Thursday, June 12, 2025

चंदा का धंधा

एक गांव में भोलू राम नाम का एक चतुर-चालाक शख्स रहता था, जिसकी वेश्यावृत्ति की लत ने उसकी बीवी चमेली को इस कदर तंग कर दिया कि उसका गुस्सा सूरज-चांद को भी मात दे दे। एक दिन चमेली ने रसोई से अपनी चमकती कैंची उठाई, जो वो सब्जी काटने के लिए रखती थी, और चटाक-चटाक! भोलू के दोनों कान काट डाले। भोलू दर्द से उछलकर चिल्लाया, “हाय रे चमेली, ये क्या अनर्थ कर डाला? मेरे कान! अब मैं गांव में कैसे मुंह दिखाऊं? लोग तो कहेंगे, ‘देखो भोलू कन-कटा!’” चमेली ने आंखें तरेरकर कहा, “जा, जहां मुंह दिखाना है दिखा! मेरे घर में अब तेरे कान नहीं, सिर्फ तेरा बेकार सिर बचेगा, वो भी तब तक जब तक मेरी कैंची फिर न चले!” भोलू, जो डरपोक था मगर दिमाग का धनी, रात के अंधेरे में गांव से भाग खड़ा हुआ। एक पुरानी पगड़ी, दो सूखी रोटियां, और एक फटी चप्पल बैग में डालकर वो पहुंच गया एक ऐसे अनजान गांव में, जहां उसका नाम तक कोई नहीं जानता था।

वहां एक विशाल बरगद के पेड़ तले भोलू ने डेरा जमाया। सिर पर चमेली की फटी साड़ी से बनाई रंग-बिरंगी पगड़ी लपेटी, कानों की जगह गमछा बांधा, और चेहरा ऐसा बनाया जैसे वो साक्षात भगवान का वी.आई.पी. एजेंट हो। गांव वाले, जो हर अजनबी को साधु समझने की बीमारी से पीड़ित थे, तुरंत जमा हो गए। “बाबाजी, ये क्या तपस्या? गमछा कानों पर क्यों? आप तो कोई सिद्ध पुरुष लगते हो!” भोलू ने मौका देखा, गला खंखारा, और ऐसी ड्रामाई आवाज निकाली जैसे बॉलीवुड में हीरो की एंट्री हो। बोला, “मैं हूं कन-कटवा बाबा! ये कान, हां, ये कान ही माया का सुपर-एक्सप्रेस हाईवे हैं! इनके जरिए माया सीधे दिमाग में डाउनलोड होती है—पड़ोसन की चुगली, भोजपुरी गाने, सास-बहू की सीरियल, लॉटरी का नंबर, सट्टे की टिप्स, और ससुराल वालों की गॉसिप! मैंने तो अपने कान कटवा दिए, और बस, प्रभु मेरे सामने डिस्को डांस करते हुए प्रकट हुए! बोले, ‘भोलू, तू अब माया-मुक्त है, चल मेरे साथ स्वर्ग में डीजे पार्टी करें, मैंने लेजर लाइट्स फिट करवाई हैं!’”

गांव वालों की तो जैसे जैकपॉट लग गई। एक चिल्लाया, “सच में, बाबाजी? कान कटवाने से प्रभु डांस करेंगे?” भोलू ने जोश में लपेटा, “हां, भक्तो! ये कान माया का 5G राउटर हैं, 24/7 कनेक्टेड! सिग्नल काटो, माया ऑफ, प्रभु ऑन! और हां, प्रभु ने मुझे बताया कि कान कटवाने से चेहरा चमकता है, बिना फेयरनेस क्रीम के, बाल झड़ना बंद हो जाते हैं, और पेट की गैस भी कम हो जाती है!” बस, गांव में हंगामा मच गया। लोग कैंची, उस्तरा, और जो मिला वो लेकर दौड़े। नाई ने चिल्लाकर कहा, “आज फ्री में कान काटूंगा, बस बाबाजी का आशीर्वाद चाहिए!” हलवाई ने अपनी मिठाई काटने वाली कैंची उठाई, दूधवाले ने दूध छानने वाला चाकू, और सरपंच ने तो अपनी पुश्तैनी तलवार निकाल ली, बोला, “बाबाजी, मेरे कान पहले कटेंगे, मैं सरपंच हूं, वी.आई.पी हूं!” कट-कट-कट! गांव में कान कटाई का ऐसा मेला लगा कि लगता था कोई नया नेशनल फेस्टिवल शुरू हो गया। लोग गाते, “कान कटाओ, माया भगाओ, प्रभु को नचाओ!” बच्चे-बूढ़े, जवान-जवानी, सब कन-कटवा पंथी बन गए। बाजार में कैंची की दुकानें लुट गईं, और नाई की दुकान पर तो ऑनलाइन बुकिंग शुरू हो गई। भोलू सोच रहा था, “अरे, मैंने तो चमेली की कैंची से बचने को ये नौटंकी शुरू की, और ये बेवकूफ सचमुच कान काट रहे हैं! ये तो मेरे लिए हॉलीवुड ब्लॉकबस्टर हो गया!”

