हालात से मारे हुए क्लाएन्ट को
पकड़ता है पहले
किसी कोर्ट में
अपने जैसे हीं किसी विद्वान वकील से
रगड़ने के लिए
झगड़ने के लिए
जज के बिगड़ने पर भी
नहीं छोड़ता रगड़ना,
अकड़ना,
झगड़ना
संभलना
कभी झुकना जज से
और जरूरतन कभी चढ़ जाना
ताकि हालात के मारे क्लाएन्ट की
कम हो सके कुछ जकड़न
और जब कम होने लगती है
क्लाएन्ट की जकड़न
और बढ़ने लगती है
अकड़न
तो फिर निकल पड़ता है वकील
निकलना हीं पड़ता है उसको
फी के वास्ते
क्लाएन्ट से
झगड़ने के लिए
रगड़ने के लिए
बिगड़ने के लिए
सुलझा कर क्लाएन्ट को
खुद हीं
संभलने के लिए
वकालत होती हीं हैं
रगड़ने के लिए
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