Friday, August 22, 2025

जुल्म ए बुनियाद


तू लाख सितम ढाह बना जुल्म ए बुनियाद ,
हम तोड़ कर ज़ंजीर हर हो जायेंगे आज़ाद।

हम ख़ौफ़ से जीने की विरासत नहीं लेकर,
आँधियों से टकराएँ, बन जाएँ हम फ़ौलाद।

तख़्तो-ताज काँपेंगे जब लफ़्ज़ उठेंगे सारे,
हर आवाज़ में होगा इंक़लाब का उन्माद।

ज़ुल्मत की हर इक रात सवेरे में बदलेगी,
राहें भी दिखाएँगी ख़ुद मंज़िलों का इरशाद।

सच बोलने वालों को दहकती है सूली पर,
लेकिन वही करते हैं तहरीक की बुनियाद।

हम खून से सींचेंगे उम्मीद के हर पौधे,
और राख से जन्मेगा इक नया इब्तिदाद।

नफ़रत की हवाओं को मोहब्बत से हराएँगे,
हर जख़्म को बदलेंगे हम सब्र की फरियाद।

इतिहास की दीवारें गवाही भी देंगी तब,
क़ुरबानियों से लिखी जाएगी नई इबारत।

तू लाख सितम ढाह बना जुल्म ए बुनियाद ,
हम तोड़ कर ज़ंजीर हर हो जायेंगे आज़ाद।

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