Thursday, November 20, 2025

जाने कैसे ज़िंदगी छोटी हो गई…

जाने कैसे ज़िंदगी छोटी हो गई… और मैं बड़ा, मैं बड़ा हो गया
कल हीं तो था अपने बचपन की वो चौखट, 
सपनों की रोशनी में पलता, खिलता नटखट 
पर आज वही सपने जैसे दूर कहीं परछाईं बन गए,
नज़र के सामने होते हुए भी हाथों से दूर चले गए, 
ना जाने कैसे वक़्त इतना तेज़ चला… किसी तूफ़ान सा बड़ा
इतनी जल्दी मैं कैसे बूढ़ा हो गया…
ना जाने कैसे ज़िंदगी छोटी हो गई…

कल तक जो मैं था — वो अब कहाँ है, कहाँ खो गया है
आईनों में मेरा अक्स भी जैसे कहीं सो गया है
रिश्तों का घर दिल में अब भी वैसे ही बसता है,
कल तक जो मेरे  अपने थे वो  रिश्ते दूर हो गए ,
पुराने रिश्ते नए अजनबियों के सामने मजबूर हो गए 
इतनी बड़ी ज़िंदगी… मैं जानता ही क्या हूँ
अपने ही किस्सों को पहचानता ही क्या हूँ
जाने कब कैसे मै ऊँचा थोड़ा  हो गया 
जज्बात ना जाने कब कैसे मेरी राह का रोड़ा हो गया
मेरे अपने सब  छोटे हो गए  मै बड़ा हो गया 
ना जाने कैसे ज़िंदगी छोटी हो गई
और मैं बड़ा…बड़ा हो गया…

कभी बच्चों की हँसी में था — मेरा घर, मेरी दुनिया, मेरी धड़कन
वो भागते थे मेरी ओर और उनके आने से खिल उठता था मेरा मन
आज वही बच्चे मेरी उम्र की परछाइयों की लिख देते है उत्तर गर मेरी  उम्र करती है कोई सवाल
न जाने कब उनके बचपन की धूप — मेरी झुर्रियों की छाँव बन गई है फिलहाल
वो नन्हे हाथ जो मेरी ऊँगली थामे थे डरे हुए,
आज मेरी थकी साँसों को थामे हैं सहारा बने हुए 
वक़्त की चाल में कुछ ऐसा हुआ…हर लम्हा जैसे अपनी आवाज़ सुनाता है ख़ामोशी गढ़कर
थकने लगा हूँ हर रिश्तों की अनकही आवाजों को  पढ़ पढ़ कर
वक्त तो ठीक हीं है शायद मैं हीं बुरा हो गया  ,
अनुभवों से बड़ा पर खुद पहले से छोटा हो गया
इतनी जल्दी मैं कैसे बूढ़ा हो गया…
ना जाने कैसे ज़िंदगी छोटी हो गई…

एक वक़्त था — मैं कहानी सुनाता था
अब मैं ही एक कहानी बनकर रह गया हूँ
जिन गलियों में मैंने उन्हें चलना सिखाया,
आज वो वही पीढ़ी मुझे पकड़कर आगे बढ़ा रही हैं
कभी कभी सोचता रह जाता हूँ —
काश वक़्त थोड़ा रुक जाए…
काश एक शाम फिर वही बचपन लौट आए…
वो शोर, वो क़हकहे, वो खेल, वो शरारतें…
काश एक बार फिर मैं भी बच्चा बन जाऊँ
बिना किसी मुक़ाम के… बिना किसी सबूत के
बस जिऊँ…जैसे पहले जीता था…
पर वक़्त कहता है — नहीं रुकना है, चलो और थोड़ा
आँखें नम होती हैं, पर क़दम फिर भी आगे बढ़ते हैं
ना जाने कैसे ये सफ़र ढलता गया,
और मैं बस चलता गया… चलता गया…

Monday, November 17, 2025

बात है ऐसी क्यों बहुरानी

 ना जाने किस घाट घुमाया,

पंडित ने क्या पाठ पढ़ाया?
कौन ज्ञान था कैसी घुटी,
सासूजी का दिल भर आया।

दिल भर आया बोली रानी,
तुझको है एक बात बतानी।
क्यों सहमी सी डरती रहती,
बात है ऐसी क्यों बहुरानी?

