Sunday, August 17, 2025

माना प्रहार ये भारी है

माना प्रहार ये भारी है, 
लड़ने की कोशिश जारी है, 
जब सिंह समक्ष कोई मृग पड़े, 
खूनी पंजों से रूह कंपे, 
किंतु मृग कोशिश करता है, 
निज संबल संचय करता है, 
तन में मन में साहस रच कर, 
प्रखर पराक्रम का स्वर भर, 
वो जोर लगा ऊँची छलांग, 
उस वक्त काल जो करता माँग, 
वैसा हीं जोर लगाता है, 
भगने का श्रम दिखलाता है, 
स्वीकार नहीं तेरा जो प्रण, 
कहता मृग सिंह को उस क्षण, 
ये तन मेरा जीवन मेरा, 
किंचित ना होगा सिंह तेरा, 
इतना आसान ना होगा रण, 
कि जोर लगाता है उस क्षण, 
शिकार नहीं कि तू हर ले, 
आ पहले तो मुझको धर ले, 
गरज रहा घनघोर गगन, 
फिर भी ध्वजा न उतारी है
वैसी अपनी तैयारी है
माना प्रहार ये भारी है, 
लड़ने की कोशिश जारी है। 

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