जब बहुरानी हमेशा सहमी-सहमी सी दिखने लगी, तो सासू माँ को चिंता हुई। रिश्ते में मिठास कैसे आए, यही सोचते-सोचते वो जा पहुँचीं पंडित जी के पास।पंडित जी ने माथे पर तिलक लगाते हुए कहा, "जो बहू को बेटी माने, उसका घर ही स्वर्ग बनता है।" बस, यही वाक्य सासू माँ के दिल में उतर गया।घर लौटते ही सासू माँ ने बहुरानी को प्यार से पास बिठाया, और कहा, “तू मेरी बेटी जैसी है, डर मत, ये घर अब तेरा ही है। लेकिन बहुरानी ने भी बेटी बनते ही ऐसा कुछ कर दिखाया... कि सासू माँ के माथे बल पड़ गए। तो देखिए इस हास्य-रस से सराबोर कविता में, कैसे पंडित जी के बताए एक वाक्य ने सास-बहू के रिश्ते में क्रांति ला दी।
ना जाने किस घाट घुमाया,
पंडित ने क्या पाठ पढ़ाया?
कौन ज्ञान था कैसी घुटी ,
सासूजी का दिल भर आया।
दिल भर आया बोली रानी,
तुझको है एक बात बतानी।
क्यों सहमी सी डरती रहती,
बात है ऐसी क्यों बहुरानी?
ससुराल भी नैहर जैसा,
फिर तेरे मन ये डर कैसा ?
मेरा तो कुछ दिन का डेरा,
ये घर तो तेरे घर जैसा।
पंडित जी सच हीं कहते हैं ,
जो बहू को बेटी कहते हैं ।
वहीँ स्वर्ग है इस धरती पे ,
वहीँ स्वर्ग से सुख मिलते हैं।
तुझको बस इतना हीं कहना,
तू हीं तो मेरे दिल का गहना।
जो इच्छा हो मुझे बताओ,
बहुरानी बेटी बन जाओ।
सासू मां की बात जान के,
उनके मन के राज जान के।
बहुरानी समझी घर अपना,
बोली उनको मां मान के।
अम्माजी ना मुझे जगाएँ ,
बिस्तर से ना मुझे उठाएँ।
नींद घोर सुबहो आती है ,
बिना बात के ना चिल्लाएं।
मैं जब नैहर में रहती थी ,
मम्मी से सब कह देती थी।
उठकर मम्मी चाय पिलाती,
पैर दर्द तब पैर दबाती।
बोली अम्मा चाय बनाओ,
सूत उठकर मुझे पिलाओ।
जब सर थोड़ा भारी लगता ,
हौले हौले उसे दबाओ।
पैसा रखा बचा बचा के,
पापाजी से छुपा छुपा के।
बनवा दो मुझको तुम गहना,
अम्माजी इतना हीं कहना।
अजय अमिताभ सुमन
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