ना जाने किस घाट घुमाया,
सासू मां को पाठ पढ़ाया?
जाने क्या थी घुटी पिलाई,
सासूजी का दिल भर आया।
दिल भर आया बोली रानी,
तुझको है एक बात बतानी।
क्यों सहमी सी डरती रहती,
क्यों बात ऐसी बहुरानी?
ससुराल भी नैयर जैसा,
अंतर घी मैहर में कैसा?
एक दूध से मक्खन बनता,
फिर मठ्ठा से रैहर कैसा?
बस तुझको बस इतना कहना,
तू हीं मेरे दिल का गहना।
जो इच्छा हो मुझे बताओ
ससुराल को समझो अपना।
सासू मां की बात जान के,
उनके मन के राज जान के।
बहुरानी समझी घर अपना,
बोली उनको मां मान के।
माता उठकर चाय बनाओ,
सूत उठकर मुझे पिलाओ।
थोड़ा सा सर भारी लगता,
हौले हौले जरा दबाओ।
पैसा रखा जो बचा बचा के,
घर से थोड़ा दबा दबा के।
बनवा दो मुझको तुम गहना,
सासू मां इतना बस कहना।
अजय अमिताभ सुमन
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