Monday, January 31, 2022

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-29

 

महाकाल क्रुद्ध होने पर कामदेव को भस्म करने में एक क्षण भी नहीं लगाते तो वहीं पर तुष्ट होने पर भस्मासुर को ऐसा वर प्रदान कर देते हैं जिस कारण उनको अपनी जान बचाने के लिए भागना भी पड़ा। ऐसे महादेव के समक्ष अश्वत्थामा सोच विचार में तल्लीन था। 

 

कभी बद्ध  प्रारब्द्ध काम  ने जो  शिव पे  आघात किया,

भस्म हुआ क्षण में जलकर क्रोध  क्षोभ हीं प्राप्त किया।

अन्य गुण भी ज्ञात  हुए  शिव  हैं भोले  अभिज्ञान हुआ,

आशुतोष भी क्यों कहलाते हैं  इसका  प्रतिज्ञान हुआ।

 

भान  हुआ  था  शिव  शंकर हैं आदि  ज्ञान  के  विज्ञाता,

वेदादि गुढ़ गहन ध्यान और अगम शास्त्र के व्याख्याता।

एक  मुख से  बहती  जिनके   वेदों की अविकल  धारा,

नाथों के  है  नाथ  तंत्र  और मंत्र  आदि अधिपति सारा।

 

सुर  दानव में भेद  नहीं  है या कोई  पशु  या नर  नारी,

भस्मासुर की कथा ज्ञात वर उनकी कैसी बनी लाचारी।

उनसे  हीं आशीष  प्राप्त कर कैसा वो व्यवहार किया?

पशुपतिनाथ को उनके हीं  वर  से  कैसे प्रहार  किया?

 

कथ्य सत्य ये कटु तथ्य था अतिशीघ्र  तुष्ट हो जाते है 

जन्मों का जो फल होता शिव से क्षण में मिल जाते है।

पर  उस रात्रि  एक पहर  क्या पल भी हमपे भारी था,

कालिरात्रि थी तिमिर घनेरा  काल नहीं हितकारी था।

 

विदित हुआ जब महाकाल से अड़कर ना कुछ पाएंगे,

अशुतोष  हैं   महादेव   उनपे  अब   शीश    नवाएँगे।

बिना वर को प्राप्त किये अपना अभियान ना पूरा था,

यही सोच कर कर्म रचाना था अभिध्यान अधुरा  था।

अजय अमिताभ सुमन:सर्वाधिकार सुरक्षित


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