स्वप्न का रहस्य
एक ठंडी, सुनसान रात थी। लैब की दीवारें चुप थीं, केवल मशीनों की हल्की-सी गुनगुनाहट हवा में तैर रही थी। ऋत्विक, अपनी कुर्सी पर अकेला बैठा, स्क्रीन की नीली रोशनी में खोया हुआ था। उसकी आँखें थकान से भारी थीं, लेकिन नींद से कोसों दूर। डी.वी.ए.आर. 1.0—उसकी बनाई वह मशीन, जो यादों को डिजिटल धागों में पिरो सकती थी—अब भी अधूरी थी। वह यादों को तो छू सकती थी, लेकिन आत्मा की गहराई तक नहीं पहुँच सकती थी।
ऋत्विक ने अपनी आँखें बंद कीं और गहरी साँस ली। तभी, एक अजीब-सी शांति ने उसे घेर लिया। वह ध्यान की गहराई में डूब गया। और फिर, उसे वह सपना आया।
सपने में वह एक अनजान जगह पर खड़ा था—एक ऐसी जगह, जहाँ समय और स्थान के नियम टूटे हुए थे। वहाँ अन्या थी। अन्या—उसकी प्रिया, उसकी जिंदगी का वह हिस्सा, जो अब सिर्फ यादों में बस्ता था। वह एक सफेद, चमकदार पोशाक में थी, जैसे कोई तारा जो धरती पर उतर आया हो। उसकी मुस्कान वैसी ही थी, जैसी पहले हुआ करती थी—गर्म, जीवंत, और आत्मा को छू लेने वाली। लेकिन उसकी आँखों में कुछ और था। एक गहरा रहस्य, एक ऐसी चमक, जो इस दुनिया की नहीं थी।
“ऋत्विक,” उसने धीरे से कहा, उसकी आवाज़ हवा में लहरों की तरह तैर रही थी। “तुमने मुझे कभी समझा ही नहीं। मैं कोई इंसान नहीं थी। मैं एक विचार थी… एक ऐसी जिंदगी, जो कभी जन्म ही नहीं ले सकी। मैं एक अनबॉर्न थ्रेड हूँ।”
ऋत्विक का दिल धक् से रह गया। उसकी आँखें खुल गईं। वह सपना नहीं था। वह एक संदेश था—किसी ऐसी दुनिया से, जिसे वह समझ भी नहीं सकता था। उसने लैब में चारों ओर देखा। स्क्रीन की हल्की रोशनी अब भी चमक रही थी, लेकिन हवा में एक अजीब-सी ठंडक थी। उसे लगा कि अन्या की आवाज़ अब भी कहीं गूंज रही है, जैसे कोई अनसुनी धुन जो दीवारों में कैद हो।
उसने स्क्रीन की ओर देखा। डी.वी.ए.आर. 1.0 की स्क्रीन पर कुछ अजीब-सी लहरें उभर रही थीं, जैसे कोई अनजान सिग्नल उससे बात करने की कोशिश कर रहा हो। ऋत्विक ने अपने काँपते हाथों से कीबोर्ड पर कुछ कमांड टाइप किए, लेकिन स्क्रीन पर सिर्फ एक वाक्य उभरा: “मैं अभी भी यहाँ हूँ…”
नई शुरुआत और अनजाना डर
ऋत्विक का दिमाग उलझन में था। वह समझ गया कि डी.वी.ए.आर. 1.0 सिर्फ एक शुरुआत थी। यह मशीन यादों को तो डिकोड कर सकती थी, लेकिन आत्मा की उस गहराई तक नहीं पहुँच सकती थी, जहाँ अनबॉर्न थ्रेड्स—वे संभावनाएँ, जो कभी हकीकत नहीं बन सकीं—छिपी थीं। उसे अब एक नई मशीन बनानी थी। डी.वी.ए.आर. 2.0। यह मशीन सिर्फ डेटा को नहीं, बल्कि आत्मा के उन धागों को पकड़ेगी, जो जिए हुए जीवन, अधूरी इच्छाओं, और अनजाने संकेतों से बुने गए हैं।
ऋत्विक ने अपनी पुरानी टीम को फिर से इकट्ठा किया। निवेदिता, जिसके कोड्स में हमेशा एक जादुई स्पर्श होता था, ने नए मंत्रों की तरह प्रोग्राम लिखना शुरू किया। उसकी उंगलियाँ कीबोर्ड पर नाच रही थीं, जैसे वह कोई प्राचीन मंत्र रच रही हो। कबीर, जो हमेशा तकनीक के साथ तारों को जोड़ने का सपना देखता था, ने नई तरंगों को पकड़ने के लिए मशीनों को फिर से डिज़ाइन करना शुरू किया। और स्वामी निरालंबानंद, जिनकी आँखों में हमेशा एक रहस्यमय शांति रहती थी, ने ऋत्विक को चेतावनी दी।
