इस शहर के इंसान जाने कैसे हज़ार में,
प्लास्टिक के फूल बिके इत्र के बाजार में।दिलों में जगह नहीं, चेहरे पे नक़ाब है,
हर कोई तलाशे आईना इस दीवार में।
रिश्ते तो हैं मगर वो गर्माहट नहीं रही,
सर्द सी हवाएं चलें अब हर त्यौहार में।
हर कदम पे डर है, हर मोड़ पे धोखा,
कौन दोस्त है, कौन दुश्मन, घर बार में।
हुनर का नहीं सिक्का अब बात है और हीं,
कि किसने वक्त लगाया है खुद के प्रचार में।
इस शहर के इंसान जाने कैसे हज़ार में,
प्लास्टिक के फूल बिके इत्र के बाजार में।
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