम फुल।
ओ संसारी, ओ व्यापारी, ओ गृहस्थ, भोले नादान,
परम ब्रह्म तो मांगे तुमसे, तेरे कानों के बलिदान।
सुन योगी की अमृत वाणी , मंद बुद्धि , भोले औ ज्ञानी,
कटा लिए फिर सबने कान ,क्या गरीब क्या अभिमानी।
कान कटा के सारे करते रहते थे ईश्वर गुणगान ।
सब सोचते प्रभु मिलेंगे सरपट पहुंचेंगे प्रभु धाम ,
आखिर ये ही कहता था कन कटों का धर्म पुराण।
पर ईश्वर ना मिला किसी को ,ज्ञात हुआ न फला किसी को,
अधम के मुख पे थी मुस्कान,जो विश्वासी छला उसी को।
कर्ण क्षोभ से मिलती पीड़ा और केवल मिलता उपहास,
तुम औरो को भी ला पकड़ो, गर इक्छित ना हो जग हास।
मन में लेके अतिशय पीड़ा और ले दिल में हाय,
गाँव वाले सब निकल पड़े, ना देख के और उपाय।
कन-कटों की बढ़ी भीड़ तब, वो ईश्वर का लोभ,
अंधभक्तों के जोर से होता नए धर्म की खोज।
प्रभु नहीं बस डिस्काउंट में मिलता था ईश्वर अनुमान।
Monday, June 2, 2025
किसी के घर ना हो बेटी यही मौला से कहता हूँ
किसी के घर ना हो बेटी यही मौला से कहता हूँ।
मेरा आँगन था सूना और पड़ी मुद्दत उदासी थी,
मेरी हर सुबहो थी बंजर कि मेरी शाम बासी थी।
खुदा से मिन्नतें की थी बड़ी ईक नूर वास्ते,
गया था पीर बाबा को गया मौला के रास्ते।
बड़ी मिन्नतों के बाद मेरी बगिया चहकी थी,
खुदा ने बूढ़े के दामन में औलाद बख्शी थी।
हर सुबह की किरण नई पैगाम लाती थी,
मेरी बेटी आँगन में जब खिलखिलाती थी।
खुदा मेरे मुझे इस बात का बड़ा अफ़सोस था,
मेरी डाँट से डरती थी इस बात का रोष था।
मेरी बेगम से ही थी खोलती ख्वाब की बातें,
मुझसे सहमी बड़ी रहती छिपाए राज की बातें।
ज्यों ज्यों उम्र बेटी की मेरी जो बढ़ती जाती थी,
त्यों त्यों ब्याह की चिंता मुझे मौला सताती थी।
लेके साइकिल अपनी मैं बूढ़ा हर गली घुमा,
कि सुनकर रकम वो दहेज की सर मेरा घुमा।
महीने भर जला के खून अपना जो भी पाता था ,
उसी हज़ार पंद्रह में हीं तो मैं घर चलाता था ।
पुराना चपरासी मैं लाख रूपये लाता भी कैसे ?
कि सोच दिल था घबराता रकम मैं पाता भी कैसे?
कि दिन वो फिर मेरे गुजर रहे थे मिन्नतें करते,
कि मन में आस थी किसी का भी दिल पिघले।
देख कर मेरा यूँ झुकना औरों के सामने,
पूछती बेटी मेरी किया क्या जुर्म बाप ने ?
उसी प्रश्न से बेटी ने फिर आजाद कर दिया,
कि मासूम ने जला कर खुद को खाक कर दिया।
किसी के घर ना हो बेटी यही मौला से कहता हूँ।
Sunday, June 1, 2025
जजमेंट
याद करें ओ माई लार्ड ओ उस जजमेंट की चोट ।
उस जजमेंट की चोट कि उसमें जो जज ने की बात,
इस केस के फैक्ट लॉ पे, करते हैं प्रतिघात।
करते हैं प्रतिघात कि साहब ने माथा खुजलाया ,
लॉयर जी अभी याद नहीं नाश्ते में क्या था खाया।
"ब्रेड मिली थी या उपमा या मुझे पराठा दाल,
आप कहें फिर याद करें कैसे जजमेंट का जाल?"
उस जजमेंट की चोट जो लॉयर जी ने है फरमाया,
कोई दे साइटेशन मुझको याद नहीं कुछ आया।
अगर नहीं है याद तो कोई , दे दे बस वो पन्ने,
ना कोई फिर डाउट रहेगा ना संशय के फंडे।
ना संशय के फंडे लॉयर फिर बोले धर सिर,
सच बोलूं , इस केस से ज़्यादा भूख लगी गंभीर।
आप पेट भर खाना खाकर भूले केस पुरानी,
मुझ भूखे से क्यों ईक्षित है वो जजमेंट पुरानी?
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