गाँव से गुज़रती पगडंडी, कच्ची राह दिखाए,
दुब बीच दूध-सी दिखती, सच्ची राह दिखाए।
दुब खड़े दोनों किनारे, जैसे हों हरित दीवार,
कुश-अलुआ, कास, मूंज संग, सजता है संसार।
साइकिल की लीकें खींचें, बचपन की पहचान,
बकरियों संग हँसते बच्चे, रचते मधुर विहान।
पंछी के सुर, हवा की सरगम, मन को खूब झूमाए।
दुब बीच दूध-सी दिखती, सच्ची राह दिखाए।
सरसों की पीली कलियाँ, खेतों में लहराती हैं,
आम के मंजर महके हैं, कोयल कूक सुनाती है।
झरनों जैसी सरगम बहती, ताल-तलैया पास,
कली कमल की पोखर पे, लाल चुनरिया खास।
जैसे कि वो सजा-सजाकर, मंद-मंद मुस्काए।
दुब बीच दूध-सी दिखती, सच्ची राह दिखाए।
मंगरू काका निर्गुण गाएँ, पीपल की छैयाँ में,
गाय-भैंस संग गूँज उठे, बंसी की लहरैयाँ में।
धूप सुनहरी पत्ते खेले, हवा करे अंगड़ाई,
टिटहरी की मिठी बोली, महुआ गूँज समाई।
खेतों में अरहर की छिमी, झूम-झूम के गाए,
दुब बीच दूध-सी दिखती, सच्ची राह दिखाए।
बच्चों के कंचे, गिल्ली-डंडे, बूढ़ों की चौपाल,
गैया सारी खेत लपकती, जब अंबर हो लाल।
काका लेटे गमछा लेकर, सर पर चप्पल आसन,
पीपल नीचे टांग बिछाकर, राजा-सा करते शासन।
फिकर नहीं आगे-पीछे का, बस फलिया हीं भाए,
दुब बीच दूध-सी दिखती, सच्ची राह दिखाए।
बरगद तले झूला झूले , मोती गाए सुर ताल,
सावन की बूँदें बरसें, भींगे हर एक डाल।
जुगनू सारे देर रात के दीपक से बन जाते है,
इंद्रधनुष अंबर मे आकर सातों रंग दिखाते हैं।
ताल किनारे मंद पवन संग, बादल गीत सुनाएँ।
दुब बीच दूध-सी दिखती, सच्ची राह दिखाए।
गाँव से गुज़रती पगडंडी, कच्ची राह दिखाए,
दुब बीच दूध-सी दिखती, सच्ची राह दिखाए।
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