Monday, October 13, 2025

राष्ट्रपत्नी

 मतला:

हर "पुरुष" को देव बना दो, हर "नारी" को चुप क्यों नहीं,
अब ये भी बताओ भाई, “महा महिला” शब्द रूप क्यों नहीं?

शेर १:
“राष्ट्रपति” बोले जाते हैं, “राष्ट्रपत्नी” शर्माती है,
भाषा भी मर्दाना निकली, इसकी कोई रूकावट क्यों नहीं?

शेर २:
“भारत माता” जयकारों में, लहराए हर झंडा,
पर “भारत पिता” बोले तो, सब हँसे—इजाज़त क्यों नहीं?

शेर ३:
गाय तो “माँ” कहलाती है, पूजा में थाली सजती है,
साँड़ बेचारा घूमें गली—उसे “पिता” की इज़्ज़त क्यों नहीं?

शेर ४:
“वन्दे मातरम्” सिखाया है, हर बच्चे को स्कूलों में,
“वन्दे पितरम्” कह दो ज़रा, तो बोनस या छुट क्यों नहीं?

शेर ५:
“हापुरुष” से ही दुनिया चलती, ये तर्क सभी दोहराते हैं,
पर “महा महिला” सुनते ही, सबको हिचकिचाहट क्यों नहीं?

शेर ६:
शब्दों की ये तानाशाही, मर्दों के हक़ में झुकती है,
ज़ुबान भी बन गई “पितृसत्ता”, कोई और हुक़ूमत क्यों नहीं?

मक़्ता:
अजय कहे अब ये सोचो ज़रा, भाषा भी है राजनीति,
लिंग बराबरी आए कैसे, जब शब्दों में “बराबरी” ही नहीं!

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