Monday, June 30, 2025

भरके अचरज गधे स्वामी

भरके अचरज गधे स्वामी,
पहुँचे अपने घर के नानी।
ईश्वर की कैसी नादानी,
मुझको होती है हैरानी।

नानी मुझको ये सिखला दो,
उलझन मेरी ये सुलझा दो।
तेरी मेरी पूँछे पीछे,
इनकी ऐसी क्यूँ बतला दो ?

चेहरे पे छोटी-सी पूछें,
मर्दों की ये दाढ़ी मूँछ ?
चोटी वाली दीदी देखो,
सर के पीछे लम्बी पूँछ ?

सुनकर नाती की ये बातें ,
बोली नानी बातें प्यारी। 
बोली कहते हो तुम कुछ भी ,
कुछ है सच्ची कुछ है न्यारी।

उनकी मूँछें शान ना  समझो,
चोटी रूप प्रमाण ना समझो।
तेरी पूँछ व्यर्थ नहीं है,
मख्खी हीं प्रमाण है समझो।

सबके अपने अपने जादू ,
सबकी अपनी अपनी भाषा ।
अपने अपने करतब सबके ,
सबकी अपनी खेल तमाशा ।

तो सुन लो  ए मेरे प्यारे ,
ना कर तू निज  मन को भारी।
पूँछ हिला मख्खी को भगाओ ,
और रेंकना योग है सारी !
 



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