रामायण की कथा में, जब भगवान राम की सेना वानरों के साथ दक्षिण समुद्र के तट पर पहुंची, तब उन्हें लंका जाने के लिए विशाल समुद्र को पार करने की चुनौती का सामना करना पड़ा। सीता जी को रावण द्वारा अपहरण कर लंका ले जाया गया था, और अब राम की सेना को उनकी खोज में लंका पहुंचना था। लेकिन समुद्र इतना विशाल था कि कोई भी वानर उसे पार करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। सभी वानर और भालू अपनी-अपनी शक्तियों का बखान कर रहे थे, लेकिन कोई भी पूरे समुद्र को लांघने में सक्षम नहीं लग रहा था।
उस समय, वानर सेना में जामवंत जी थे, जो एक प्राचीन और बुद्धिमान भालू राजा थे। वे भगवान राम के पिता दशरथ के समय से ही जीवित थे और उन्हें देवताओं की कई कथाएं मालूम थीं। जामवंत जी ने देखा कि हनुमान जी चुपचाप बैठे हुए हैं, मानो वे अपनी शक्ति को भूल चुके हों। हनुमान जी बचपन में बहुत शरारती और शक्तिशाली थे, लेकिन एक श्राप के कारण उन्होंने अपनी शक्तियां भूल ली थीं। जामवंत जी को यह सब मालूम था, इसलिए उन्होंने हनुमान जी को प्रोत्साहित करने का फैसला किया।
जामवंत जी ने हनुमान जी से कहा, "हे पवनपुत्र! तुम्हें अपनी जन्म कथा याद है? तुम देवराज इंद्र के वरदान से अविनाशी हो, ब्रह्मा जी ने तुम्हें अजर-अमर बनाया है। तुम्हारे पिता पवन देव हैं, जो हवा की गति से तेज हैं। बचपन में तुमने सूर्य को फल समझकर निगलने की कोशिश की थी, और देवताओं ने तुम्हारी शक्ति देखकर डर गए थे। लेकिन जब तुमने इंद्र के वज्र से चोट खाई, तो पवन देव ने क्रोधित होकर सारी हवा रोक दी थी। तब देवताओं ने तुम्हें कई वरदान दिए – अग्नि तुम्हें जला नहीं सकती, जल तुम्हें डुबो नहीं सकता, और तुम्हारी गति असीम है।"
जामवंत जी ने आगे कहा, "हे वीर! तुम्हारे गुरु सूर्य देव ने तुम्हें सभी शास्त्र सिखाए हैं। तुम राम भक्त हो, और राम का कार्य करने के लिए तुम्हारी शक्तियां स्वतः जागृत हो जाएंगी। यह श्राप था कि तुम अपनी शक्ति तब तक भूलोगे जब तक कोई तुम्हें याद न दिलाए। अब मैं तुम्हें याद दिला रहा हूं – तुम समुद्र को लांघ सकते हो, पर्वतों को उखाड़ सकते हो, और राक्षसों को पराजित कर सकते हो। उठो, हनुमान! राम का कार्य करो और सीता जी की खोज में लंका जाओ!"
जामवंत जी की ये बातें सुनकर हनुमान जी की आंखें खुल गईं। वे अपनी भूली हुई शक्तियों को याद करने लगे। बचपन की सारी घटनाएं उनकी आंखों के सामने घूम गईं – कैसे वे आकाश में उड़कर सूर्य तक पहुंचे थे, कैसे देवताओं ने उन्हें वरदान दिए थे। हनुमान जी का शरीर विशाल होने लगा, उनकी आंखें लाल हो गईं, और वे जोर से गरज उठे। उन्होंने कहा, "अब मुझे सब याद आ गया। मैं राम का दूत हूं, और मैं लंका जाकर सीता जी का पता लगाऊंगा!" सभी वानरों ने जयकारे लगाए, और हनुमान जी ने समुद्र पार करने की तैयारी की।
हनुमान जी ने महेंद्र पर्वत पर चढ़कर अपनी पूंछ को लपेटा और एक विशाल छलांग लगाई। वे आकाश में उड़ चले, मानो पवन देव स्वयं उन्हें सहारा दे रहे हों। समुद्र पार करने के दौरान कई चुनौतियां आईं। सबसे पहले, मैनाक पर्वत ने उन्हें विश्राम करने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन हनुमान जी ने मना कर दिया क्योंकि वे राम के कार्य में विलंब नहीं करना चाहते थे। फिर, सुरसा नाम की एक नागमाता ने उनका रास्ता रोका। सुरसा देवताओं की आज्ञा से आई थीं, जो हनुमान जी की परीक्षा लेना चाहते थे। सुरसा ने कहा, "तुम्हें मेरे मुंह से होकर जाना होगा!"
