Saturday, June 25, 2022

वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में[द्वितीय भाग]

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धर्म ग्रंथों के प्रति श्रद्धा का भाव रखना सराहनीय  हैं। लेकिन इन धार्मिक ग्रंथों के प्रति वैसी श्रद्धा का क्या महत्व जब आपके व्यवहार इनके द्वारा सुझाए गए रास्तों के अनुरूप नहीं हो? आपके धार्मिक ग्रंथ मात्र पूजन करने के निमित्त नहीं हैं? क्या हीं अच्छा हो कि इन ग्रंथों द्वारा सुझाए गए मार्ग का अनुपालन कर आप स्वयं हीं श्रद्धा के पात्र बन जाएं। प्रस्तुत है मेरी कविता "वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में" का द्वितीय भाग। 
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क्या रखा है वक्त गँवाने 
औरों के आख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में।
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धर्मग्रंथ के अंकित अक्षर 
परम सत्य है परम तथ्य है,
पर क्या तुम वैसा कर लेते 
निर्देशित जो धरम कथ्य है?
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अक्षर के वाचन में क्या है 
तोते जैसे गान में?
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में।
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दिनकर का पूजन करने से 
तेज नहीं संचित होता ,
धर्म ग्रन्थ अर्चन करने से 
अक्ल नहीं अर्जित होता।
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मात्र बुद्धि की बात नहीं 
विवर्द्धन कर निज ज्ञान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में।
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जिस ईश्वर की करते बातें 
देखो सृष्टि रचने में,
पुरुषार्थ कितना लगता है 
इस जीवन को गढ़ने में।
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कुछ तो गरिमा लाओ निज में 
क्या बाहर गुणगान में?
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में। 
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क्या रखा है वक्त गँवाने 
औरों के आख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो 
तुम निज के निर्माण में।
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अजय अमिताभ सुमन
सर्वाधिकार सुरक्षित 

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