ससुराल भी नैहर जैसा,
फिर तेरे मन ये डर कैसा?
मेरा तो कुछ दिन का डेरा,
ये घर तो तेरे घर जैसा।

पंडित जी सच ही कहते हैं,
जो बहू को बेटी कहते हैं।
वहीं स्वर्ग है इस धरती पे,
वहीं स्वर्ग से सुख मिलते हैं।

तुझको बस इतना ही कहना,
तू ही तो मेरे दिल का गहना।
जो इच्छा हो मुझे बताओ,
बहुरानी बेटी बन जाओ।

सासू मां की बात जान के,
उनके मन के राज जान के।
बहुरानी समझी घर अपना,
बोली उनको मां मान के।

अम्माजी ना मुझे जगाएँ,
बिस्तर से ना मुझे उठाएँ।
नींद घोर सुबहो आती है,
बिना बात के ना चिल्लाएँ।

मैं जब नैहर में रहती थी,
मम्मी से सब कह देती थी।
उठकर मम्मी चाय पिलाती,
पैर दर्द तब पैर दबाती।

बोली अम्मा चाय बनाओ,
सूत उठकर मुझे पिलाओ।
जब सर थोड़ा भारी लगता,
हौले हौले उसे दबाओ।

पैसा रखा बचा बचा के,
पापाजी से छुपा छुपा के।
बनवा दो मुझको तुम गहना,
अम्माजी इतना ही कहना।

अम्माजी थोड़ी सकपकाईं,
थोड़ी मुस्काईं, गला खँखाराईं।
बोली बेटी पंडित बोले,
बोले पर सब बात न ठोले।

बेटी तुम हो, ये भी माना,
पर घर कोई होटल न खाना।
थोड़ी बहू, थोड़ी बेटी,
और थोड़ा घर का कर्तव्य भी।

नैहर जैसा अधिकार मिलेगा,
पर थोड़ा श्रम का प्यार मिलेगा।
काम बाँट लो घर के संग तुम,
फिर हर दिन त्योहार मिलेगा।

बहू बोली — ठीक है अम्मा,
पहले दो काजू की अम्मा।
खीर बनाऊँगी, पर पहले मैं,
मोतीचूर लड्डू खाऊँगी अम्मा।

अम्माजी ने माथा पीटा,
लगता है भाग्य में लिखा जीता।
इतनी प्यारी बेटी पाई,
पर किस पुण्य से या किस पीड़ा?

तभी पधारे पापाजी हँसकर,
बोले — आज क्या चाल चली बहू ने घर भर?
अम्मा बोली — बेटी है ये,
बहू नहीं अब बेटी है ये।

पापाजी बोले — बेटी तो ठीक,
पर बेटी थोड़ी सी काम भी सीख।
नहीं तो बेटा दफ्तर से आएगा,
मैगी खाकर सो जाएगा।

बहू बोली — ठीक है बाबा,
आज से सीखूँ सबका नज़ारा।
बनाऊँगी खाना, माँजूँगी बर्तन,
पर पहले चाहिए एक कार अब्बल।

अम्मा–बाबा दोनों घबराए,
घर में बिजली बादल आए।
बोलीं — पंडित जी कल ही बुलाओ,
और ‘बहू अध्याय’ उल्टा हटाओ

Saturday, November 15, 2025

पलायन

पटना के सबसे चकाचक न्यूज़ चैनल “गरम बहस लाइव” पर आज स्टूडियो में कुर्सियों से ज्यादा माइक्रोफोन लगे थे। होस्ट अपनी मशहूर गरजती आवाज़ में चीखता हुआ बोला —

“आज का ज्वलंत सवाल! क्या बिहार में पलायन समस्या है या वरदान? पैनल से मिलिए!”

