Monday, June 23, 2025

गदा हनुमान जी की

हनुमान जी का स्वरूप भारतीय संस्कृति में शक्ति, भक्ति और ज्ञान की त्रिवेणी के रूप में प्रतिष्ठित है। वह केवल प्रभु श्रीराम के परम भक्त ही नहीं, बल्कि धर्म की स्थापना में उनका सबसे विश्वसनीय सहयोगी, एक अजेय योद्धा और संकटमोचन के रूप में पूजित हैं। उनके चरित्र में ऐसी विलक्षणता है कि सामान्यतः यह धारणा बन गई है कि इतने पराक्रमी और दिव्य योद्धा के पास कोई महाशक्तिशाली अस्त्र-शस्त्र अवश्य रहा होगा। इस संदर्भ में सबसे अधिक उनके साथ जो छवि जुड़ी हुई है, वह है — गदा की।

गदा भारतीय परंपरा में शक्ति, पराक्रम और विजय का प्रतीक मानी जाती है। हनुमान जी की अधिकांश मूर्तियों, चित्रों और लोककथाओं में उन्हें गदा-धारी के रूप में दिखाया जाता है। इससे यह स्वाभाविक धारणा बन गई है कि हनुमान जी ने अपने समस्त युद्धों में गदा का प्रयोग किया होगा। परंतु जब हम वाल्मीकि द्वारा रचित मूल रामायण के प्रसंगों को ध्यानपूर्वक पढ़ते हैं, तो यह अत्यंत रोचक तथ्य सामने आता है कि कहीं भी हनुमान जी द्वारा गदा के प्रयोग का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं मिलता

उदाहरण के लिए, जब लंका में हनुमान जी का सामना राक्षस अकम्पन से होता है, तो वे गदा का प्रयोग नहीं करते, बल्कि एक विशालकाय वृक्ष को उखाड़कर उसे अस्त्र बनाते हैं और उसी से उसका वध कर देते हैं। यह उनके शारीरिक बल और युद्ध कौशल का उदाहरण है, न कि किसी पारंपरिक हथियार का।

इसी तरह, जब रावण स्वयं उनके समक्ष आता है, तो हनुमान जी कोई शस्त्र नहीं उठाते, बल्कि उसे एक जोरदार थप्पड़ मारते हैं। यह घटना प्रतीक है उस आत्मबल और अपराजेय ऊर्जा का, जो किसी अस्त्र की मोहताज नहीं होती। यही नहीं, जब रावण लक्ष्मण जी को घायल करने के बाद उन्हें उठाने का प्रयास करता है, तो हनुमान जी घूंसा मारकर उसे दूर हटा देते हैं

आगे चलकर, राक्षस निकुंभ को हनुमान जी अपने हाथों से सिर मरोड़कर मार डालते हैं, और मेघनाद के साथ युद्ध में वे शिला का प्रयोग करते हैं। इन सभी युद्धों में उन्होंने कभी गदा का प्रयोग नहीं किया।

तो क्या हनुमान जी के पास गदा थी ही नहीं?

इस प्रश्न का उत्तर उनके चरित्र में ही निहित है। यह वही वीर हैं, जिन्होंने बाल्यकाल में सूर्य को फल समझकर निगलने के लिए आकाश में 400 योजन की छलांग लगाई थी। उनकी गति, शक्ति और संकल्प किसी साधारण अस्त्र से बंधे नहीं थे। उन्हें किसी गदा की आवश्यकता ही नहीं थी।

यह संभव है कि गदा उनके पराक्रम और अपराजेय शक्ति का प्रतीक बन गई हो, न कि वास्तविक युद्धोपयोगी शस्त्र। लोक परंपराओं, पौराणिक गाथाओं और भक्ति साहित्य में यह प्रतीकात्मकता धीरे-धीरे सजीव रूप लेती गई और आज गदा उनके चरित्र का अभिन्न प्रतीक बन चुकी है। किंतु मूल ग्रंथ हमें यही सिखाता है कि हनुमान जी का सबसे बड़ा शस्त्र उनका आत्मबल, भक्ति और निर्भीकता थी

इसलिए, जब भी हम हनुमान जी की गदा-धारी छवि देखें, तो हमें यह स्मरण रहे कि उनकी शक्ति किसी शस्त्र पर निर्भर नहीं थी। वे स्वयं में एक चलती-फिरती ऊर्जा के स्रोत थे, जिनका अस्त्र उनका मन, शरीर और धर्म के प्रति अडिग समर्पण था।

यही कारण है कि आज भी हनुमान जी सिर्फ एक योद्धा नहीं, बल्कि आत्मबल, साहस और भक्ति के सबसे ऊँचे प्रतीक के रूप में पूजित हैं।

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