Saturday, December 19, 2020

जीव और जगत

जीव  तुझमें  और जगत में, है  फरक  किस बात  की,
ज्यों  थोड़ा  सा  फर्क शामिल,मेघ और  बरसात   की।

वाटिका    विस्तार    सारा ,  फूल   में   बिखरा हुआ,
त्यों  वीणा   का  सार   सारा,  राग  में   निखरा  हुआ।

चाँदनी   है  क्या  असल  में ,  चाँद  का   प्रतिबिंब  है,
जीव    की    वैसी    प्रतीति , गर्भ   धारित   डिम्ब  है।

या   रहो   तुम    धुल बन कर ,कालिमा कढ़ते  रहो,
या  जलो  तुम  मोम बनकर  , धवलिमा गढ़ते  रहो।

पर   परिक्षण  में   लगो   या,  स्वयम   के  उत्थान में,
या निरिक्षण निज का हो चित ,रत रहे निज त्राण में।

माँग तेरी क्या परम से , या   कि  दिन  की ,रात  की,
जीव  तुझमें  और  जगत में,बस फरक इस बात की।

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