Saturday, January 20, 2024

ओ परबत के मूल निवासी

ओ परबत  के मूल निवासी, 

भोले भाले शिव कैलाशी।


जब जब होता व्याकुल जग से, 

तब तुझको देखे अविनाशी। 


भव तम को मन मुड़ जाता हैं ,

घन जग बंधन जुड़ जाता हैं।


अंधकार तब होता डग में , 

काँटे बिछ जाते हैं पग में।


विचलित मन अब तुझे पुकारे, 

तमस हरो हे अपरिभाषी।


ओ परबत  के मूल निवासी,

भोले भाले शिव कैलाशी।


शिव शक्ति हीं राह हमारी, 

शिव की भक्ति चाह हमारी।


एक लक्ष्य हीं मेरा तय हो ,

शिव कदमों में निजमन लय हो।


यही चाह ले इत उत घुमुं , 

अमरनाथ बदरीनाथ काशी।


ओ परबत  के मूल निवासी,

भोले भाले शिव कैलाशी।


अजय अमिताभ सुमन 

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