Thursday, December 25, 2025

एक और एक दो क्यों, तीन क्यों नहीं

एक छोटे से शहर में एक बहुत ही चालाक लड़का रहता था, नाम था चीकू। चीकू को हमेशा लगता था कि वह दुनिया की हर चीज को अपने तर्क से बदल सकता है।
एक दिन स्कूल में मैथ्स की परीक्षा थी। सवाल था: एक और एक कितने होते हैं? 
पूरी क्लास ने लिखा: दो
लेकिन चीकू ने बड़े गर्व से लिखा: तीन 
पेपर जमा करने के बाद टीचर ने उसे बुलाया और पूछा, “चीकू, एक और एक दो क्यों नहीं, तीन क्यों लिखा है?”
चीकू ने मुस्कान बिखेरी और बोला, “मैडम, मैं आपको हकीकत बताता हूँ।”
फिर उसने अपनी कहानी शुरू की:
“मान लीजिए मैं अकेला हूँ। एक।
अब मेरे सामने एक बहुत सुंदर लड़की आती है। वो भी एक।
अब हम दोनों बातें करने लगते हैं, हँसते हैं, घूमते हैं।
फिर नौ महीने बाद… मैडम, एक और एक मिलकर तीन हो जाते हैं!”
पूरी क्लास ठहाके मारकर हँस पड़ी। टीचर का चेहरा पहले लाल हुआ, फिर वो भी हँसने लगीं।
“चीकू, तर्क तो बहुत मजेदार है, लेकिन गणित में हम सिर्फ़ संख्याएँ जोड़ते हैं, बच्चों को नहीं!”
चीकू ने सर झुकाकर कहा, “मैडम, गणित में तो दो ही होते हैं, लेकिन ज़िंदगी में… अक्सर तीन हो जाते हैं। बस टाइमिंग का खेल है!”
उस दिन चीकू को जीरो मार्क्स मिले, लेकिन पूरी स्कूल में उसकी वो “तार्किक व्याख्या” महीनों तक चर्चा का विषय बनी रही।
और तब से लोग मजाक में पूछते हैं—
एक और एक दो क्यों, तीन क्यों नहीं?

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