Sunday, October 30, 2022

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग:39



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दुर्योधन को गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु के उपरांत घटित होने वाली वो सारी घटनाएं याद आने लगती हैं  कि कैसे अश्वत्थामा ने कुपित होकर पांडवों पर वैष्णवास्त्र का प्रयोग कर दिया था। वैष्णवास्त्र के सामने प्रतिरोध करने पर वो अस्त्र और भयंकर हो जाता और प्राण ले लेता। उससे  बचने का एक हीं उपाय था कि उसके सामने झुक जाया जाए, इससे वो शस्त्र शांत होकर लौट जाता। केशव के समझाने पर भीम समेत सारे पांडव उस शस्त्र के सामने झुक गए। भले हीं पांडवों की जान श्रीकृष्ण के हस्तक्षेप के कारण बच गई हो एक बात तो निर्विवादित हीं थी कि अश्वत्थामा के समक्ष सारे पांडवों ने घुटने तो टेक हीं दिए थे। प्रस्तुत है मेरी दीर्घ कविता “दुर्योधन कब मिट पाया का उनचालिसवां भाग।        
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मृत पड़ने  पर गुरु द्रोण के 
कैसा महांधकार  मचा था,
कृपाचार्य रण त्यागे दुर्योधन 
भी निजबल हार चला था।
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शल्य चित्त ना दृष्टि गोचित 
ओज शौर्य ना  कोई आशा,
और कर्ण भी भाग चला था
त्याग दीप्ति बल  प्रत्याशा। 
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खल शकुनि के कृतवर्मा के
समर क्षेत्र ना टिकते पाँव,
सेना  सारी भाग चली  थी,
ना परिलक्षित कोई  ठांव।
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इधर मचा था दुर्योधन मन  
गहन निराशा घनांधकार ,
उधर द्रोणपुत्र कर स्थापित 
खड़ग धनुष और प्रत्याकार।
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पर जब ज्ञात हुआ उसको, 
क्यों इहलोक  से चले गए ,
द्रोण पुत्र के पिता द्रोण वो 
तनय स्नेह  में  छले  गए।
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क्रोध से भरकर द्रोणपुत्र ने 
विकट  शस्त्र  बुलाया  था,
वैष्णवास्त्र अभिमंत्रण कैसा 
वो प्रत्यस्त्र चलाया था। 
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अग्निवर्षा होती थी नभ में  
नहीं  कोई  टिक पाता था,
जड़ बुद्धि हीं भीम डटा था
बात  नहीं पतियाता था।
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वो तो केशव आ पहुंचे थे 
अगर नहीं आ पाते तो  ?
बच पाते क्या पांडव बंधु
ना उपचार  सुझाते  वो?
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द्रोण पुत्र की प्रलयग्नि के  
सम्मुख ना कोई भारी था, 
नतमस्तक हो प्राण बचे वो
समय अमंगल कारी  था।
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दुर्योधन के मानस पट पर 
दृश्य उभर सब आते थे ,
भीषण शस्त्र चलाने गुरु 
द्रोण पुत्र को  आते थे।
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इसीलिए तो द्रोण पुत्र की  
बातों पर मुस्कान फली,
दुर्योधन हर्षित था सुनकर 
अच्छा था जो जान बची।
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जरा देखूँ  तो द्रोण पुत्र ने 
कैसा अद्भुत काम किया ?
क्या सच में हीं पांडवजन को 
उसने है निष्प्राण किया?   
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अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित
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