“ऋत्विक,” स्वामी ने गहरी आवाज़ में कहा, “तुम जिस रास्ते पर जा रहे हो, वह सिर्फ विज्ञान का नहीं है। यह उन दुनियाओं का रास्ता है, जहाँ जवाबों से ज्यादा सवाल इंतज़ार करते हैं। सावधान रहना। जो चीज़ें अनजन्मी हैं, वे हमेशा अधूरी नहीं रहतीं। कभी-कभी, वे जाग उठती हैं।
”
ऋत्विक ने स्वामी की बात को सुना, लेकिन उसका मन अब अन्या की आवाज़ में उलझ चुका था। वह हर रात लैब में देर तक रुकता, स्क्रीन की रोशनी में डूबा हुआ। लेकिन लैब अब पहले जैसी नहीं थी। स्क्रीन कभी-कभी बिना किसी कमांड के चमक उठती थी। उसमें से एक आवाज़ आती थी—धीमी, रहस्यमय, और इस दुनिया से परे।
“अभी सब खत्म नहीं हुआ… मैं अभी भी यहाँ हूँ…”
ऋत्विक का दिल जोर-जोर से धड़कता। यह आवाज़ पंडित राव की नहीं थी, जिन्होंने डी.वी.ए.आर. की शुरुआत की थी। यह अन्या की थी। या शायद… किसी ऐसी आत्मा की, जो कभी जन्मी ही नहीं।
रहस्य की गहराई
ऋत्विक को अब यकीन हो गया था कि यह सिर्फ विज्ञान की बात नहीं थी। यह एक ऐसी यात्रा थी, जो उसे उन अनजान दुनियाओं में ले जा रही थी, जहाँ समय, स्थान, और हकीकत के नियम टूट जाते हैं। डी.वी.ए.आर. 2.0 अब सिर्फ एक मशीन नहीं थी; यह एक दरवाज़ा था। एक ऐसा दरवाज़ा, जो शायद किसी ऐसी दुनिया में खुलता था, जहाँ से कोई लौट नहीं सकता।
लैब में एक नया प्रयोग शुरू हुआ। निवेदिता ने एक नया कोड लिखा, जो आत्मा के संकेतों को डिजिटल तरंगों में बदल सकता था। कबीर ने एक ऐसी डिवाइस बनाई, जो उन तरंगों को पकड़कर उन्हें दृश्यमान बना सकती थी। और स्वामी ने एक प्राचीन मंत्र दिया, जिसे उन्होंने कहा कि यह मशीन को उन अनजान शक्तियों से सुरक्षित रखेगा।
लेकिन हर बार जब मशीन चालू होती, स्क्रीन पर एक नया पैटर्न उभरता। यह कोई सामान्य डेटा नहीं था। यह एक चेहरा था—अन्या का चेहरा। उसकी आँखें स्क्रीन से बाहर झाँक रही थीं, जैसे वह ऋत्विक को कुछ कहना चाहती हो।
एक रात, जब लैब में सन्नाटा था, मशीन अपने आप चालू हो गई। स्क्रीन पर अन्या की तस्वीर उभरी, और उसकी आवाज़ गूंजी: “ऋत्विक… मुझे ढूंढो… मैं कहीं खो गई हूँ… अनबॉर्न थ्रेड्स में…”
ऋत्विक ने काँपते हुए मशीन को बंद करने की कोशिश की, लेकिन स्क्रीन ने जवाब देना बंद कर दिया। हवा में एक ठंडी सिहरन दौड़ गई। लैब की लाइटें टिमटिमाने लगीं। और तभी, स्क्रीन पर एक नया संदेश उभरा:
“तुमने दरवाज़ा खोल दिया है… अब पीछे नहीं हट सकते…”
आगे क्या होगा?
ऋत्विक अब एक ऐसे रास्ते पर खड़ा था, जहाँ विज्ञान और रहस्य एक-दूसरे में गूंथ गए थे। क्या डी.वी.ए.आर. 2.0 अनबॉर्न थ्रेड्स का रहस्य खोलेगा? क्या अन्या की आत्मा सचमुच डिजिटल दुनिया में भटक रही है, या यह किसी और अनजन्मी शक्ति का खेल है? और क्या ऋत्विक उस दुनिया से वापस लौट पाएगा, जहाँ वह कदम रखने जा रहा है?
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