Wednesday, December 24, 2025

भगवान कौन?

एक दिन चौराहे पर अजीब नज़ारा था। गेरुए कपड़े, माथे पर चंदन, गले में रुद्राक्ष—और भीतर से पूरी तरह गधा।
हाँ, असली गधा। पूँछ छुपी हुई, पर अक़्ल बाहर निकली हुई।
वह साधु के वेश में खड़ा होकर जनता को उपदेश दे रहा था—

“सुनो भाइयों और बहनों,”“कोरोना के समय मंदिर बंद, मस्जिद बंद, चर्च बंद, गुरुद्वारा बंद।तो बताओ— क्या भगवान को भी कोरोना हो गया था?”

गधा-साधु बोला—“भगवान तो कहते हो सर्वव्यापी हैं,
फिर दरवाज़ों के भीतर कैसे क़ैद हो गए?अगर ईश्वर कण-कण में हैं,तो ताले किसके लिए लगे थे—भगवान के लिए या तुम्हारी समझ के लिए?”

“मैं गधा हूँ, पर इतना जानता हूँ कि डर बीमारी से नहीं था,
डर था सवालों से। डर था कि कहीं इंसान अपने भीतर झाँक न ले।”

फिर उसने ज़रा रुककर कहा— “इंसान ने भगवान को भी क्वारंटीन कर दिया, क्योंकि इंसान खुद संक्रमित था—
डर से, अज्ञान से और अहंकार से।”

गधा-साधु मुस्कराया— “यही तो समस्या है मित्रों,
मैं गधा होकर सच बोल रहा हूँ, और तुम इंसान होकर
अब भी पहचानने में लगे हो कि बोलने वाला कौन है,। मैं पूछ रहा हूँ तुम सबसे, आखिर भगवान कौन? 

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