Friday, June 27, 2025

स्वयं का राज्य

किसी समय, पूर्व दिशा के एक गाँव में आरव नामक एक तोता रहता था। वह दूसरों को अपनी तेज़ वाणी और बुद्धिमानी से प्रभावित कर देता था। वह उड़ नहीं सकता था, लेकिन अपने भाषणों से सबको यकीन दिलाता कि वह सबसे ऊँची उड़ान भरने वाला पक्षी है।

उसका सपना था — "राजा बनना"।एक दिन उसने गाँववालों के सामने घोषणा कर दी,“मैं स्वयंपुर द्वीप पर जा रहा हूँ। वहाँ सिर्फ़ श्रेष्ठ प्राणी ही प्रवेश कर सकते हैं। और मैं वहाँ का अगला राजा बनूँगा!”

हँसी उड़ाते हुए सबने कहा, “तू उड़ता भी नहीं, और राजा बनेगा?”

आरव ने कहा, “चाहना ही काफी है। जब चाह प्रबल हो, तो राह खुद बन जाती है!”

वह एक टूटी हुई नाव में बैठकर समुद्र की ओर निकल पड़ा।

समुद्र शांत था, लेकिन तीसरे दिन अंधकार छा गया। लहरें आसमान छूने लगीं। तूफान ने नाव को निगल लिया और आरव समुद्र में बह गया।जब वह चेतना में लौटा, तो उसने खुद को एक चमकदार उड़ती मछली की पीठ पर पाया। वह मेघा थी।

“कहाँ जा रहे हो, आरव?” उसने पूछा।

आरव ने गर्व से कहा, “मैं स्वयंपुर द्वीप का राजा बनने जा रहा हूँ!”

मेघा ने चुपचाप उसे एक हरे-भरे, अद्भुत द्वीप तक पहुँचाया—स्वयंपुर।

जैसे ही आरव ने द्वीप पर कदम रखा, वह मंत्रमुग्ध हो गया। हर चीज़ स्वप्न जैसी थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बीता, वह देखता कि वहाँ कोई नहीं है—फिर भी हर चीज़ उसे देख रही है।पत्तियाँ सरसरातीं, जैसे कानाफूसी कर रही हों। पानी में उसका प्रतिबिंब कभी मुस्कुराता, कभी उदास हो जाता।

एक रात उसने खुद को एक पेड़ के नीचे खड़ा पाया। पेड़ बोला, “तू खुद को राजा मानता है, पर क्या तू उड़ना जानता है?”

आरव ने चिढ़कर कहा,“राजा बनने के लिए उड़ना ज़रूरी नहीं। इच्छा सबसे बड़ी चीज़ है!”

पेड़ ने उत्तर दिया,“मंज़िल का मिलना तुम्हारे होने पर निर्भर करता है, तुम्हारे चाहने पर नहीं।”

हर रात आरव को अजीब सपने आते—जहाँ वह खुद से बातें करता, अपने डर, अपने झूठ और अपने खालीपन से जूझता।

तीसरे दिन, मेघा फिर प्रकट हुई।

“क्या तुम स्वयंपुर के राजा बनने के योग्य हो गए?” उसने पूछा।

आरव ने सिर झुका लिया। उसकी आवाज़ अब पहले जैसी नहीं थी।

“मैंने समझा कि सिर्फ़ चाहने से कुछ नहीं मिलता। मैं उड़ नहीं पाता, फिर भी सबसे ऊँचा दिखने की कोशिश करता रहा। लेकिन अब मैं देख पा रहा हूँ—राजा वो नहीं जो सबको जीत ले, बल्कि वो जो खुद को जान ले।”

मेघा ने मुस्कुराते हुए कहा, “अब तुम उड़ सकते हो।”

और आश्चर्य! आरव के पंख धीरे-धीरे फैलने लगे। हल्का होकर वह आकाश में उठने लगा। उसकी उड़ान सच्ची थी—क्योंकि वो जान चुका था कि केवल चाहने से मंज़िल नहीं मिलती; मंज़िल उन्हीं को मिलती है जो उसके योग्य बनते हैं। तुम क्या चाहते हो, ये महत्वपूर्ण नहीं है—तुम क्या हो, यह तय करेगा तुम्हारा स्थान। राजा बनने के लिए सबसे पहले आत्म-राज्य में विजयी होना पड़ता है।

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