हे रुद्र, रौद्र रुप, जय रुद्र महाकाल।
भस्म-धारी नीलकण्ठ, शंकर त्रिनेत्र विशाल॥
आवाहन करूँ मैं भोले, हे पशुपति प्रलयानल।
पाप हरन भीषण रूपी, गजचर्म-धारी अचल॥
जटाओं में गंगा बहे, रौद्र स्वर से नभ गूँजे।
दानव-दल के संहारक, शिव शक्ति जग पूजे॥
गंगाधर गिरिजा-नायक, नटराज शिव शंभू।
डमरू-ध्वनि से गूँज रहा, आकाश, धरा, अम्बु॥
चन्द्र-शेखर, करुणाकर, जग-पालक दीनदयाल।
हे रुद्र, रौद्र रुप, जय रुद्र महाकाल।
भस्म-धारी नीलकण्ठ, शंकर त्रिनेत्र विशाल॥
पंचवक्त्र प्रकाशी तू, भास्कर-दीप्त ज्योति।
काल-दंष्ट्र विकराल प्रभु, संहारक द्योति॥
वृषवाहन भीमकाय, अग्निनयन ज्वालाधर।
युद्धघोष कराल रव, शरण मे तेरे शंकर॥
कैलाश पति गिरिराजेश्वर, वृषभ वाहन वीर।
भूत, प्रेत, गण संग, सर्व बंधन काटक धीर॥
सृष्टि के आदि तुम, कण-कण में सदाकाल॥
हे रुद्र, रौद्र रुप, जय रुद्र महाकाल।
भस्म-धारी नीलकण्ठ, शंकर त्रिनेत्र विशाल॥
खड्ग-त्रिशूल-धनुषधर, शशि-मुकुट विराजे।
संहर्ता इस जगत का तू, काल भी तुझसे काँपे॥
ना भूमि ना नभ ना जल, ना अग्नि ना ही पवन।
सबकुछ भस्म हो जाता है, रौद्र-वपु भगवन॥
वृषभ-वाहन, गज तन जनक रूप तुम्हारा।
जग के रक्षक भक्षक भी, संहारक अवतारा॥
डमरू की डम डम से काँपे, नभ धरा-पाताल।
हे रुद्र, रौद्र रुप, जय रुद्र महाकाल।
भस्म-धारी नीलकण्ठ, शंकर त्रिनेत्र विशाल॥
क्रोध-काम अहंकार मिटा, दर्प का नाश करे।
तेरी शरण से बढ़कर, जग में कुछ पास न रहे॥
काशीपति महाकालेश, दाह-सृष्टि के स्वामी।
जग जन्मे तुझसे ही, तेरे हीं पथ को सब गामी॥
सातों लोक तू हीं नापे, सर्प तेरे गर्दन को नाचे,
तेरी जय-जयकार गूँजे, देवों के भी मुख काँपे॥
जब जब भी अग्नि प्रज्ज्वलित कुपित हो भाल।
हे रुद्र, रौद्र रुप, जय रुद्र महाकाल।
भस्म-धारी नीलकण्ठ, शंकर त्रिनेत्र विशाल॥
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