पहली स्क्रीन पर दुबई से जुड़ते हैं रंजीत कुमार, जो पिछले पाँच सालों से कॉल सेंटर में काम करता है, लेकिन अपने इंस्टाग्राम बायो में proudly लिखता है — Global Corporate Executive (Night Shift).

दूसरी स्क्रीन पर मेलबर्न से गुड्डू पासवान जुड़े हैं, जिनकी नौकरी पूछो तो जवाब मिलता — “By profession Plumber, by attitude Australian.”

तीसरी स्क्रीन पर पंजाब से मनोज सिंह, जो खुद कहते हैं —“मैं परदेश गया नहीं, पंजाब ही बिहार के पास आ गया था।”

और स्टूडियो में आमने-सामने बैठाए गए मेहमान —
कर्नाटक से रवि
गुजरात से प्रवीण
महाराष्ट्र से भावना
और UP से पंडित जी (जो हर राज्य विषय में अपनी राय रखने का constitutional अधिकार रखते हैं।)

बहस शुरू होते ही रवि बोले —“बिहार में लोग बाहर क्यों भाग जाते हैं? क्या वहां रह नहीं सकते?”

गुड्डू ने मेलबर्न से चश्मा सीधा किया —“रह सकते थे भाई, पर फिर मेलबर्न में भोजपुरी वाला ठाठ कौन लाता? हम नहीं आते तो ऑस्ट्रेलिया को IPL, भांगड़ा और बॉलीवुड का अंतर कैसे समझ आता?”

प्रवीण ने हल्का सा तंज कसा —“हम गुजरात में बिजनेस फैलाते हैं, तुम लोग बस पलायन फैलाते हो।”

तभी मनोज ने मेज पर हल्की चोट मारी —“प्रवीण भाई, वही पलायन किए बिहारी लोग हैं जो आपकी कंपनियाँ चला रहे हैं। हम नहीं जाएँगे तो गुजरात में इंजीनियर ढूँढने की टेंडर निकालनी पड़ेगी।”

पूरे स्टूडियो में हँसी दब गई, मगर बहस गरम होती गई।

भवना बोली —“लेकिन फैमिली से दूर रहना इमोशनली मुश्किल नहीं होता?”

रंजीत ने दुबई से जवाब दिया —“पहले हम पापा की बात घर में नहीं सुनते थे, आज रोज वीडियो कॉल पर पूछते हैं —‘पापा, दाल चावल खाया कि नहीं? ठंडा पानी मत पीजिएगा।’इमोशनल कनेक्शन और कहाँ मिलता है? पलायन न होता तो ये प्यार कभी activate नहीं होता।”

यही समय था जब UP वाले पंडित जी कूद पड़े —“लेकिन पलायन से बिहार का विकास रुक जाता है!”

गुड्डू ने तुरंत काउंटर फेंका —“अगर हम सब बिहार में ही रुक जाएँ तो —दिल्ली के पीजी में रहेगा कौन?गुड़गाँव में 3 बजे रात को ‘भैया U टर्न मारीए’ कौन बोलेगा?IAS टॉपरों की लिस्ट में नाम कौन भरेगा?और विदेशी को क्रिएटिव इंग्लिश एक्सेंट में ‘हे ब्रदर नो टेंशन’ सिखाएगा कौन?”

स्टूडियो तालियों और हँसी से गूँज गया।

होस्ट गला फाड़ते हुए बोला —“मतलब आप पलायन को वरदान मानते हैं?”

मनोज मुस्कुराए —“देखिए, बिहार में ना पलायन है, ना migration है… यह National Human Resource Distribution Policy है। हम लोग देश और दुनिया में भेजे गए skilled ambassadors हैं। दूसरों के बच्चे GPS पर जगह ढूँढते हैं, बिहारी बच्चे GPS को जगह सिखा देते हैं — ‘देख ले, घर पटना से दाहिने मुड़के ही शुरू होता है।’”

रंजीत दुबई वाली स्क्रीन से जोड़ा —“और जब हम वापस घर आते हैं ना — तो गाँव में एंट्री ही बॉलीवुड हीरो वाली होती है। माँ घोषणा करती है — बेटा दुबई वाला आ गया!छोटे बच्चों को प्रेरणा मिलती है, बुजुर्गों को उम्मीद मिलती है, और दुकानदारों को उधारी मिलती है।”

होस्ट ने अंतिम सवाल दागा —“तो आपका अंतिम बयान?”

