Saturday, December 24, 2022

किवाड़ खा गई


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सबूत भी गवाह भी
किवाड़ खा गई,
जालिम ये दीमक सारी,  
मक्कार खा गई।
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हराम की थी  रातें, 
छिपी सी मुलाकातें ,
किसने खिलाये क्या गुल,
गुमनाम सारी बातें।
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आस्तीन में छुपे हुए, 
गद्दार खा गई ,
जालिम ये दीमक सारी, 
मक्कार खा गई।
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जिस रोड के थे चर्चे , 
जिस पर हुए थे खर्चे ,
लायें कहाँ से उसको , 
लिख लिख भरे थे पर्चे।
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कि झूठ पर फले सब , 
रोजगार खा गई,
जालिम ये दीमक सारी,  
मक्कार खा गई।
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फाइल में बन पड़ी थी , 
चौपाल की जो बातें,
ना ब्रिज वो दिखती है , 
बस नाम की हीं बातें।
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दफ्तर के  काले चिट्ठे ,
कारोबार खा गई,
जालिम ये दीमक सारी,  
मक्कार खा गई।
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अजय अमिताभ सुमन
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