Friday, December 8, 2017

मैं अनेक हूँ


सड़क पे एक्सीडेन्ट में लोगो को मरते देख
डरने वाला आदमी , 

ऑफिस में लेट पहुँचने के डर से
सड़क पे सरपट दौड़ लगाने वाला आदमी .

ऑफिस में अपने से छोटे स्टाफ को
झूठ बोलने पे गाँधी का लेक्चर देने वाला आदमी ,

और घर पे पडोसी को एवोइड करने के लिए 
बेटे से झूठ कहलवाने वाला आदमी .

बेटे को टी वी से चिपक कर क्रिकेट देखने पे
जोर से डपटने वाला आदमी , 

और ऑफिस से लौटते वक्त एक दुकान के सामने खड़े हो
मिनटों क्रिकेट का लुत्फ़ उठाने वाला आदमी .

कोर्ट में क्लर्क के एक्स्ट्रा पैसे मांगने पे
झुंझलाने वाला आदमी ,

और रोड पे एक का सिक्का मिलने पे 
चुपचाप जेब में रखने वाला आदमी .

सुबह जल्दी उठने का निश्चय कर
रात को जल्दी सोने वाला आदमी ,

और सुबह थोड़ा और थोड़ा और कर 
देर से उठकर झुंझलाने वाला आदमी .

मैं अनेक हूँ .


अजय अमिताभ सुमन




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