कुछ दिन बाद गांव वाले, कान पर रंग-बिरंगे गमछे बांधे, मायूस होकर आए। “बाबाजी, कान कटवाए, खून बहाया, दर्द सहा, इंफेक्शन झेला, पड़ोसी हंस रहे हैं, बच्चे चिढ़ा रहे हैं, ‘कन-कटा गैंग!’ अब तो कुत्ते भी भौंकते हैं! पर प्रभु तो डांस करने नहीं आए, उल्टा गांव में मजाक बन गया!” भोलू ने तुरंत दिमाग की बत्ती जलाई और गंभीर मुद्रा में बोला, “अरे मूर्ख भक्तो! तुमने सोचा कान कटवाने से प्रभु डिस्को करेंगे? अरे, भाई, पहले प्रभु की परीक्षा में पास तो हो जाओ! मेरे सिर्फ कान कटने से प्रभु नहीं मिले। मैंने तो अपने चित्त को संभाला, प्रभु की भक्ति में लीन हुआ, 10 साल तक मन को वश में किया, और लाखों लोगों को प्रभु भक्ति की राह पर लगाया। तब जाकर प्रभु की कृपा हुई है! तुम लोग भी जाओ, कान तो कटवा लिए, अब मन को वश में करो, ईश्वर पर अटूट आस्था रखो, और ज्यादा से ज्यादा लोगों को सत्संग में जोड़ो। उचित समय पर प्रभु अवश्य मिलेंगे!”

गांव वालों में जैसे बिजली दौड़ गई। “वाह, बाबाजी! ये तो सच्ची बात है!” भक्तों में उत्साह फैल गया। कुछ भक्तों को मन की शांति मिलने लगी, कुछ ने सोचा, “हां, शायद हमारा मन अभी शुद्ध नहीं हुआ!” और वो निकल पड़े पड़ोस के गांवों में कन-कटवा पंथ का ढोल पीटने। लोग कान कटवाकर पंथ से जुड़ने लगे। धीरे-धीरे चंदा इकट्ठा होने लगा। कोई 100 रुपये देता, कोई 500, और सरपंच ने तो अपनी तलवार बेचकर 10,000 का चंदा दे डाला! भोलू के लिए तो जैसे स्वर्ग जमीन पर उतर आया। चंदे का धंधा ऐसा चला कि भोलू ने सोचा, “कन-कटवा पंथ तो सेट है, अब चंदा-कटवा पंथ भी शुरू कर दूं!”

देखते-देखते कन-कटवा पंथ सुपर-डुपर वायरल हो गया। हर गांव में लोग कान काट-काटकर गर्व से चिल्लाते, “हम हैं कन-कटवा पंथी, माया-मुक्त, प्रभु-भक्त!” बाजार में कैंची की बिक्री हजार गुना बढ़ गई। नाई की दुकान पर तो VIP पास सिस्टम शुरू हो गया। लोग कान कटवाकर सेल्फी खींचते और सोशल मीडिया पर डालते, हैशटैग #कन_कटवा_पंथ ट्रेंड करने लगा। चंदे की पेटियां हर गांव में रख दी गईं, जिन पर लिखा था, “प्रभु दर्शन के लिए चंदा दो, माया भगाओ!” पर प्रभु? वो तो किसी को दिखे ही नहीं। मिली तो बस कान कटवाने की जलन, इंफेक्शन, और पड़ोसियों का ठहाका। लोग गमछा बांधे घूमते, पर शर्मिंदगी से मुंह छिपाते। फिर भी पंथ बढ़ता गया, क्योंकि भोलू ने चालाकी से कह रखा था, “जितने ज्यादा भक्त, जितना ज्यादा चंदा, उतनी जल्दी प्रभु दर्शन!” कोई भोलू का राज नहीं पकड़ सका। वो हर गांव में नई पगड़ी, नया गमछा, और नया ड्रामा लेकर कन-कटवा बाबा बनता रहा।

एक दिन गांव में एक चतुर बूढ़ा बोला, “कहीं ये वो भोलू राम तो नहीं, जिसके कान उसकी बीवी चमेली ने काटे थे?” पर भोलू की चालाकी ऐसी थी कि उसने पहले ही अफवाह फैला दी थी, “मेरे जैसे कई नकली बाबा घूम रहे हैं, असली कन-कटवा बाबा मैं हूं, मेरे गमछे पर ‘मेड इन स्वर्ग’ का लेबल देखो!” गांव वाले कनफ्यूज हो गए और भोलू का राज, राज ही रहा। वो तो कब का अगले जिले में “नाक-कटवा पंथ” की स्क्रिप्ट लिखने निकल चुका था, सोचते हुए, “अगली बार नाक कटवाऊंगा, फिर मुंह, फिर पूरा सिर! चंदा तो बरसता रहेगा!” और प्रभु? वो तो ऊपर बैठकर पॉपकॉर्न खाते हुए तमाशा देख रहे थे, बोले, “भोलू, तू तो मेरे भी बाप निकला! अगली बार स्वर्ग में तुझे चंदा कलेक्शन का ठेका दूंगा!”

अजय अमिताभ सुमन

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