पटना शहर का पुराना मोहल्ला गुलाबबाग। यहाँ गलियों में चाय की भाप और गप्पों की गूँज मिलती है, और बच्चों की शरारतें हर कोने में फैली मिलती हैं। मोहल्ले के बीचोंबीच एक पुराना स्कूल है शिवाजी बाल विद्या मंदिर। सफ़ेद चूने की दीवारें, टूटी हुई खिड़कियाँ, और बरामदे में लगी घंटी जो हमेशा तय समय से तीन मिनट देर बजती थी।
इसी स्कूल की आठवीं कक्षा में पढ़ते थे तीन दोस्त राजू, छोटू और गुड्डी।
राजू यादव, एक सीधा-सादा लड़का था, लेकिन दिमाग में बटन दबाते ही जैसे जुगाड़ की मशीन चालू हो जाती थी। उसके पिताजी रेलवे में गार्ड थे, और राजू ने बचपन से ही सीखा था कि कब बोलना है और कब चुप रह जाना है।
छोटू मौर्य, नाम भले छोटू था, लेकिन बातों में बड़ा था। कुछ भी हो जाए, उसके मुँह से बिना चुटकी लिए बात निकलती ही नहीं थी। उसकी अम्मा सब्ज़ी मंडी में आलू-प्याज़ बेचती थीं, और छोटू वहाँ भी ग्राहकों से हँसी-मजाक में सामान बेचने का हुनर सीख चुका था।
तीसरी थी गुड्डी पाण्डेय मोहल्ले की सबसे नाटकीय लड़की। पढ़ाई में होशियार थी, पर थोड़ा बहुत ड्रामा करना उसे भी भाता था। उसकी मम्मी सरकारी स्कूल में शिक्षिका थीं और घर में हमेशा अनुशासन का माहौल रहता था। लेकिन स्कूल के बाहर गुड्डी का रंग ही और होता।
ये तीनों हर सुबह एक साथ स्कूल जाते, एक ही गोलगप्पे वाले से पैसे उधार पर गोलगप्पे खाते, और साथ में होमवर्क से भी पीछा छुड़ाते।
एक शुक्रवार की दोपहर थी। मिस इंदु शर्मा, आठवीं कक्षा की अंग्रेज़ी अध्यापिका, क्लास में तेज़ कदमों से आईं। उनके हाथ में हरी फ़ाइल और चेहरा थोड़ा सख़्त था, जिससे बच्चों को अहसास हो गया कि आज कुछ "गंभीर" बात होने वाली है।
मिस शर्मा पढ़ाई के मामले में सख़्त थीं, लेकिन दिल से बेहद सुलझी हुईं। वे चाहती थीं कि बच्चे किताबों से बाहर सोचें, अनुभव से लिखें और सच्चाई से जीना सीखें।
उन्होंने बोर्ड पर लिखा , "The Most Memorable Day of My Life" फिर पूरे वर्ग की ओर देखा।
"बच्चों," उन्होंने कहा, "इस बार कोई सवाल-जवाब नहीं। कोई रट्टा नहीं। मैं चाहती हूँ कि तुम सब एक पेज का निबंध लिखकर लाओ — अपने जीवन के सबसे यादगार दिन पर।"
कक्षा में कुछ चेहरे चमक उठे, लेकिन ज़्यादातर बच्चों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं।
"जिसने भी किसी से नकल की," मिस शर्मा बोलीं, "या इंटरनेट से कॉपी किया, उसे सीधे ज़ीरो मिलेगा।"
राजू, छोटू और गुड्डी तीनों की नज़रें आपस में मिलीं। और वहीं क्लास के कोने में एक बिना बोले योजना बन गई।
तीन
शाम को मोहल्ले की छतों पर जैसे ही अँधेरा छाया, तीनों दोस्त राजू के घर की छत पर इकठ्ठा हो गए। नीचे आँगन में उसकी दादी चूल्हे पर चाय पका रही थीं, और पास ही अगरबत्ती से मच्छर भागाए जा रहे थे।
राजू ने पहला सुझाव दिया, "देखो भाई, सबसे यादगार दिन तो वही था जब शंकर चाचा की बकरी 'चम्पा' कुएँ में गिर गई थी, और हम तीनों बचाने कूद गए थे।"
छोटू हँसा, "हाँ! और हम ही रस्सी से खींचे गए। गाँव वाले हँसी रोक नहीं पाए थे।"
