Monday, June 16, 2025

रिक्शा वाला

राजेश एक वकील के पास ड्राईवर था। पिछले पाँच दिनों से बीमार था। पगार देने वक्त साहब ने बताया कि ओवर टाइम मिलाकर और पांच दिन बीमारी के पैसे काटकर उसके 9122 रूपये बनते है। राजेश के ऊपर पुरे परिवार की जिम्मेवारी थी।मरते क्या ना करता।उसने चुप चाप स्वीकार कर लिया।साहब ने उसे 9100 रूपये दिए। पूछा तुम्हारे पास अगर 78 रूपये खुल्ले है क्या? राजेश के पास खुल्ले नहीं थे।मजबूरन उसे 9100 रूपये लेकर लौटने पड़े। फिर वो रिक्शा लिया और घर की तरफ चल पड़ा। घर पहुंच कर रिक्शेवाले को 100 रूपये पकड़ा दिए।पर रिक्शेवाले के पास खुल्ले नहीं थे। आखिर में रिक्शा वाले ने वो पैसे लौटा दिए। राजेश को अपने साहब की बात याद आने लगी। बोल रहे थे, मेरा मकान , मेरी मर्सिडीज बेंज सब तो यहीं है. तुम्हारे 22 रूपये लेकर कहाँ जाऊंगा।तुम्हारे 22 रूपये बचाने के लिए अपने घर और अपने मर्सिडीज बेंज को थोड़े हीं न बेच दूंगा। एक ये रिक्शा वाला था जिसने खुल्ले नहीं मिलने पे अपना 10 रुपया छोड़ दिया और एक उसके साहब थे जिन्होंने खुल्ले नहीं मिलने पे उसके 22 रूपये रख लिए। ये सबक राजेश को समझ आ गयी। मर्सिडीज बेंज पाने के लिए साहब की तरह गरीबी को पकड़ना बहुत जरूरी है। ज्यादा बड़ा दिल रख कर क्या बन लोगे, महज एक रिक्शे वाला।

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