एक सुंदर बाग में मोर और मैना रहते थे। उनकी दोस्ती मशहूर थी—मोर नाचता, मैना गाता, और बाग़ में जैसे जादू फैल जाता। खासकर बरसात में, जब बादल छाते, तो मोर पंख फैलाकर झूमता, और मैना अपनी चहचहाहट से हवा को संगीतमय बना देती।
एक दिन बाग़ के मालिक का छोटा बेटा वहां आया। जब उसने मोर और मैना की जुगलबंदी देखी, तो आनंद से भर गया। लेकिन मोर केवल बारिश में नाचता था, इसलिए बच्चे को अक्सर निराशा होती। तब मैना ने बच्चे की आवाज़ की नकल करनी शुरू की। बच्चा ख़ुश हो गया—वह बार-बार बुलाता, और मैना हूबहू उसकी बोली दोहराती।
धीरे-धीरे बच्चा मैना के करीब होता गया। मोर पीछे छूट गया। उसने मैना को चेताया—"अपनी आवाज़ मत खो, आदमी की नकल करना आत्मा की आवाज़ को दबाना है।" मगर मैना सिर्फ बच्चे की खुशी देख पा रहा था।
समय गुज़रा। बच्चा बड़ा हुआ और पढ़ाई के लिए शहर गया। वह मैना को भी साथ ले गया—मगर पिंजरे में। अब मैना उसकी बोली दोहराता रहा, पर खुला आकाश, मोर की संगत और स्वतंत्र उड़ान—सब पीछे छूट गया।
शहर में जीवन आरामदायक था। बिना मेहनत के भोजन, सुरक्षा, और मालिक की प्रशंसा मिलती थी। धीरे-धीरे मैना को पिंजरे से प्यार हो गया।उसे अब खुले आसमान से डर लगने लगा।
उधर मोर ने भी अकेले रहना सीख लिया। कभी दोस्त की याद में पंख भीगे, पर समय ने उसे फिर बहाल कर दिया।
कई वर्षों बाद बच्चा पढ़ाई पूरी कर घर लौटा और मैना को भी साथ लाया। मोर ने अपनी पुरानी मित्र की आवाज़ सुनी तो दौड़ा चला आया। रात हुई तो चुपचाप पिंजरे के पास पहुंचा।
मैना की आँखें भर आईं। मोर ने धीरे से कहा—“चलो दोस्त, फिर उड़ते हैं। आसमान अब भी हमारा इंतज़ार करता है।”
मैना चुप रहा। कुछ देर सोचकर उसने पिंजरे का दरवाज़ा फिर से बंद कर दिया।
“अब उड़ने की आदत नहीं रही,” वह बोला।“यहां सब कुछ है—भोजन, सुरक्षा, प्यार… और ज़्यादा क्या चाहिए?”
मोर मुस्कराया, मगर आँखें नम थीं।“अब तुम भी आदमी जैसे हो गए हो… जो आज़ादी से डरता है और जो साथ रहता है, उसे भी पिंजरे में रखना चाहता है।”
मोर लौट गया—अकेला, मगर आज़ाद।मैना रह गया—सुरक्षित, मगर सीमित।
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