गुड्डी बोली, "वो दिन तो सच में मज़ेदार था। सबकी रिपोर्ट अलग लग सकती है, लेकिन कहानी तो एक ही है।"
राजू बोला, "तो तय रहा। मैं पहले लिख देता हूँ। छोटू, तू भाषा बदल देना। गुड्डी, तू थोड़ा इमोशनल बना देना तेरे तो शब्द ही बड़े भारी होते हैं।"
तीनों ने एक ही किस्सा लिखा बस शब्दों और अंदाज़ में थोड़ी-थोड़ी मिलावट। लेकिन कहानी का मूल एक ही रहा चम्पा बकरी, कुआँ, बचाव और गाँव वालों की हँसी।
सोमवार की सुबह, तीनों ने आत्मविश्वास से भरे चेहरे और रंगीन पन्ने लिए स्कूल पहुँच गए। मिस शर्मा ने सबके निबंध चुपचाप जमा कर लिए, बिना कोई प्रतिक्रिया दिए।
मंगलवार बीत गया। बुधवार आ गया। लेकिन निबंध की कॉपियाँ अभी तक नहीं लौटी थीं।
बुधवार की आख़िरी घंटी के बाद, मिस शर्मा फिर से क्लास में आईं। उनका चेहरा शांत था, पर आवाज़ में थोड़ी कड़ाई।
"राजू यादव, छोटू मौर्य और गुड्डी पाण्डेय स्टाफ रूम के बाहर आइए।"
पूरी कक्षा में कानाफूसी शुरू हो गई।
स्टाफ रूम के बाहर मिस शर्मा ने तीनों को बारी-बारी से देखा, फिर एक पन्ना निकाला।
"राजू की कॉपी पढ़ी, फिर छोटू की, फिर गुड्डी की। शब्द अलग, लेकिन कहानी वही बकरी का नाम चम्पा, कुएँ में गिरना, रस्सी से निकलना... क्या तुम तीनों के जीवन में एक ही यादगार दिन था?"
छोटू थोड़ा मुस्कराया, "मैम, हाँ... चम्पा हमारी मोहल्ले की बकरी थी। और वो दिन वाकई हमारे लिए यादगार था।"
गुड्डी बोली, "हमने तो झूठ नहीं लिखा, मैम। बस एक ही घटना तीनों के जीवन में बड़ी थी।"
राजू ने सीधा जवाब दिया, "मैम, हम सिर्फ अंक पाने के लिए झूठा किस्सा नहीं बनाना चाहते थे।"
मिस शर्मा कुछ पल चुप रहीं, फिर हल्के से मुस्कुराईं।
"देखो बच्चों," उन्होंने कहा, "कभी-कभी एक ही सच्चाई को तीन लोग एक साथ कहते हैं, तो उसमें अलग रंग नहीं दिखता। सच्चाई भी अगर एक ही सुर में बोले तो वह संगीत नहीं बनती, शोर बन जाती है।"
तीनों कुछ समझे, कुछ नहीं।
"मैंने तुमसे रचना माँगी थी वही घटना, लेकिन तुम्हारे अपने अनुभवों में। अगर तीनों में वही रस्सी, वही कुआँ, वही चम्पा, और वही वाक्यांश होंगे तो शिक्षक को यह कैसे समझ आएगा कि किसका दृष्टिकोण क्या था?"
तीनों ने सिर झुका लिया।
फिर मिस शर्मा ने कहा, "मैं तुम तीनों को इस बार शून्य नहीं दे रही क्योंकि तुमने झूठ नहीं लिखा। लेकिन एक बात हमेशा याद रखना सच्चाई भी जब दोहराई जाती है, तो उसमें अपनी छाप जरूरी होती है।"
अगले दिन क्लास में उन्होंने नया विषय लिखा:"एक ऐसा दिन जो हुआ नहीं, लेकिन होना चाहिए था।"
पूरी कक्षा चौंक गई। और तीनों दोस्त भी।गुड्डी बोली, "अब क्या लिखें?"राजू ने कहा, "अब तो सबका सपना अलग ही होगा।"
छोटू बोला, "मैं तो लिखूँगा कि काश चम्पा उड़ना सीख जाती!"पूरी कक्षा हँसी से गूंज उठी।
अंत में तीनों दोस्त मुस्कराते हुए घर लौटे। इस बार कोई चाल नहीं थी। न मिल बैठकर निबंध लिखने की योजना, न एक ही बहाना।
अब वे जान चुके थे कि हर सच्चाई की भी अपनी आवाज़ होनी चाहिए।अनुभव साझा हो सकते हैं, लेकिन अभिव्यक्ति हमेशा अपनी होनी चाहिए।