दुनिया ये तेरी मेरी , फरक फकत की यू हैI
ना आरजू हुनुज है , ना कोई जुस्तजू हैII
दियारे खुप्तागा माफिक, है मंजर कायनात केI
ताउन से भी मुश्किल तबियत हालत केII
ना बहती हर सहर , मर्सत बयार सी I
शामें है शामें हिज्र ,रातें सबे फिराक कीII
ऐ खुदा तू ही जाने , ये उकदायहोक कायनातI
जहाँ में ईब्लिश गालिब, दोजख में काफिरों की जामतII
सजदे तो मैं भी रखता तेरी रहगुजर में ऐ मबुद।
कि तल्खी ऐ जिस्त से , दिल भारी दिमाग उब II
अब चलो चलें पूरा करने , अपने अपने शौकI
तू पैदा कर नसले आदम मैं मुक्करार अपनी मौतII
अजय अमिताभ सुमन
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