Monday, July 11, 2022

गुमान



खुद की धड़कन से अनजान, 
फिर किस बात का गुमान?

इतिहास गवाह है , पत्थर की कंदराओं में रहने वाला आदिम पुरुष ने अतुलनीय उपलब्धि हासिल की है। समय के साथ साथ न केवल उसने स्वयं को बदलते हुए मौसम के अनुसार ढाला अपितु समय की मांग के अनुसार पेड़ों पर जो उसने अपना बसेरा बनाया था , उसका त्याग कर जमीन पर उतर आया।

एक चौपाए से दो पैरों पर खड़े होने की दास्तान , मुठ्ठी में लकड़ी पकड़ सकने की शक्ति का विकास , पहिए की खोज और अग्नि का नियंत्रित उपयोग इसके महत्वपूर्ण खोजों में से एक है।

पत्थरों के टुकड़ों पे जीने वाला, कच्चा मांस खाने वाला आदि पुरुष, जल से डरने वाला आदि पुरुष , चांद, सूरज, आंधी , तूफान से डरने वाला आदमी समय बीतने के साथ  समंदर की गहराइयों में उतर गया।

कभी चांद की पूजा करने वाला मानव चांद पर चढ़ गया, आसमान के बादलों की गड़गड़ाहट से डरने वाला आदमी अब बादलों को चीरकर प्रतिदिन हीं यात्रा कर रहा है। कितना अद्भुत विकास रहा है आदिम पुरुष का।

पहले हर समस्या को भगवान के आश्रय डालने वाला आदमी आज खुद ईश्वर के अनुसंधान में जुटा पड़ा है।पूरी सृष्टि के जन्म की गुत्थी को सुलझाने में व्यस्त है आज आदमी।

कितनी भारी विडंबना है। चांद, तारों, ग्रहों की खोज करने वाला आदमी आज खुद से अनजान है। हंसी के पीछे छुपाए हुए दर्द को , प्रशंसा के पीछे छुपी हुई वैमनस्य की भावना को समझने में आज भी नाकाम है आदमी। 

आकाश में उड़ान भरने वाले आदमी के हौसले कब और क्यों जमीन पर अचानक गिर पड़ते हैं, गगनचुंबी इमारतों में रहनेवाले आदमी के लिए क्यों महल भी कम पड़ते हैं?

इस विकास पर कैसा घमंड? पलक छपकते हीं इस दुनिया के दूसरे कोने पर बैठे आदमी से बात करने में सक्षम आदमी क्यों एक हीं कमरे में बैठे साथी के बीच दिलों के दूरियों को पाट नहीं पाता?

गणित की अनगिनत गुत्थियों को सुलझाने वाले आदमी के पास अभी भी क्यों इस बात का जवाब नहीं है कि एक हीं व्यक्ति किसी के लिए अति प्रेम का वस्तु होता है तो दूसरे के लिए वोही घृणा का पात्र कैसे बन जाता है?

इस विकास पर किस तरह का अभिमान, कि आदमी को आज भी इस बात का ज्ञान नहीं कि आदमी स्वयं में क्या है? क्या ये विडंबना नहीं है कि पूरी दुनिया को जानने की कोशिश करने वाला आदमी आज भी खुद से अनजान है।

खुद की सांसों की नाप लेने में असक्षम आदमी दुनिया की माप लेने में व्यस्त है और इस बात का अभिमान भी है। कितनी आश्चर्य की बात है?

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित 

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