गुड्डू ने मॉर्निंग सनग्लासेस पहनते हुए कहा —“आप बोलिए पलायन समस्या है… हम कहेंगे वरदान है। क्योंकि दुनिया में जहाँ जहाँ बिहारी पहुँचा — वहाँ वहाँ बिहार भी पहुँच गया।”

मनोज ने जोड़ दिया —“पलायन ने बिहार को ग्लोबल बनाया है, परिवार को इमोशनल बनाया है और इंडिया को वर्किंग बनाया है। हम जहाँ भी जाते हैं — ट्रैवल बैग भले बदल जाता है, दिल हमेशा गाँव वाला रहता है।”

और तभी अचानक भारत-ऑस्ट्रेलिया वीडियो कॉल पर गुड्डू की माँ आ गई —“बाबू, खाना खा लेना। और ठंडा पानी मत पीना।”

पूरी बहस खड़ी हँसी में बदल गई।

कैमरामैन ने होस्ट से धीमे में बोला —“सर, आज के TRP सेट है — दर्शक हँसते भी हैं और सीखते भी।”

स्क्रीन पर हेडलाइन चमकी —“बिहार में पलायन — संकट नहीं, सुपरपावर!”

और कहानी यहीं खत्म होती है…क्योंकि बहस ख़त्म होने के बाद NRI पैनल के सारे बिहारी —
व्हाट्सऐप फैमिली ग्रुप में फोटो भेजने चले गए:“स्टूडियो में थे… माँ टीवी पे देखना!”

Sunday, November 9, 2025

खेतवा में रोएली जनानवा


गरीब के कहानी लिखे में आँख से लोर बह जाला,

दूख के जिनगी देख के सांचो नु करेज फट जाला ।

आशावादी कहे भगवान बारे कि नईखन

गरीब के देख के इहे प्रश्न बन जाला ।।

 

खेतवा में रोएली जनानवा ए मएनवाकहाँ गईले ना ।

हमार आँखि के रतनवा कहाँ गईले ना ॥

 

पूछला पर मालूम भईलघर के गरीब हई,

मरद हरवाह हटे बड़ा बदनसीब हई ।

बारी जनमवले उ तीन गो लईकवा,

तरसेलेसन अन्नअ खातिर उ बालाकावा ॥

बाटे टूटल फूस के मकानवा ए मएनवादुख वे में ना

बीते जिनगी दिनवा दुखवे में ना ॥ 

हमार आँखि के रतनवा कहाँ गईले ना ॥

 

घरवा में पड़ल रहे मरद बेरमिया,

दउवा ना उधार करे डाक्टर हरमिया ।

मालिक से कर्जा लेक दवा-दारु कईली,

मरत संवागवा के प्राणवा बचवली।

पथअ खातिर रहे नाहीं अन्नवा ए मएनवा ।

बरसे झर-झर नएनवासावन अईसन ना ॥ 

हमार आँखि के रतनवा कहाँ गईले ना ॥

 

अनअ बिना घरवा में बनेना भोजनवा,

खाये खातिर बिलखत रलेसन ललनवा ।

ओकनी के आपन कलेजा से सटवली,

सुसुकत लईकवन के रोवत समझवली ।

होत भोरे करब कटनिया ए मएनवा

तोह के देहब हम भोजनवाकरेजवा सुनु ना ।। 

हमार आँखि के रतनवा कहाँ गईले ना ॥

 

खईला बिना छतिया में दूधवो ना आवे,

गोदी के बालकवा उ सूखले चबावे ।

फाटि जाइत छतिया त खूनवे पियवतीं,

बिलखत मएनवा के भूखवा मिटइतीं।।

इहे करे धनिया के मनवा ए मएनवापूरा होखे ना ।

कभी मनआ के सपनवापूरा होखे ना ।। 

हमार आँखि के रतनवा कहाँ गईले ना ॥

 

