जिन्हें चाह है इस जीवन में, स्वर्णिम भोर उजाले की,
उन राहों पे स्वागत करते,घटा टोप अन्धियारे भी।
इन घटाटोप अंधियारों का, संज्ञान अति आवश्यक है,
गर तम से मन में घन व्याप्त हो,सारे श्रम निरर्थक है।
ऐसी टेड़ी सी गलियों में,लुकछिप कर जाना त्राण नहीं,
एक रोध का टिक जाना हीं,विच्छेदित अवधान नहीं,
एक फूल का मिट जाना हीं,उपवन का अवसान नहीं।
इस सृष्टि में हर व्यक्ति को, आजादी अभिव्यक्ति की,
व्यक्ति का निजस्वार्थ फलित हो,नही राह ये सृष्टि की।
जिस नदिया की नौका जाके,नदिया के हीं धार बहे ,
उस नौका को किधर फ़िक्र कि,कोई ना पतवार रहे?
लहरों से लड़ना भिड़ना हीं, उस नौका का परित्राण नहीं,
एक रोध का टिक जाना हीं,विच्छेदित अवधान नहीं।
एक फूल का मिट जाना हीं,उपवन का अवसान नहीं।
इस जीवन में आये हो तो,अरिदल के भी वाण चलेंगे,
जिह्वा से अग्नि की वर्षा , वाणि से अपमान फलेंगे।
आंखों में चिंगारी तो क्या, मन मे उनके विष गरल हो,
उनके जैसा ना बन जाना,भाव जगे वो देख सरल हो।
निज-ह्रदय प्रेम से रहे आप्त,इससे बेहतर उत्थान नहीं,
एक रोध का टिक जाना हीं,विच्छेदित अवधान नहीं,
एक फूल का मिट जाना हीं,उपवन का अवसान नहीं।
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