वेश्यावृति व्यसन से अकुलित पीड़ित और परेशान,
व्यथित स्त्री ने आखिर में काटे निज पति के कान।
पति ग्रसित संताप से अतिशय,पकड़ाने जाने के भय से,
रात भाग के पहुंचा गाँव, जहाँ नही कोई था परिचय।
बैठा फिर वृक्ष के नीचे,अविचल,अचल,दृढ कर निश्चय,
विस्मय फैला गाँव में ऐसे,आया कोई शक्तिपुंज अक्षय।
हे ज्ञानी हे पुरुष महान,अब तो तोड़ो अपने ध्यान,
यदि आपने पाया ईश्वर,हमें भी दे दें वो वरदान।
पूछा भक्तों ने प्रभु आप सब कहें ज्ञान की बात,
क्या ईश्वर ने कान के बदले दी कोई सौगात?
कहा व्यक्ति ने विषय गुप्त है,पर योगी ये अति तुष्ट है,
यही कान है आधा बाधा , तेरे कान से ईश्वर रुष्ट है।
इसी कान से सब सुनते हो और सभी सपने बुनते हो ,
माया तो रचना ईश्वर की , पर तुम सब माया चुनते हो।
सब व्यसनों का यही है मूल, प्रभु राह का काँटा शूल,
अभी कली हो,अविकसित हो,बन सकते हो तुम फुल।
यदि कान की बात सुनो ना गर झूठे ना सपने बुन लो ,
माया ओझल हो जाएगी और तुम सब ईश्वर हीं गुन लो।
ओ संसारी, ओ व्यापारी, ओ गृहस्थ, भोले नादान,
परम ब्रह्म तो मांगे तुमसे, तेरे कानों के बलिदान।
सुन योगी की अमृत वाणी , मंद बुद्धि , भोले औ ज्ञानी,
कटा लिए फिर सबने कान ,क्या गरीब क्या अभिमानी।
दूध वाला या हलवाई हो चाहे सरपंच ग्राम प्रधान,
कान कटा के सारे करते रहते थे ईश्वर गुणगान ।
सब सोचते प्रभु मिलेंगे सरपट पहुंचेंगे प्रभु धाम ,
आखिर ये ही कहता था कन कटों का धर्म पुराण।
पर ईश्वर ना मिला किसी को ,ज्ञात हुआ न फला किसी को,
अधम के मुख पे थी मुस्कान,जो विश्वासी छला उसी को।
कर्ण क्षोभ से मिलती पीड़ा और केवल मिलता उपहास,
तुम औरो को भी ला पकड़ो, गर इक्छित ना हो जग हास।
मन में लेके अतिशय पीड़ा और ले दिल में हाय,
गाँव वाले सब निकल पड़े, ना देख के और उपाय।
कन-कटों की बढ़ी भीड़ तब, वो ईश्वर का लोभ,
अंधभक्तों के जोर से होता नए धर्म की खोज।
कान कटा के सारे करते रहते थे ईश्वर गुणगान ।
सब सोचते प्रभु मिलेंगे सरपट पहुंचेंगे प्रभु धाम ,
आखिर ये ही कहता था कन कटों का धर्म पुराण।
पर ईश्वर ना मिला किसी को ,ज्ञात हुआ न फला किसी को,
अधम के मुख पे थी मुस्कान,जो विश्वासी छला उसी को।
कर्ण क्षोभ से मिलती पीड़ा और केवल मिलता उपहास,
तुम औरो को भी ला पकड़ो, गर इक्छित ना हो जग हास।
मन में लेके अतिशय पीड़ा और ले दिल में हाय,
गाँव वाले सब निकल पड़े, ना देख के और उपाय।
कन-कटों की बढ़ी भीड़ तब, वो ईश्वर का लोभ,
अंधभक्तों के जोर से होता नए धर्म की खोज।
इसी तरह हीं तो शुरू हुई "कन-कटवा पंथ" पुराण,
प्रभु नहीं बस डिस्काउंट में मिलता था ईश्वर अनुमान।
प्रभु नहीं बस डिस्काउंट में मिलता था ईश्वर अनुमान।
याद रहे कोई नया रचाता गर प्रभु नाम का धंधा ,
प्रश्न पूछना भक्त न बनना ना देना कोई चंदा।
अजय अमिताभ सुमन
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