बगिया में कोईल जब कुहू कुहु करेला,

चिड़ई चुड़ूंगवन के चह-चह होखेला ।

बीस दिन के बालका के गोदिया उठवली,

काटे खातिर गेहुआँ के खेतवा में गईली ।

पेट खातिर सुख बा सपनवा ए मएनवादेहिआ में ना ।

नईखे एक बूद खूनवादेहिआ में ना ॥ 

हमार आँखि के रतनवा कहाँ गईले ना ॥

 

बुंदा- बूंदी होखे कभी बहेला पवनवा,

धनिया के दूख देखि रोवे आसमानवा ।

खेतवा के एक ओर लईको सुतवली,

फाटल गमछिया के देह पर ओढ़वली ।

काटे लगली गेहुआँ के थानवा ए मएनवाकामवे पर ना ।

रहे धनिया के धेयानवा कामवे पर ना ॥ 

हमार आँखि के रतनवा कहाँ गईले ना ॥

 

एहि बीचे जोर से बालकवा चिहुँकलस,

सोचली कि बाबू नींदवे में सपनईलस ।

काटे लगली गेहुँआ त गोदिया उठावे,

गईली लईकवा के दूधवा पियावे ।

करे लगली जोर से रोदनवा ए मएनवासियरा लेलस ना ।

हमारे बाबू के परानवासियरा लेलस ना। 

हमार आँखि के रतनवा कहाँ गईले ना ॥

 

रोअल सुनि गँउआ के लोग सब जुटल,

श्रीनाथ आशावादी छाती सभे पीटल ।

देणवा में बड़कन लोगवा के राज बा,

मिहनत करे वाला इहाँ मुँहताज वा ।

इहे ह आजाद हिन्दुस्तानवा ए मएनवागरीबवन के ना ।

नईले केह भगवानवा गरीबवन के ना । 

हमार आँखि के रतनवा कहाँ गईले ना ॥


Saturday, November 8, 2025

जइसे चंदा के संगे चंदनिया रे

 चले साजन के साथ दुलह्विनिया रे

चले साजन के साथे दुलहिनिया रे ।

जइसे चंदा के संगे चंदनिया रे ॥


 सुन्दर चेहरा इ कमल के बा फूलवा बनल,

आँख दीखे जइसे फूलबा पर भौरा बइ ठल ।

चमके चाँद अइसन सोना के नथुनिया रे। 

चले साजन के साथ दुलह्विनिया रे

चले साजन के साथे दुलहिनिया रे ।

जइसे चंदा के संगे चंदनिया रे ॥


दुनू सेव अइसन दौखेला लाल गालवा,

नाक सुगवा इ देखि के लुभाय जाला।

काला केश ज इसे काली नगीनिया रे । 

चले साजन के साथ दुलह्विनिया रे

चले साजन के साथे दुलहिनिया रे ।

जइसे चंदा के संगे चंदनिया रे ॥


गरदन हवे कपोत कंठ कोईलिया,

दाँत चमक ता जइसे ह बिजुरिया ।

गाल लजाईल जइसे अंजनिया रे,

कजरारी आँख में झलके जादू गरिया रे। 

महके रजनीगंधा से बथनिया  रे। 

चले साजन के साथ दुलह्विनिया रे

चले साजन के साथे दुलहिनिया रे ।

जइसे चंदा के संगे चंदनिया रे ॥


ओठ ललना जइसे रस से भरल,

बोली पियरी जइसे गागरिया छलकल।

साजन के नयनवा में परल जादू,

एगो निगाह में बान चलल सादू। 

सभी देख खुश घर मचनिया रे । 


दुनू सेव अइसन लाल लाल गालवा,

नाक सुगवा देखि सब भइल बेहालवा।

काला केसवा जैसे रात के घटरिया,

उहे सजा के चलली फूलन के बगरिया। 

इहे बा भैया भउजी प्रेम  कहानिया रे । 

चले साजन के साथ दुलह्विनिया रे

चले साजन के साथे दुलहिनिया रे ।

जइसे चंदा के संगे चंदनिया रे ॥

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