हनुमान जी ने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया। वे पहले अपने शरीर को विशाल बनाए, लेकिन सुरसा ने अपना मुंह और बड़ा कर लिया। फिर हनुमान जी ने खुद को बहुत छोटा कर लिया – मच्छर के आकार का – और सुरसा के मुंह में घुसकर तुरंत बाहर निकल आए। सुरसा प्रसन्न हुईं और बोलीं, "तुम्हारी बुद्धि और शक्ति दोनों अद्भुत हैं। जाओ, तुम्हारा कार्य सिद्ध होगा!" इस तरह हनुमान जी ने सुरसा का सामना किया और आगे बढ़े।
समुद्र पार करने के दौरान हनुमान जी की छाया पर एक राक्षसी सिंहिका ने हमला किया, लेकिन हनुमान जी ने उसे मार गिराया। आखिरकार, वे लंका के तट पर पहुंचे। लंका सोने की नगरी थी, चारों ओर ऊंची दीवारें और राक्षस पहरेदार थे। हनुमान जी ने खुद को छोटा कर लिया और लंका में प्रवेश किया। उन्होंने पूरी नगरी की खोज की – रावण के महल, उसके कक्ष, लेकिन सीता जी कहीं नहीं मिलीं।
फिर वे अशोक वाटिका पहुंचे, जो एक सुंदर उद्यान था, जहां फूलों और वृक्षों की छांव में सीता जी कैद थीं। सीता जी उदास बैठी हुई थीं, रावण की राक्षसियां उन्हें घेरे हुए थीं। हनुमान जी एक वृक्ष पर छिपकर बैठ गए और सीता जी को देखते रहे। उन्होंने राम की अंगूठी को नीचे गिराकर सीता जी का ध्यान आकर्षित किया। सीता जी डर गईं, लेकिन हनुमान जी ने खुद को प्रकट किया और कहा, "मैं राम का दूत हूं, हनुमान। राम आपको लेने आएंगे। यह उनकी अंगूठी है प्रमाण के रूप में।"
सीता जी ने हनुमान जी को पहचाना और प्रसन्न हुईं। उन्होंने अपना चूड़ामणि हनुमान जी को दिया, जो राम तक पहुंचाने के लिए था। हनुमान जी ने सीता जी को आश्वासन दिया कि राम जल्दी ही लंका पर चढ़ाई करेंगे और रावण का वध करेंगे। फिर हनुमान जी ने अशोक वाटिका में उत्पात मचाया, कई राक्षसों को मारा, और अंत में रावण के पुत्र अक्षयकुमार को भी पराजित किया। लेकिन वे स्वयं को बंधन में डलवाया ताकि रावण के दरबार में पहुंच सकें और उसकी शक्ति का आकलन कर सकें।
इस तरह, जामवंत जी के प्रोत्साहन से हनुमान जी ने अपनी शक्तियां याद कीं, समुद्र पार किया, सुरसा का सामना किया, लंका पहुंचे और अशोक वाटिका में सीता जी से मिलकर राम के कार्य को आगे बढ़ाया। यह कथा हनुमान जी की भक्ति, शक्ति और बुद्धि का प्रतीक है, जो आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है।
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