जलियाँवाला बाग़ कांड के कुछ ही सप्ताह बाद की एक कल्पित संध्या थी।
अमृतसर के बाहर एक पुराने आश्रम में दीपक की मद्धम लौ जल रही थी। बाहर सन्नाटा था, भीतर इतिहास साँस ले रहा था।
भगत सिंह तेज़ क़दमों से आए। आँखों में आग थी, पर आवाज़ में संयम।
सामने चटाई पर बैठे थे मोहनदास करमचंद गांधी—शांत, निर्विकार, जैसे भीतर कोई महासागर ठहरा हो।
भगत सिंह:
बापू, अमृतसर की मिट्टी आज भी गरम है। वहाँ सिर्फ़ लोग नहीं मरे, वहाँ भरोसा मरा है। क्या अहिंसा उन गोलियों को रोक सकती थी?
गांधी:
भगत, गोलियाँ शरीर को मारती हैं, पर हिंसा आत्मा को। मैं उन लाशों को भूल नहीं सकता, पर यदि हम भी वही बन गए जो जनरल डायर था, तो फ़र्क़ क्या रहेगा?
भगत सिंह (कठोर स्वर में):
फ़र्क़ रहेगा, बापू। वह सत्ता के लिए मारा, हम आज़ादी के लिए मारेंगे। उसने डर पैदा किया, हम डर तोड़ेंगे।
गांधी (धीरे मुस्कुराते हुए):
डर टूटता है साहस से, और साहस केवल बंदूक से नहीं आता। क्या तुमने उन माताओं की आँखें देखी हैं, जो अपने बेटों को खो चुकी हैं? वे और लाशें नहीं चाहतीं।
भगत सिंह:
और मैंने उन युवाओं की आँखें देखी हैं, बापू, जिनके भीतर अब सवाल नहीं, ज्वालामुखी है। वे पूछते हैं—कब तक याचना? कब तक प्रार्थना?
गांधी:
प्रार्थना कमज़ोरी नहीं, अनुशासन है। अहिंसा कायरों का हथियार नहीं, वीरों की परीक्षा है।
भगत सिंह (एक पल चुप रहकर):
अगर अहिंसा इतनी ही शक्तिशाली है, तो जलियाँवाला बाग़ क्यों हुआ?
गांधी (आँखें नम):
क्योंकि साम्राज्य भय से चलता है, और भय बहरे होते हैं। पर इतिहास का कान अंततः नैतिकता सुनता है।
भगत सिंह:
इतिहास तब सुनता है जब उसे झकझोरा जाए। बापू, मेरा रास्ता खून से सना हो सकता है, पर उसका अंत भी आज़ादी ही है।
गांधी:
और मेरा रास्ता काँटों से भरा है, पर उसका अंत भी वही है। सवाल रास्ते का नहीं, कीमत का है। तुम अपनी जान दोगे—मैं हज़ारों की जान बचाना चाहता हूँ।
भगत सिंह (नरम पड़ते हुए):
अगर मेरा बलिदान उन हज़ारों को जगाए?
गांधी:
तो वह बलिदान कहलाएगा, प्रतिशोध नहीं। पर याद रखो—क्रांति केवल शासन बदलने का नाम नहीं, मन बदलने का भी है।
भगत सिंह (गहरी साँस लेते हुए):
शायद हम दोनों एक ही पर्वत की दो ढलानों से चढ़ रहे हैं।
गांधी (मुस्कुरा कर):
और शिखर पर तिरंगा फहरेगा, चाहे कदम किसी भी दिशा से आए हों।
दीपक की लौ काँपी। बाहर कहीं मंदिर की घंटी बजी।
दो पीढ़ियाँ, दो रास्ते—पर सपना एक।
जय भारत।
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