अन्याय नहीं प्रतिकार बचा।
अब क्रांति रचे हर श्वासों में।
अब आग बहे इन हाथों में।
कितने पथ काटे काँटों ने।
और स्वप्न चुराए रातों ने।
आँसू ने लिखी व्यथा बात।
कब से मौन रहे दिनरात।
सदियों सदियों का है जकड़न ।
कितनी बेड़ियों का है अकड़न ।
कितने छल, कितने दंभ सहे।
कितने पल पातक काल रचे।
अब ज्वाला पहचान बने।
अब रणभेड़ी प्रतिमान रचे ।
मृत्यु का भी स्वागत हँस के ।
जंजीर लगाना तुम कस के।
मैं शोषित नहीं, तूफ़ान हूँ मैं।
मैं बंधुआ नहीं, ऐलान हूँ मैं।
मैं दास नहीं, हुँकारा हूँ।
हाँ अब जीवित अंगारा हूँ।
तुम लुटेरे, अत्याचारी हो।
तुम दमन के पोषक भारी हो।
पर याद रहे चुप नहीं रहूँगा।
अन्यायी अब नहीं डरूँगा।
यह रण मेरा हीं घोष बने।
यह रक्त मेरा संदेश बने।
यह क्रांति अमर बलिदान कहे।
यह जीवन है तूफ़ान कहे।
अग्नि प्रज्वलित होने दो।
वाणी है मुखरित होने को।
जब सत्य धरा पर आना है।
तब झूठ बिखर ही जाना है।
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