Friday, February 14, 2025

कर्ज अभी आज तक

 आजादी से पहले, आजादी से आज तक,

बदलते रहे ईलाज, पर मर्ज वही आज तक।
ये मुल्क है जनाब, थे एक नहीं कल भी ,
हाँ अब भी बिखरे हुए, कि दर्द वही आजतक।
बात यूँ हीं ना थी कि बस , लकीर खींच गई ,
सीने में जो चुभन थी , कि जर्द वही आजतक।
कभी जात कभी धर्म कि, बनती रहीं दीवारें,
मिल न सका मुल्क का , हमदर्द अभी आजतक।
टुकड़े हुए थे देश के,जिस शक ओ शुबहा पर,
जमा हुआ है रूह में , वो गर्द अभी आज तक।
जिन्हें देना था दर्द दे , मुल्क से रुखसत हुए ,
अफ़सोस ढ़ो रहे हैं हम , सरदर्द वही आजतक।
बात यूँ है अमन की , मिट गया जो भी चला ,
रह गया है बाकी वो, कर्ज अभी आज तक।

No comments:

Post a Comment

My Blog List

Followers

Total Pageviews