एक दिन रोज़ की तरह मैं ऑफिस से घर गया तो मेरा बेटा अनिकेत कुछ नाराज़-सा बैठा हुआ था।
मैंने उससे पूछा :
पिता : बेटा, क्यों नाराज़ हो?
पुत्र : पापा, आज स्कूल में मुझे डाँट पड़ी। मैडम ने मेरे नाम का मतलब मुझसे पूछा तो मैं बता नहीं पाया। पापा, आपने मुझे मेरे नाम का मतलब क्यों नहीं बताया?
पिता : बेटा, तुमने मुझसे पूछा नहीं। तुम्हारे नाम अनिकेत का मतलब होता है — जो किसी एक जगह या इच्छा से बँधा न हो।
पुत्र : इच्छा मतलब?
पिता : इसका मतलब जो तुम्हें अच्छा लगता है। जैसे कि तुम मिठाई चाहते हो।
पुत्र : लेकिन मैं तो स्पाइडर-मैन भी चाहता हूँ, डोरेमॉन भी चाहता हूँ। तो फिर आपने मेरा नाम अनिकेत क्यों रखा?
पिता : ताकि बड़े होकर तुम अपनी चाहतों से ऊपर उठ सको।
पुत्र : तो क्या चाहतों से ऊपर उठना अच्छी बात है?
पिता : हाँ।
पुत्र : तो फिर आपने अपना नाम अनिकेत क्यों नहीं रखा?
पिता : क्योंकि मेरा नाम रोहन प्रकाश तुम्हारे दादाजी ने रखा था।
पुत्र : आपने अपना नाम खुद क्यों नहीं रखा?
पिता : बेटा, आदमी अपना नाम खुद नहीं रखता, माँ-बाप ही रखते हैं।
पुत्र : लेकिन दादाजी का नाम तो हरिनाथ वर्मा था, फिर लोग उन्हें आशादीप जी क्यों कहते हैं?
पिता : क्योंकि तुम्हारे दादाजी कभी निराश नहीं होते थे।
पुत्र : तो लोग उन्हें हरिनाथ वर्मा भी तो कह सकते थे?
पिता : हाँ, लेकिन दादाजी नहीं चाहते थे कि लोग उन्हें उपनाम से पहचानें।
पुत्र : क्यों? उपनाम में बुरी बात क्या है?
पिता : बेटा, तुम्हारे दादाजी सामाजिक भेदभाव के खिलाफ थे, इसलिए।
पुत्र : अच्छा, इसीलिए आपने मेरा नाम सिर्फ अनिकेत रखा, अनिकेत वर्मा नहीं।
पिता : हाँ बेटा।
पुत्र : तो क्या किसी समाज से जुड़ना गलत बात है?
पिता : बेटा, ये सवाल तुम दादाजी से पूछ लेना।
पुत्र : नहीं पापा, मैं समझ गया। इसीलिए चाचाजी का नाम निखिल भारद्वाज है, क्योंकि वो अलग पहचान रखना चाहते हैं।
पिता : नहीं बेटा, भारद्वाज एक पारिवारिक परंपरा से जुड़ा नाम है।
पुत्र : तो क्या सब लोग भारद्वाज होते हैं?
पिता : नहीं अनिकेत, अब तुम चुप हो जाओ और पढ़ाई करो।
पुत्र : आप गंदे पापा हैं। आप मुझे समझाइए — ये परंपरा क्या होती है?
पिता : बेटा, तुम अभी नहीं समझ पाओगे।
पुत्र : पापा, आप मुझे कुछ नहीं बताते। मैं फिर स्कूल में डाँट खाऊँगा। मोहन चतुर्वेदी को कम डाँट पड़ती है क्योंकि उसके पापा उसे सब कुछ बताते हैं।
पिता : अच्छा पूछो, और क्या पूछना है?
पुत्र : पापा, चतुर्वेदी का मतलब क्या होता है?
पिता : बेटा, इसका मतलब होता है — बहुत ज्ञान रखने वाला।
पुत्र : ज्ञान क्या चीज़ है?
मैं बेटे के इतने सवालों से झुँझला उठा था, फिर भी अच्छा पापा बनने के चक्कर में जवाब देता जा रहा था।
पिता : बेटा, ज्ञान मतलब बहुत अच्छी किताबें।
पुत्र : तो क्या मेरी ए-बी-सी-डी वाली किताब जैसी?
पिता : नहीं बेटा, उससे बहुत बड़ी।
पुत्र : तो क्या मोहन चतुर्वेदी ने बहुत बड़ी किताबें पढ़ रखी हैं?
पिता : नहीं बेटा, ये नाम लोग इसलिए रखते हैं ताकि बच्चे पढ़े-लिखे बनें।
पुत्र : तो क्या अच्छे कामों के लिए लोग अच्छे-अच्छे नाम रखते हैं?
पिता : हाँ बेटा, बिल्कुल सही समझे।
पुत्र : हाँ पापा, पर मेरा दोस्त सौरभ मिश्रा मुझसे पूछ रहा था कि मिश्रा का मतलब क्या होता है। पापा, आप बताइए ना।
मैं झुँझला गया और बेटे को डाँट दिया —
बोला, ये बात बाद में बताऊँगा।
सच तो ये है पाठकों, मुझे भी नहीं पता कि मिश्रा का असली मतलब क्या है।
इसीलिए ये कहानी लिख रहा हूँ।
अब आप समझदार लोग ही मेरी मदद करें और मेरे बेटे को बताएं कि —
मिश्रा का मतलब क्या होता है?
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